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Weight loss injectable drugs: वेट लॉस इंजेक्शन कितने समय तक वजन कम करने में मदद करते हैं? डॉक्टर ने बताया

वजन कम करने के लिए मार्केट में जो इंजेक्शन मौजूद हैं वो कितने समय तक काम करते हैं, इस बारे में अमेरिकी रिसर्च में सामने आया है और एक्सपर्ट ने भी इस बारे में अपनी राय रखी है.

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भारत में भी वजन घटाने वाले इंजेक्शन मौजूद हैं.
भारत में भी वजन घटाने वाले इंजेक्शन मौजूद हैं.

Weight loss injectable drugs: वजन घटाने वाली दवाएं या इंजेक्शन पिछले कुछ समय से दुनिया भर में काफी फेमस हो रहे हैं. इन दवाओं से मोटापे के इलाज में मदद मिलती है और इंसान का वजन कम होता है. ये इंजेक्शन आमतौर पर डॉक्टर की सलाह पर उन लोगों के लिए उपयोग किए जाते हैं जो डाइट और एक्सरसाइज से वजन कम नहीं कर पाते. लेकिन हाल ही में क्लीवलैंड क्लिनिक की अमेरिकी मरीजों पर एक हुई रिसर्च में पाया गया है कि मोटापा कम करने वाले इंजेक्शन का प्रभाव क्लिनिकल ट्रायल की अपेक्षा रोजमर्रा की लाइफ में इस्तेमाल करने पर कम हो सकता है क्योंकि मरीज ट्रीटमेंट (इंजेक्शन) लेना बंद कर देते हैं या उनकी खुराक कम कर देते हैं. 

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क्या हैं वेट लॉस इंजेक्शन?

दरअसल, वेगोवी और ओजम्पिक ब्रांड नामों से बेचे जाने वाले सेमाग्लूटाइड (ब्रांड नाम वेगोवी) और टिर्जेपेटाइड (ब्रांड नाम मौंजारो) को वेट मैनेजमेंट और डायबिटीज वाले मरीजों को ब्लड शुगर को कंट्रोल करने के लिए प्रिस्क्राइब किया जाता है. मुख्यत: ये एक GLP-1 रिसेप्टर अगोनिस्ट हैं जो भूख को नियंत्रित करते हैं और खाने की इच्छा को कम करते हैं. यह इंसुलिन स्राव को बढ़ावा देते हैं और डाइजेशन को धीमा करते हैं जिससे लंबे समय तक पेट भरा हुआ महसूस होता है. ये दोनों वीकली इंजेक्शन हैं यानी दोनों को हफ्ते में 1 बार लिया जाता है.

ये इंजेक्शन केवल डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन पर लेने होते हैं. इनका उपयोग BMI (बॉडी मास इंडेक्स) 30 या उससे अधिक वाले लोगों, या BMI 27+ के साथ मोटापे से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं (जैसे डायबिटीज, हाई बीपी) वाले लोगों के लिए किया जाता है.

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रिसर्च में क्या पाया गया?

ओबेसिटी जर्नल में पब्लिश हुई स्टडी में वजन घटाने और ब्लड शुगर रेगुलेशन (ग्लाइसेमिक कंट्रोल) पर एंटी-ओबेसिटी इंजेक्शन के प्रभावों की जांच की गई. अमेरिका के क्लीवलैंड क्लिनिक के रिसर्चर्स और प्रमुख लेखक डॉ. हेमलेट गैसोयान ने कहा, 'हमारी स्टडी से पता चलता है कि सेमाग्लूटाइड या टिर्जेपाटाइड से मोटापे का इलाज करने वाले मरीजों का वजन क्लिनिकल ट्रायल में औसतन कम हुआ था लेकिन जब लोगों ने इसका इस्तेमाल किया तो इसमें कमी देखी गई.'

रिसर्चर्स ने 7881 वयस्क रोगियों की जांच की थी जिनका औसत बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 39 से अधिक था और वे 'गंभीर मोटापे' की श्रेणी में आते थे. इनमें से 1320 मरीजों को रिसर्च की शुरुआत में प्री-डायबिटीज की शिकायत थी जिसका मतलब था कि उन्हें टाइप 2 डायबिटीज होने का ज़्यादा जोखिम था.

डॉ. हेमलेट ने ओहियो और फ्लोरिडा में इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड डेटा एक्सेस किया था ताकि टाइप 2 डायबिटीज के बिना 2021 और 2023 के बीच इंजेक्टेबल सेमाग्लूटाइड या टिरजेपेटाइड लेना शुरू करने  वाले अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त वयस्कों की पहचान की जा सके. 

ट्रीटमेंट शुरू करने के एक साल बाद रिसर्च में पाया गया कि जिन लोगों ने तीन महीने के भीतर इंजेक्शन लेना बंद कर दिया था, उनमें औसत वजन में कमी 3.6 प्रतिशत थी जबकि जिन लोगों ने 3-12 महीने के भीतर इंजेक्शन लेना बंद कर दिया था, उनमें यह कमी 6.8 प्रतिशत थी. यानी कि ट्रीटमेंट बंद करने और कम डोज से मेडिकली रूप से वजन घटाने की संभावना कम हो जाती है.'

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इसके अलावा अधिक रखरखाव खुराक (दवा के प्रभाव को बनाए रखने के लिए आवश्यक मात्रा) लेने वालों में सेमाग्लूटाइड के सेवन से 13.7 प्रतिशत और टिर्जेपेटाइड के सेवन से 18 प्रतिशत वजन कम हुआ था. प्री-डायबिटीज वाले मरीज जिन्होंने 3 महीने के भीतर इंजेक्शन लेना बंद कर दिया, उनमें से 33 प्रतिशत को सामान् ब्लड शुगर लेवल का अनुभव हुआ था जबकि 3-12 महीनों के भीतर इंजेक्शन लेना बंद करने वालों में यह लेवल 41 प्रतिशत था. वहीं जिन्होनें ट्रीटमेंट बंद नहीं किया था उनमें यह लेवल 67.9 प्रतिशत था.

टीम ने पाया कि जो लोग दवाइयां लेना बंद नहीं करते या अधिक डोज लेते हैं, उनमें 1 साल में कम से कम 10 प्रतिशत वजन कम होने की संभावना अधिक होती है. 

परिणाम आश्चर्यजनक नहीं हैं: डायबिटीज स्पेशलिस्ट

रिसर्च के परिणामों पर चेन्नई स्थित डॉ. मोहन डायबिटीज स्पेशलिटीज सेंटर के चेयरमैन और सीनियर डायबिटीज स्पेशलिस्ट डॉ. वी. मोहन (Dr. V. Mohan) जिन्होंने अपने मरीजों को वजन घटाने वाली दवाएं दी हैं उन्होंने कहा, 'रिसर्च के निष्कर्ष आश्चर्यजनक नहीं हैं क्योंकि क्लिनिकल ट्रायल में मरीजों को ट्रीटमेंट में दी जाने वाली दवा का ध्यान रखा जाता है. दूसरी ओर जब लोग इसे इस्तेमाल करते हैं खासकर वे मरीज जो अपनी दवा खुद खरीदते हैं, वे अक्सर दवा लेना बंद कर देते हैं. निष्कर्ष यह है कि ये दवाएं तब तक काम करती हैं जब तक इन्हें लिया जाता है. अधिकांश दवाओं के साथ ऐसा ही होता है. उदाहरण के लिए यदि आप स्टैटिन लेना बंद कर देते हैं तो कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ जाता है. यदि आप डायबिटीज या बीपी वाली दवाएं लेना बंद कर देते हैं तो शुगर और बीपी बढ़ जाता है.' 

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