कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वैरिएंट (Omicron variant) ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों को सतर्क कर दिया है. इसे लेकर अभी कोई भी स्पष्ट जानकारी लोगों के पास नहीं है लेकिन एक चीज को लेकर वैज्ञानिक आश्वस्त हैं कि इस वैरिएंट में बहुत ज्यादा म्यूटेशन हैं, खासतौर से इसके स्पाइक प्रोटीन में.
ओमिक्रॉन दुनिया के कुछ हिस्सों में तेजी से फैलता नजर आ रहा है. इस वैरिएंट का सबसे पहला मामला अफ्रीका में पाया गया था. वहां के कुछ वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस वैरिएंट में बीमारी को ज्यादा गंभीर बनाने की क्षमता नहीं है लेकिन WHO ने उपलब्ध डेटा के आधार पर फिलहाल लोगों को सावधान रहने की सलाह दी है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स- ऑस्ट्रेलिया के ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी के 'सेंटर फॉर प्लैनटेरी हेल्थ एंड फूड सिक्योरिटी' के डायरेक्टर हमिश मैक्कलम का कहना है कि अभी ये स्पष्ट नहीं है कि इसमें डेल्टा जैसे अन्य वैरिएंट की तुलना में वैक्सीन से बचने की बेहतर क्षमता है या नहीं.
हालांकि, किसी भी वायरस के लिए ये आम बात है कि आबादी में एक बार फैल जाने के बाद वो कम खतरनाक रह जाता है. इसका एक बेहतरीन उदाहरण पहली बार ऑस्ट्रेलिया के खरगोशों में फैला मायक्सोमैटोसिस है.
इस वायरस की वजह से 99% खरगोशों की मौत हो गई थी लेकिन वर्तमान में इसकी वजह से मौत की दर बहुत कम हो गई है. कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोरोना भी धीरे-धीरे सीमित रह जाएगा. स्थानीय जगह में फैले संक्रमण के एक पैटर्न में सेट हो जाने के बाद इसकी गंभीरता भी कम हो जाएगी. हो सकता है कि ओमिक्रॉन वैरिएंट इस प्रक्रिया में पहला कदम हो.
एमिक्रॉन संक्रमण के हल्के लक्षण का क्या मतलब? ओमिक्रॉन को लेकर कहा जा रहा है कि इसके लक्षण हल्के हैं. कई लोग कम गंभीर लक्षण को खतरनाक नहीं मानते हैं. हालांकि एक्सपर्ट्स के अनुसार, कम लक्षण दिखाई देने पर लोग टेस्टिंग कम कराते हैं और आइसोलेट भी नहीं होते हैं. कुछ लोगों को पता भी नहीं चलता है कि उन्हें कोरोना हुआ है. इसलिए ज्यादा ज्यादा वायरल लोड वाले स्ट्रेन की तुलना में हल्के लक्षण वाला संक्रमण भी तेजी से फैल सकता है.
दूसरी तरफ, जैसा कि डेल्टा समेत कई वैरिएंट में देखा गया है कि बाकी की तुलना में उनका वायरल लोड ज्यादा होता है. यानी संक्रमित व्यक्ति के शरीर में वायरस ज्यादा मात्रा में मौजूद होता है. ऐसे लोग इसे आसानी से दूसरों में फैला देते हैं. यानी कि शरीर में वायरस की मात्रा (वायरल लोड) जितनी अधिक होगी, संक्रमण फैलने की संभावना और उसकी गंभीरता उतनी ही अधिक होगी.
अभी ये स्पष्ट नहीं है कि ओमिक्रॉन क्यों ज्यादा संक्रामक है. खासकर दक्षिण अफ्रीका में. इस बात की भी जानकारी नहीं है कि ओमिक्रॉन वैरिएंट में वायरल लोड ज्यादा है या नहीं. वायरस संक्रमण एक जटिल और कई चरणों की प्रक्रिया है और ज्यादा संक्रमण दर के लिए कई बातें जिम्मेदार हो सकती हैं.
कुछ वैरिएंट्स क्यों हावी हो जाते हैं- इवॉल्यूशनरी बायोलॉजी से पता चलता है कि कुछ वैरिएंट्स तभी हावी हो सकते हैं जब वो वायरस के मौजूदा स्ट्रेन की तुलना में ज्यादा तेजी से फैलते हों.
इसके दो मतलब हैं- जिन स्ट्रेन का R नंबर (एक संक्रामक व्यक्ति से दूसरों के संक्रमित होने वाले लोगों की औसत संख्या) ज्यादा होता है, वो कम R नंबर वालों की जगह ले लेते हैं.
इसी तरह, कुछ स्ट्रेन जो संक्रमण में ज्यादा वक्त लेते हैं, उनकी जगह ऐसे स्ट्रेन ले लेते हैं जो संक्रमण में कम वक्त लेते हैं. यानी कम इन्क्यूबेशन पीरियड वाले स्ट्रेन लंबे इन्क्यूबेशन पीरियड वाले स्ट्रेन की जगह ले लेते हैं. जैसे डेल्टा के साथ हुआ. कोरोना के पहले स्ट्रेन के इन्क्यूबेशन पीरियड की तुलना में डेल्टा का इन्क्यूबेशन पीरियड कम था.
एक्सपर्ट्स का कहना है, जिस क्षेत्र की आबादी में वैरिएंट मिलता है, उसमें वायरल के स्ट्रेन के विकास पर ध्यान देना चाहिए. ज्यादा वैक्सीनेशन वाली आबादी की तुलना में कम वैक्सीनेशन वाली आबादी पर ये अलग तरीके से काम करता है.
दक्षिण अफ्रीका में सिर्फ 25 फीसदी आबादी को ही वैक्सीन लगी है, जहां सबसे पहले ओमिक्रॉन वैरिएंट की पहचान हुई है. एक्सपर्ट्स के अनुसार, ऐसी जगह पर ज्यादा R नंबर वाले स्ट्रेन के पैर जमाने की ज्यादा आशंका है. ज्यादा वैक्सीनेटेड आबादी में वायरस के उसी स्ट्रेन के हावी होने की संभावना ज्यादा रहती है, जो वैक्सीन से बचने में सक्षम हो. भले ही वहां वैक्सीन ना लगवाने वालों में R नंबर कम क्यों ना हो.
वैक्सीनेशन है जरूरी- ओमिक्रॉन वैरिएंट को लेकर वैज्ञानिक अभी बहुत कुछ समझने की कोशिश कर रहे हैं. जैसे कि मौजूदा वैक्सीन या इम्यून रिस्पॉन्स से बच निकलने में ये सक्षम है या नहीं. ज्यादा वैक्सीनेटेड आबादी में ये वैरिएंट अलग व्यवहार कर सकता है. जैसे कि ज्यादा वैक्सीनेटेड आबादी वाले ऑस्ट्रेलिया में ओमिक्रॉन के कम मामले हैं जबकि दक्षिण अफ्रीका में जहां वैक्सीनेशन कम हुआ है, वहां तेजी से फैल रहा है. एक्सपर्ट्स का कहना है इस नए वैरिएंट का मुकाबला करने के लिए COVID महामारी को दूर करने के लिए दुनिया भर में प्रभावी वैक्सीनेशन जरूरी है.