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आपस में बदल जाती है कामकाजी माता-पिता की भूमिका

भारतीय समाज में जहां मां बच्चों की देखभाल करती है वहीं पिता पर बाहरी कामों की जिम्मेदारी रहती है. लेकिन जब माता-पिता दोनों कामकाजी हों तो कई बार उनकी भूमिकाएं और काम आपस में बदल जाते हैं.

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आमतौर पर भारतीय समाज में जहां मां बच्चों की देखभाल करती है वहीं पिता पर बाहरी कामों की जिम्मेदारी रहती है. लेकिन आज के बदलते परिवेश और बदलती जीवनशैली और कई बार जरूरतों के कारण अनेक घरों में माता-पिता दोनों कामकाजी होते हैं और इसके साथ ही कई बार उनकी भूमिकाएं और काम भी आपस में बदल जाते हैं.

समयाभाव और जिम्मेदारी के चलते मां को जहां घर के साथ ही बाहर के काम भी करने पड़ते हैं वहीं पिता बाहरी दायित्व के निर्वाह के साथ साथ घरेलू कामों में मदद करते हैं.

एमएससी की छात्रा दिव्या ने कहा कि उनके माता-पिता दोनों कामकाजी हैं और बचपन में दोनों ही मिलकर उसकी देखभाल करते थे. दिव्या ने कहा, ‘मेरे माता-पिता दोनों ही कामकाजी हैं. मुझे याद है, बचपन में मां का सुबह का ऑफिस होने के कारण मुझे तैयार करने, स्कूल भेजने का काम पापा करते थे जबकि दोपहर को पापा के ऑफिस में होने के कारण मुझे स्कूल से लेने मां आतीं थीं.

उसने कहा, ‘तब कई बार सांस्कृतिक कार्यक्रमों या अभिभावक सम्मेलन में पापा की बजाय मां स्कूल आती थीं. बाहर से घर का सामान, मेरी किताबें आदि लाने का काम भी मां करती थीं. लेकिन अब समझ में आता है वे दोनों हमारे लिए कितनी मेहनत करते थे.’

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बीकॉम के छात्र पराग ने कहा कि उन्होंने बचपन में कई बार मां को पिता की भूमिका में और पिता को मां की भूमिका में देखा है. उन्होंने कहा, ‘मम्मी-पापा दोनों ऑफिस जाते थे. ऐसे में बचपन में कई बार स्कूल से घर आने के बाद यूनीफार्म निकालना, हाथ-पैर धुलाना, दूध देने का काम अक्सर पापा करते थे क्योंकि मां शाम को देर से घर आती थीं.’

पराग ने कहा कि उन्हें लगता है कि माता-पिता दोनों का ही कामकाजी होना उनके स्वावलंबी बनने में भी मददगार साबित हुआ. उन्होंने कहा, ‘कई बार मां को ऑफिस जल्दी जाना होता था तो वह खाना बनाकर रख जाती थीं और मैं स्कूल से आने के बाद अपने आप खाना निकाल कर खाता था या अपना स्कूल बैग जमाने, कपड़े तह करके रखने जैसे छोटे छोटे काम खुद ही करने पड़ते थे. इससे कहीं न कहीं मुझमें स्वावलंबन का गुण आया.’

पराग ने कहा, ‘यही वजह है कि आज घर से दूर रहकर मुझे अपने काम करने में कोई परेशानी नहीं आती. अगर नौकरानी न भी आए तो सफाई या खाना बनाने का काम मैं बिना किसी दिक्कत के कर लेता हूं.’

कुछ देशों में 16 सितंबर को ‘वर्किंग पेरेन्ट डे’ मनाया जाता है. यह दिन उन माता-पिता के लिए समर्पित है जो अपने बच्चों की बेहतर परवरिश और उन्हें सभी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए घर से निकल कर बाहर काम करते हैं. यह दिन बच्चों को अपने कामकाजी अभिभावकों के लिए कोई अच्छा सा व्यंजन बनाकर, रात के खाने में उनकी मदद करके, उनके लिए कोई तोहफा आदि खरीदकर उन्हें आश्चर्यचकित करने का मौका देता है.
(16 सितंबर वर्किंग पेरेन्ट्स डे पर विशेष)

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