कहते हैं दुनिया बहुत ज़ालिम है दर्द-ए-दिल पे हंसती है. प्रेम में तर्क की बात करती है. ख़फा आशिक ज़हनी सुकून की तलाश करता पहुंचता है सच से भी ज़्यादा सच्ची लगने वाली शेरो-शायरी की दुनिया में. माशूक़ा को याद करने वाले आशिक़ों को ये 6 शेर बहुत सुकून देंगे...
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब,
आज तुम याद बे-हिसाब आए.
-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती,
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं.
-हसरत मोहानी
तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें,
हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया
-बहादुर शाह ज़फ़र
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं,
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं.
-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
वही फिर मुझे याद आने लगे हैं,
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं.
- ख़ुमार बाराबंकवी
याद रखना ही मोहब्बत में नहीं है सब कुछ,
भूल जाना भी बड़ी बात हुआ करती है.
-जमाल एहसानी
ज़रा सी बात सही तेरा याद आ जाना,
ज़रा सी बात बहुत देर तक रुलाती थी.
-नासिर काज़मी
क्या सितम है कि अब तिरी सूरत,
ग़ौर करने पे याद आती है.
-जौन एलिया
मुझे याद करने से ये मुद्दआ था,
निकल जाए दम हिचकियाँ आते आते.
-दाग़ देहलवी
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए.
-बशीर बद्र