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लॉकडाउन: बदले हालात पर हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा ने सुनाई दिल को छूने वाली कविता

सुरेंद्र शर्मा ने एंकर सईद अंसारी के साथ बातचीत के अंत में देश को जोड़ने का संदेश देने वाली एक कविता सुनाई.

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सुरेंद्र शर्मा
सुरेंद्र शर्मा

देश भले ही लॉकडाउन के चलते अपने-अपने घरों में बंद है लेकिन बावजूद इसके कोरोना वॉरियर्स अपने घरों से बाहर निकल रहे हैं. वो निकल रहे हैं और खुद की जान को दाव पर लगा रहे हैं ताकि लाखों लोगों की जान बचाई जा सके. इन्हीं कोरोना वॉरियर्स को सलाम करते हुए आज तक ने भी इस साल साहित्य आज तक को डिजिटल कर दिया है और साहित्य आज तक का मंच कई दिग्गजों के साथ सज चुका है.

शुक्रवार को ई-साहित्य आज तक में मशहूर हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा ने मॉड्रेटर सईद अंसारी से तमाम दिलचस्प किस्से साझा किए. उन्होंने चुटकुले सुनाए तो उन्होंने गंभीर बातें भी कीं. उन्होंने घर में पति-पत्नी के बीच बन रहे माहौल पर बात की तो उन्होंने कोरोना वॉरियर्स को भी सलाम किया. सुरेंद्र शर्मा ने सईद अंसारी के साथ बातचीत के अंत में देश को जोड़ने का संदेश देने वाली एक कविता सुनाई जिससे दर्शक मंत्र मुग्ध हो गए.

झगड़े और टूट के माहौल को छोड़कर एक होने का संदेश देती सुरेंद्र शर्मा की इस कविता में उन्होंने कहा...

आज एक बार कहें, आखिरी बार कहें.
क्या पता तुम न रहो, क्या पता हम न रहें.
मंदिर-ओ-मस्जिद की, या किसी इमारत की.
माटी तो लगी उसमें भाई मेरे भारत की.
लहू था हिंदू का, अल्लाह शर्मिंदा रहा.
मरा मुसलमां तो, राम कब जिंदा रहा.
बिखरे-बिखरे हैं सभी, आओ मिल जुल कर रहें.
क्या पता तुम न रहो, क्या पता हम न रहें.

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सुरेंद्र शर्मा ने लॉकडाउन में घर से बाहर निकल रहे लोगों और गरीब मजदूरों में फर्क करते हुए कहा कि हमें लगता है कि लोग लॉकडाउन तोड़ रहे हैं लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि जो शख्स बाहर निकल रहा है उसकी कुछ तो मजबूरी रही होगी जो वो बाहर आ रहा है. साथ ही सुरेंद्र शर्मा ने गरीबों की हालत का वर्णन करते हुए कहा कि एक ही झोपड़ी में 6-7 लोग रह रहे हैं. ऐसे में किस तरह से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो पाएगा.

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