बतौर कार्डिएक सर्जन मुझे हमेशा यही सवाल सुनने को मिलता हैः खानपान, लाइफस्टाइल और हृदय रोग में क्या रिश्ता है? क्या लोगों को वास्तव में इसकी परवाह करने की जरूरत है कि वे क्या खाते हैं और कैसे एक्सरसाइज करते हैं? क्या दिल को स्वस्थ रखने के लिए सिगरेट पीना छोड़ देना चाहिए?
मेरे अनुभव के मुताबिक, करीब 25 फीसदी भारतीय ऐसे हैं जो आसानी से हृदय रोग के शिकार बन सकते हैं. आम तौर पर ये ऐसे परिवारों से होते हैं जिनका दिल के रोगों का इतिहास रहा हो. उनमें युवावस्था में ही हाइ लिपिड प्रोफाइल होता है या वे डायबिटीज या हाइपरटेंशन के शिकार हो जाते हैं, जिनमें उनकी कोई गलती नहीं होती. वे सिगरेट नहीं पीते, उनका खानपान सही होता है और नियमित तौर पर कसरत भी करते हैं. फिर भी, वे हार्ट अटैक का शिकार हो सकते हैं, आनुवंशिक रूप से मिली विरासत या उनके नवजात रहने के दौरान ही हुई कुछ गलतियों की वजह से. अपनी मौजूदा जानकारी के बूते हम ऐसे लोगों में हार्ट अटैक को रोकने के लिए बहुत कुछ नहीं कर सकते हैं.
अन्य 25 फीसदी ऐसे भी लोग होते हैं जो जमकर शराब पीते हैं, चिमनी की तरह सिगरेट फूंकते हैं और जीवन भर जंक फूड खाते हैं. लेकिन उन्हें कुछ नहीं होता, मानो वे सिर्फ गोली मारने से ही मरेंगे. दिल के नजरिए से ऐसे लोग खुशकिस्मत वर्र्ग में हैं.
हम तो बाकी बचे उन 50 फीसदी लोगों के लिए फिक्रमंद हैं जो कगार पर हैं. जो अपने लाइफस्टाइल पर नजर रखकर हार्ट अटैक से बच सकते हैं या कम-से-कम उसे टाल सकते हैं.
सिगरेट छोड़ देने, सही खुराक, कसरत, योग, ध्यान या अन्य जो भी सलाह हम देते हैं वह इसी वर्ग को सलामत रखने के लिए होती है. ऐसे लोग अपनी जीवनशैली में सुधार लाकर हार्ट अटैक को 45 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष की आयु तक ले जा सकते हैं. मेरे ख्याल से यह एक बड़ी उपलब्धि होगी. प्रकृति रहस्यों से भरपूर है. एक रहस्य यह भी है कि आखिर हम यह कैसे तय करेंगे कि कौन व्यक्ति सौभाग्यशाली 25 फीसदी में से है या दुर्भाग्यशाली 25 फीसदी में से या कगार पर रहने वाले 50 फीसदी लोगों में? हमारे पास मौजूदा समय में जो डायग्नोस्टिक साधन हैं वे इस तरह की पहचान करने में सक्षम नहीं हैं. इसलिए व्यावहारिक रवैया यही है कि हर व्यक्ति कगार पर है और उसे अपनी जीवनशैली में जबरदस्त बदलाव लाना चाहिए.
आखिर उस समय दिल के रोग की चिंता करना जरूरी क्यों है जब आप दिल के रोगी बने ही न हों? ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि यूरोपीय लोगों के मुकाबले भारतीय लोगों में आनुवंशिक रूप से हृदय रोगी होने का जोखिम तीन गुना ज्यादा होता है और काफी कम उम्र में ही हार्ट अटैक का शिकार होने का जोखिम रहता है. मैंने अकसर देखा है कि बुजुर्ग पिता को दिल के ऑपरेशन के लिए उनका बेटा लेकर नहीं आता, बल्कि युवा बेटे की बाईपास सर्जरी के लिए बुजर्ग पिता आते हैं. हार्ट अटैक महामारी की शक्ल ले चुका है. जब मैं ब्रिटेन में प्रैक्टिस करता था तो मेरे पास आने वाले मरीजों की औसत आयु 65 वर्ष हुआ करती थी, पर भारत में यह 45 वर्ष है.
मानव शरीर मांस खाने के लिए नहीं बना है. हमारे दांत सब्जियां या फल चबाने के लिए बने हैं. हमारा पाचन तंत्र भी मांस पचाने के लिए नहीं है. प्रकृति ने हमारे शरीर को तेल या चीनी पचाने के लिए नहीं बनाया है. कुदरत यह जानती है कि हमारे शरीर को तेल की जरूरत है, इसलिए उसने हमें ऐसे मेवे दिए हैं जिनमें तेल है. इन्हें खाने से ही हमारे शरीर को पर्याप्त मात्रा में तेल मिल जाता है.
प्रकृति यह भी नहीं चाहती कि हम चीनी को उस तरीके से लें जैसे अभी खाते हैं, इसलिए उसने हमें गन्ना या ऐसे फल दिए हैं जिनमें चीनी होती है. लेकिन दुर्भाग्य से कुदरत ने हमें ऐसा तेज दिमाग भी दिया है जिससे हमने मेवों से तेल निकालने और गन्ने से चीनी बनाने की तकनीक ईजाद कर ली. इससे हमारे शरीर के पास तेल या मीठे के कुदरती रूप को पचाने के मौके कम ही बचते हैं.
लोगों ने बाजार में उपलब्ध तेलों में से कुछ को यह बताकर प्रचारित करना शुरू कर दिया कि दिल के मामले में हमारा तेल औरों से बेहतर है. अब जब नट्स से तेल निकालना ही कुदरत के खिलाफ है तो कोई तेल ''दिल के लिए अच्छा'' कैसे हो सकता है? यह मायने नहीं रखता कि आप शाकाहारी हैं या मांसाहारी. हमने कई शुद्ध शाकाहारी लोगों में ही हृदय रोग के बेहद गंभीर मामले देखे हैं.
यह भी सच नहीं है कि दिल के सभी मरीज मोटे होते हैं. अगर आप कभी बाइपास सर्जरी वार्ड से गुजरें तो आपको मरीजों में मोटे लोग मुश्किल से ही दिखेंगे. उनमें से ज्यादातर लोग दुबले होते हैं.
इस गलतफहमी में न रहें कि आप दुबले हैं तो आपको हार्ट अटैक नहीं हो सकता. मैं यह नहीं कह रहा कि मोटापा मायने नहीं रखता. तला हुआ भोजन और ज्यादा कार्बोहाइड्रेट वाली खुराक आपकी सेहत के लिए अच्छी नहीं होती क्योंकि इनसे ब्लड शुगर तेजी से बढ़ता है और ये रक्त वाहिनियों को नुकसान पहुंचाते हैं.
मैं तो मुख्यतः चपाती और थोड़ा चावल खाता हूं. हालांकि मेरे पास ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि चावल की तुलना में रोटी खाना बेहतर है. फल, सब्जियां खूब खाएं और रेड मीट से परहेज करें. मछली और चिकन तक ठीक है. अपनी खुराक में तेल की मात्रा कम करने की कोशिश करें. खूब पानी पिएं. बहुत से भारतीयों के शरीर में पथरी बन जाती है क्योंकि वे पानी कम पीते हैं. यदि आपके गुर्दों में पर्याप्त मात्रा में पानी की आवाजाही रहेगी तो वे सुरक्षित रहेंगे.
अध्ययन बताते हैं कि पर्याप्त पानी पिए बिना आप वजन नहीं घटा सकते. सही मात्रा में पानी पीने का पैमाना क्या हो? इसका आसान तरीका यह है कि आप अपने पेशाब के रंग पर गौर करें. पेशाब का रंग पानी जैसा ही है तो आप पर्याप्त पानी पी रहे हैं. यदि पेशाब का रंग गहरा है तो इसका मतलब यह है कि आपके शरीर में पानी की कमी है. जब तक आपका दिल जवान है, गुर्दे ठीक हैं, आप खूब पानी पी सकते हैं.
खाना संयत तरीके से खाएं. आनंद लेने के लिए न खाएं. दिन में तीन बार खाएं: अच्छा नाश्ता, लंच और डिनर. इस बीच भूख लगने पर फ्रूट जूस या सैंडविच ले सकते हैं. जवान, फिट और दिल को दुरुस्त रखने के लिए कसरत करें. हर दिन कम से कम आधा घंटा टहलें.
बंगलुरू स्थित नारायण हृदयालय के संस्थापक-चेयरमैन. देश की हार्ट सर्जरी का 10 फीसदी से ज्यादा हिस्सा इसी अस्पताल चेन में किया जाता है. सामाजिक रूप से समावेशी हेल्थकेयर में यकीन रखने वाले डॉ. शेट्टी 10 रु. में भी हृदय रोग का इलाज करने के लिए पहचाने जाते हैं.