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तूफान पर हिंदी कविताएं: तुम तूफान समझ पाओगे, कौन यह तूफान रोके, मैं अकंपित दीप

फानी नामक तूफान चर्चा में है. हिंदी साहित्य में भी तूफान पर कई रचनाएं लिखीं गईं. साहित्य आजतक पर पढ़िए तूफान पर लिखी हरिवंशराय बच्चन और गोपालदास नीरज की कविताएं

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तूफान के दौरान मनुष्य के साहस का सांकेतिक चित्र
तूफान के दौरान मनुष्य के साहस का सांकेतिक चित्र

देश में इन दिनों फानी नामक तूफान की बड़ी चर्चा है. ओड़िशा, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल ही नहीं पूरे देश में 'फानी' को लेकर लोगों में जिज्ञासा है. ऐसे में 'साहित्य आजतक' अपने पाठकों को हिंदी साहित्य में तूफान पर रची गयी कुछ नायाब रचनाओं से रूबरू करा रहा है. इनमें से पहली दो रचनाओं 'तुम तूफान समझ पाओगे' और 'कौन यह तूफान रोके!' के रचयिता हरिवंशराय बच्चन हैं और 'मैं अकंपित दीप...यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा?' के रचयिता गोपालदास 'नीरज' हैं.

हिंदी कविताओं में तूफान

तुम तूफान समझ पाओगे

                  -हरिवंशराय बच्चन

गीले बादल, पीले रजकण,

सूखे पत्ते, रूखे तृण घन

लेकर चलता करता 'हरहर'-इसका गान समझ पाओगे?

तुम तूफान समझ पाओगे?

गंध-भरा यह मंद पवन था,

लहराता इससे मधुवन था,

सहसा इसका टूट गया जो स्वप्न महान, समझ पाओगे?

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तुम तूफान समझ पाओगे?

तोड़-मरोड़ विटप-लतिकाएँ,

नोच-खसोट कुसुम-कलिकाएँ,

जाता है अज्ञात दिशा को! हटो विहंगम, उड़ जाओगे!

तुम तूफान समझ पाओगे?

कौन यह तूफान रोके!

                            -हरिवंशराय बच्चन

हिल उठे जिनसे समुंदर‚

हिल उठे दिशि और अंबर

हिल उठे जिससे धरा के!

वन सघन कर शब्द हर-हर!

उस बवंडर के झकोरे

किस तरह इंसान रोके!

कौन यह तूफान रोके!

उठ गया‚ लो‚ पांव मेरा‚

छुट गया‚ लो‚ ठांव मेरा‚

अलविदा‚ ऐ साथ वालो

और मेरा पंथ डेरा;

तुम न चाहो‚ मैं न चाहूं‚

कौन भाग्य-विधान रोके!

कौन यह तूफान रोके!

आज मेरा दिल बड़ा है‚

आज मेरा दिल चढ़ा है‚

हो गया बेकार सारा‚

जो लिखा है‚ जो पढ़ा है‚

रुक नहीं सकते हृदय के‚

आज तो अरमान रोके!

कौन यह तूफान रोके!

आज करते हैं इशारे‚

उच्चतम नभ के सितारे‚

निम्नतम घाटी डराती‚

आज अपना मुंह पसारे;

एक पल नीचे नजर है‚

एक पल ऊपर नजर है;

कौन मेरे अश्रु थामे‚

कौन मेरे गान रोके!

कौन यह तूफान रोके!

******

मैं अकंपित दीप...यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा?

                                 - गोपालदास 'नीरज'

मैं अकंपित दीप प्राणों का लिए,

यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा?

बन्द मेरी पुतलियों में रात है,

हास बन बिखरा अधर पर प्रात है,

मैं पपीहा, मेघ क्या मेरे लिए,

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जिन्दगी का नाम ही बरसात है,

साँस में मेरी उनंचासों पवन,

यह प्रलय-पवमान मेरा क्या करेगा?

यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा?

कुछ नहीं डर वायु जो प्रतिकूल है,

और पैरों में कसकता शूल है,

क्योंकि मेरा तो सदा अनुभव यही,

राह पर हर एक काँटा फूल है,

बढ़ रहा जब मैं लिए विश्वास यह,

पंथ यह वीरान मेरा क्या करेगा?

यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा?

मुश्किलें मारग दिखाती हैं मुझे,

आफतें बढ़ना बताती हैं मुझे,

पंथ की उत्तुंग दुर्दम घाटियाँ

ध्येय-गिरि चढ़ना सिखाती हैं मुझे,

एक भू पर, एक नभ पर पाँव है,

यह पतन-उत्थान मेरा क्या करेगा?

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