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साल में सिर्फ एक बार खुलता है ये मंदिर, 8 महीने रहता है पानी में डूबा

पुणे का वाघेश्वर मंदिर भक्तों के लिए खुल चुका है. यह ऐतिहासिक मंदिर सिर्फ गर्मी के दिनों में ही दर्शन के लिए खुला रहता है. मानसून और अन्य मौसमों के दौरान, यह मंदिर पवना डैम के पानी में डूब जाता है. आइए आज आपको इस मंदिर के बारे में बताते हैं.

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साल में सिर्फ एक बार खुलता है ये मंदिर, 8 महीने रहता है पानी में डूबा
साल में सिर्फ एक बार खुलता है ये मंदिर, 8 महीने रहता है पानी में डूबा

महाराष्ट्र के पुणे के मावल तालुका का प्राकृतिक सौन्दर्य पर्यटकों को लगातार आकर्षित कर रहा है. पवना डैम उनमें से एक है. पवना डैम के नजदीक ऐतिहासिक वाघेश्वर मंदिर भी अब दर्शन के लिए खुला है. इस मंदिर की खास बात ये है कि यह मंदिर सिर्फ गर्मी के दिनों में ही दर्शन के लिए खुला रहता है. मानसून और अन्य मौसमों के दौरान, यह मंदिर पवना डैम के पानी में डूब जाता है.

पवना डैम का निर्माण साल 1965 में हुआ था. 1971 में डैम का निर्माण पूरा होने के बाद इसमें पानी के भंडारण का काम शुरू हुआ. तब से यह ऐतिहासिक मंदिर पानी में डूबा हुआ है. पवना डैम के पानी में स्थित मंदिर गर्मियों में तीन-चार महीने पानी कम होने के बाद ही दिखाई देता है. इस साल मार्च के अंत में यह मंदिर पानी से बाहर आ गया है.

कब बना था मंदिर?
ऐसा कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण करीब 700 से 800 साल पहले हुआ था. मंदिर का निर्माण हेमाडपंथी शैली में हुआ है. ऐतिहासिक शोधकर्ताओं का दावा है कि मंदिर का निर्माण ग्यारहवीं से बारहवीं शताब्दी तक होना चाहिए, क्योंकि मंदिर के निर्माण में पत्थर आपस में जुड़े हुए थे. इस पर कुछ शिलालेख भी मिले हैं. लेकिन साफ ​​दिखाई नहीं देने के कारण पूरी जानकारी नहीं मिल पाती है.

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शिला निर्मित यह मंदिर आठ महीने तक बांध के पानी में पूरी तरह डूबा रहता है. जलजमाव के तीन-चार महीने बाद ही पानी निकलता है. मंदिर का पूरा निर्माण पत्थरों से किया गया है और वर्तमान में इस मंदिर का केवल खोल ही बचा है. मंदिर पुराना होने के कारण इसके अधिकांश भाग जर्जर हो चुके हैं.

आस-पास की दीवारों के निशान अभी भी मौजूद हैं. मंदिर का शिखर नष्ट हो गया है और केवल सभा भवन शेष है. इस मंदिर के चारों ओर दरारें आ गई हैं. कहा जाता है कि कोंकण सिंधुदुर्ग अभियान को पूरा करने के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने वाघेश्वर के मंदिर का दौरा किया था. अभी इस मंदिर को देखने के लिए महाराष्ट्र के कोने-कोने से लोग आ रहे हैं. इस ऐतिहासिक मंदिर का पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षण किया जाना चाहिए.

(पुणे से श्रीकृष्ण पांचाल की रिपोर्ट)

 

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