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रेलवे कोल घोटाला: बंगाल सरकार पर आरोपियों को बचाने के प्रयास का आरोप, केंद्र ने SC में दायर किया हलफनामा

केंद्र सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि कई राज्यों या अखिल भारतीय प्रभाव वाले अपराध की जांच CBI से कराए जाने के कारण देश के संघीय ढांचे को कोई नुकसान नहीं होगा.

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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पश्चिम बंगाल सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में दायर किया है सूट
  • केंद्र ने राज्य पर आरोपियों को बचाने के प्रयास का लगाया आरोप

पश्चिम बंगाल और केंद्र सरकार के बीच रेलवे कोल घोटाला मामले को लेकर तानतनी चल रही है. इस मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर दिया है. अपने हलफनामें में केंद्र ने बंगाल सरकार पर आरोपियों को बचाने के प्रयास का आरोप लगाया है. केंद्र ने कहा है कि बंगाल सरकार का सूट कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के बराबर है लिहाजा इसे खारिज किया जाना चाहिए.

केंद्र सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि कई राज्यों या अखिल भारतीय प्रभाव वाले अपराध की जांच केंद्रीय जांच एजेंसी (CBI) से कराए जाने के कारण देश के संघीय ढांचे को कोई नुकसान नहीं होगा. राज्य सरकार की ओर से सामान्य सहमति वापस लिए जाने के कारण CBI के लिए अपराधों की जांच के लिए कोई बाधा नहीं है. ऐसे में ये समझ में नहीं आ रहा है कि राज्य सरकार ऐसी जांच के रास्ते में क्यों आ रही है. सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले में 16 नवंबर को सुनवाई करेगा.

सुनवाई के दौरान जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस भूषण आर गवई की पीठ ने बंगाल सरकार की ओर से पेश कपिल सिब्बल से कहा कि वो केंद्र के हलफनामे पर कोई जवाब यानि रिजॉइंडर दस्तावेज दाखिल कर सकते हैं. केंद्र ने ये हलफनामा बंगाल सरकार के उस सूट पर दाखिल किया है जिसमें केंद्र पर संघीय ढांचे के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है. बंगाल सरकार की ओर से सामान्य सहमति वापस लिए जाने के बावजूद सीबीआई ने मामले दर्ज किए हैं. केंद्र सरकार ने कहा है कि सीबीआई ने राज्य सरकार से छह मामलों में FIR दर्ज करने की इजाजत मांगी थी लेकिन राज्य सरकार ने इससे इनकार कर दिया और केंद्रीय एजेंसी ने ये केस दर्ज नहीं किए.

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केंद्र सरकार ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत सूट पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से एक गलत धारणा रखते हुए दायर किया गया है कि सामान्य सहमति को वापस लेने की शक्ति संपूर्ण है. केंद्र ने कहा है कि रेलवे के क्षेत्र में किए गए अपराध या सीमा पार अंतरराष्ट्रीय अवैध व्यापार से संबंधित अपराध, प्रत्यक्ष प्रशासन के तहत कर्मचारियों से संबंधित अपराध, बहु-राज्य प्रभाव वाले अपराध की जांच से जुड़े मसलों पर केंद्र सरकार का नियंत्रण है. यह अप्रासंगिक है कि संबंधित राज्य सरकार ने अपनी सहमति दी है या नहीं, क्योंकि संविधान और DPSE अधिनियम स्पष्ट रूप से सीबीआई को ऐसे मामले में जांच करने की शक्ति प्रदान करते हैं,

केंद्र सरकार ने ये भी कहा है कि अगर राज्य पुलिस सशस्त्र बलों, रेलवे, परमाणु ऊर्जा, उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क से संबंधित विषयों को लेकर किए गए अपराध की जांच नहीं कर सकती है. क्या राज्य यह तर्क दे सकता है कि केंद्रीय एजेंसियां ​​भी इसकी जांच नहीं कर सकतीं क्योंकि उस विशेष राज्य द्वारा सहमति सामान्य वापस ले ली गई है? इसका परिणाम ये होगा कि एक शून्य उत्पन्न होगा जिसके तहत कोई भी प्राधिकरण नहीं होगा जो केंद्रीय अधिनियमों के तहत उन अपराधों की जांच कर सके. इसलिए राज्य सरकार की ओर से सहमति वापस लेने से संबंधित अपराध पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. ऐसी कई जांच हैं जो केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ की जा रही हैं या ऐसे अपराधों की जांच करने के उद्देश्य हैं. जहां एक से अधिक राज्यों पर अखिल भारतीय प्रभाव या प्रभाव है. यह हमेशा वांछनीय है और न्याय के व्यापक हित में केंद्रीय एजेंसी ऐसे मामलों में जांच करती है.

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ममता सरकार ने दाखिल किया है सूट

इस ओरिजनल सूट में ममता सरकार ने आरोप लगाया है कि पश्चिम बंगाल में सहमति वापस लेने के बावजूद सीबीआई FIR दर्ज करके शासन के संघीय ढांचे का उल्लंघन कर रही है. ममता सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत राज्य की ओर से दायर मूल मुकदमे पर जल्द सुनवाई की मांग भी की. सूट में राज्य की ओर से कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में घटनाओं से संबंधित मामलों के पंजीकरण के लिए सीबीआई से सामान्य सहमति वापस लेने के  तीन साल बाद भी सीबीआई ने राज्य में हुई घटनाओं से संबंधित 12 मामले दर्ज किए हैं.

ममता सरकार ने ये भी कहा है कि कानून और व्यवस्था, पुलिस को संवैधानिक रूप से राज्यों के विशेष अधिकार क्षेत्र में रखा गया है लिहाजा सीबीआई की ओर से मामले दर्ज करना अवैध है. ये केंद्र और राज्यों के बीच संवैधानिक रूप से वितरित शक्तियों का उल्लंघन है. पश्चिम बंगाल सरकार ने कहा कि उसने साल 2018 में सामान्य सहमति वापस ले ली थी लेकिन उसके बाद भी मामले दर्ज किए जा रहे हैं. उधर, कोयला घोटाला मामले में टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी के खिलाफ की गई कार्रवाई से नाराज ममता बनर्जी सरकार ने केंद्र और उसकी जांच एजेंसियों के खिलाफ मामले दर्ज करके देश के संघीय ढांचे का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष केंद्र-राज्य विवाद उठाया है.

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राज्य ने बताए 12 मामले

राज्य सरकार की ओर से बताए गए 12 मामलों में ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड की खदान से संबंधित करोड़ों रुपये के कथित घोटाले भी शामिल हैं. गौरतलब है कि सीबीआई की ओर से दर्ज मामले के आधार पर ईडी ने PMLA के तहत मामला दर्ज कर टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी को तलब किया था. हालांकि, केंद्र सरकार के नियंत्रण वाले रेलवे क्षेत्र में कथित तौर पर हुए कोयला घोटाले के मामले में सीबीआई की FIR की वैधता को लेकर पहले ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है.

बंगाल सरकार का कहना है कि जिन राज्यों ने DSPE अधिनियम की धारा छह के तहत सामान्य सहमति वापस ले ली है. वहां सिर्फ संवैधानिक अदालतों के आदेश पर ही सीबीआई मामले दर्ज कर सकती है. बता दें कि राज्य सरकार ने 2 अगस्त 1989 को 16 नवंबर 2018 को दी गई सहमति को वापस ले लिया था.

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