इतने सारे शब्दों के बीच मैं बचाता हूँ अपना एकांतः जन्मदिन पर पीएम नरेंद्र मोदी की कविताएं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आज 69वां जन्मदिन है. साहित्य तक आपके लिए लेकर आया है उनकी कुछ कविताएं. साल 2007 में 'आँख आ धन्य छे' नाम से गुजराती के संकलन उनकी कुल 67 कविताएं छपीं थीं. सात साल बाद वे हिंदी में आईं. अंजना संधीर ने इनका अनुवाद किया और 'आँख ये धन्य है' नाम से यह छपीं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आज 69वां जन्मदिन है. साहित्य तक आपके लिए लेकर आया है उनकी कुछ कविताएं. साल 2007 में 'आँख आ धन्य छे' नाम से गुजराती के संकलन उनकी कुल 67 कविताएं छपीं थीं. सात साल बाद वे हिंदी में आईं. अंजना संधीर ने इनका अनुवाद किया और 'आँख ये धन्य है' नाम से यह छपीं.
आलोचकों ने इन कविताओं को जिंदगी की आँच में तपे हुए मन की अभिव्यक्ति माना और कहा कि मोदी जी की कई कविताएँ काव्य कला की दृष्टि से अच्छी हैं. उनकी अधिकतर कवितायें देशभक्ति और मानवता से तो जुड़ी ही थीं, उनमें आदर्शों को समर्पित एक वीतरागी मन का भी आभास हुआ. इन कविताओं में वह एक आत्मविश्वास से लबालब एक ऐसी शख्सियत के रूप में उभरते हैं, जो ईश्वर पर भरोसा रखने के लिए ही पैदा हुआ है.
पहली कविता का शीर्षक है- तस्वीर के उस पार
तुम मुझे मेरी तस्वीर या पोस्टर में ढूढ़ने की व्यर्थ कोशिश मत करो मैं तो पद्मासन की मुद्रा में बैठा हूँ अपने आत्मविश्वास में अपनी वाणी और कर्मक्षेत्र में. तुम मुझे मेरे काम से ही जानो
तुम मुझे छवि में नहीं लेकिन पसीने की महक में पाओ योजना के विस्तार की महक में ठहरो मेरी आवाज की गूँज से पहचानो मेरी आँख में तुम्हारा ही प्रतिबिम्ब है
दूसरी कविता का शीर्षक है - सनातन मौसम
अभी तो मुझे आश्चर्य होता है कि कहाँ से फूटता है यह शब्दों का झरना, कभी अन्याय के सामने मेरी आवाज की आँख ऊँची होती है- तो कभी शब्दों की शांत नदी शांति से बहती है.
इतने सारे शब्दों के बीच मैं बचाता हूँ अपना एकांत तथा मौन के गर्भ में प्रवेश कर लेता हूँ आनंद किसी सनातन मौसम का.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीसरी कविता उनके इस पद पर आने के बाद की है. इसे वह कई जगह जनसभाओं में सुना भी चुके हैं. उनकी यह कविता 'साक्षी भाव' नामक हिंदी में प्रकाशित उनके संकलन में आ चुकी हैं. इस संकलन में उनकी 16 कविताएं संकलित हैं.
न्यू इंडिया के सरोकार के लिए समर्पित यह कविता है-
वो जो सामने मुश्किलों का अंबार है उसी से तो मेरे हौसलों की मीनार है चुनौतियों को देखकर, घबराना कैसा इन्हीं में तो छिपी संभावना अपार है विकास के यज्ञ में जन-जन के परिश्रम की आहुति यही तो मां भारती का अनुपम श्रंगार है गरीब-अमीर बनें नए हिंद की भुजाएं बदलते भारत की, यही तो पुकार है. देश पहले भी चला, और आगे भी बढ़ा अब न्यू इंडिया दौड़ने को तैयार है, दौड़ना ही तो न्यू इंडिया का सरोकार है.