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लाइफस्टाइल

कोरोना: भारत की 'गेमचेंजर दवा' ने किया मायूस, दुनिया ने लगा रखी थी आस

कोरोना: भारत की 'गेमचेंजर दवा' ने किया मायूस, दुनिया ने लगा रखी थी आस
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कोरोना के इलाज में इस्तेमाल की जा रही मलेरिया की दवा को लेकर अब एक नई स्टडी सामने आई है. स्टडी में कहा गया है कि इस बात के कोई सबूत नहीं मिले हैं कि यह दवा कोरोना वायरस के मरीजों को किसी भी तरह का लाभ पहुंचा रही है. हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा पर की गई यह स्टडी New England Journal of Medicine में प्रकाशित की गई है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस दवा को गेमचेंजर करार दे चुके हैं और कई देश भारत से हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का आयात भी कर रहे हैं.

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शोधकर्ताओं ने बताया कि यह स्टडी कोलंबिया में यूनिवर्सिटी में इलाज कर रहे लगभग 1,400 मरीजों पर की गई. शोध में यह जानकारी सामने आई कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन ना तो कोरोना के मरीजों में मौत के खतरे को कम करती है और ना ही सांस लेने की दिक्कत को किसी भी तरह दूर करती है.

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हालांकि यह स्टडी किसी प्रयोग के लिए नहीं बल्कि बस अवलोकन के लिए की गई थी. कुछ डॉक्टरों ने लिखा है कि यह स्टडी कई अहम सुझाव देती है और इससे COVID-19 के मरीजों की दवा पर कई अहम निर्णय लिए जा सकते हैं.

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डॉक्टरों ने संपादकीय में लिखा, 'यह निराशाजनक है कि इतने दिन गुजरने के बाद भी अब तक इस महामारी की दवा नहीं बन पा रही है, दवा पर किए जा रहे टेस्ट के परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं. वहीं यह नई स्टडी बताती है कि  हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन कोई रामबाण नहीं है.'

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इससे पहले भी आई स्टडी में इस दवा की वजह से दिल की धड़कन बढ़ने और अचानक मौत हो जाने जैसे गंभीर दुष्प्रभावों के बारे में बताया गया था. अमेरिका का Food and Drug Administration भी कोरोना वायरस के इलाज के लिए इस दवा का इस्तेमाल ना करने की चेतावनी दे चुका है.

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इस शोध में कोलंबिया के डॉक्टरों ने पाया कि एंटीबायोटिक एजिथ्रोमायसिन के साथ या उसके बिना भी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा लेने वाले 811 मरीजों की तुलना में उन 565 मरीजों की हालत स्थिर थी जिन्होंने यह दवा नहीं ली थी.

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यह दवा लेने वाले 180 मरीजों को ब्रीदींग ट्यूब की जरूरत पड़ी जबकि 232 लोगों की मौत हो गई. मरीजों की सेहत पर दवा का कोई असर नहीं दिखा. जिन मरीजों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा दी गई, वह दूसरे मरीजों की तुलना में ज्यादा बीमार थे. उन्हें यह दवा बहुत सावधानी से दी गई थी फिर भी उन पर इसका कोई फायदा नहीं हुआ.

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यह दवा मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने के दो दिनों के अंदर दी गई. हालांकि पहले की गई कुछ स्टडीज में आलोचकों का कहना था कि अगर मरीजों पर इस दवा का इस्तेमाल देर से किया गया तो यह दवा कोई अच्छा असर नहीं दिखाएगी. यह स्टडी National Institutes of Health के द्वारा कराई गई थी.

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