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लाइफस्टाइल

कोरोना से मरने वालों और बचने वालों में है बस एक बात का अंतर

कोरोना से मरने वालों और बचने वालों में है बस एक बात का अंतर
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कोरोना वायरस से लड़ने की क्षमता हर किसी की में अलग-अलग होती है और ये काफी हद तक लोगों के इम्यून सिस्टम पर निर्भर करता है. एक नई स्टडी की मानें तो इम्यून सिस्टम कोरोना वायरस के मरीजों की जिंदगी और मौत की एक बड़ी वजह हो सकता है क्योंकि ये हर मरीज में अलग-अलग तरीके से काम करता है.
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जब शरीर पर किसी वायरस का हमला होता है, तो इम्यून सिस्टम इससे निपटने के लिए टी कोशिकाओं का निर्माण करता है. ये कोशिकाएं ज्यादातर दो स्वरूपों में बनती हैं. एक जो वायरस से बचाने का काम करती है, जिन्हें सहायक कोशिकाएं भी कहा जाता है और दूसरा जो इन्हें मारती हैं, जिन्हें किलर कोशिकाएं भी कहा जाता है.

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किलर कोशिकाएं जहरीले रसायनों के जरिए वायरस को मारने का काम करती हैं लेकिन इस काम को प्रभावी ढंग से करने के लिए उसे सहायक कोशिकाओं के साथ सही समन्वय की जरूरत पड़ती है.

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US के पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय के अस्पताल के शोधकर्ताओं के अनुसार, Covid-19 के कई गंभीर मरीजों में कोशिकाओं का ये टीमवर्क नहीं पाया गया. साइंस पत्रिका में प्रकाशित इन शोधकर्ताओं की स्टडी के अनुसार शरीर में तीन तरह के 'इम्युनोटाइप्स'  होते हैं.

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टीम ने पाया कि पहले इम्युनोटाइप्स में कुछ मरीजों में सहायक कोशिकाओं की संख्या ज्यादा थी, जबकि किलर कोशिकाएं दबी हुई थीं. इसका मतलब ये है कि वायरस के खतरे का अंदाजा होने के बाद भी शरीर में इनसे प्रभावी ढंग से लड़ने वाली कोशिकाएं बहुत कम थीं.

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दूसरे इम्युनोटाइप में किलर कोशिकाओं की संख्या ज्यादा होती है, मतलब वो वायरस को बेहतर तरीके से नष्ट कर सकती हैं लेकिन इनमें सहायक कोशिकाओं की कमी होती है और जिसकी वजह से दोनों के बीच वायरस से लड़ने का समन्वय नहीं बन पाता है.

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स्टडी के अनुसार दूसरे इम्युनोटाइप में कोरोना वायरस से गंभीर रूप से संक्रमित होने के बावजूद मरीज किसी तरह जिंदा बच जाता है.

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तीसरे इम्युनोटाइप में वो लोग थे जिनका शरीर किसी भी प्रकार की पर्याप्त टी कोशिकाओं का उत्पादन करने में अक्षम था. इसका मतलब है कि इनके शरीर में वायरस से लड़ने वाली दोनों आक्रामक कोशिकाओं की कमी थी जिसकी वजह से इन लोगों में कोरोना वायरस से मौत का ज्यादा खतरा था.

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125 मरीजों पर की गई ये इस तरह की पहली स्टडी है. हालांकि वैज्ञानिक विभिन्न इम्यून सिस्टम रिस्पॉन्स को पूरी तरह से नहीं समझा सके. उन्हें संदेह था कि यह संक्रमण के समय रोगियों के सामान्य सेहत से भी जुड़ा हो सकता है.

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