वैवाहिक दुष्कर्म यानी मेरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने की याचिकाओं की शीघ्र सुनवाई के लिए उल्लेख करने पर सुप्रीम कोर्ट ने भरोसा दिलाया है कि वो इन याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए कोई तारीख नियत नहीं की है. दरअसल, याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंह और करुणा नंदी ने सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग की थी. इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के दो जजों की पीठ ने खंडित फैसला दिया था.
दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने इस मामले की विस्तृत सुनवाई की थी. लेकिन पिछले साल 11 मई 2022 को दिल्ली हाईकोर्ट के 2 जजों ने अलग-अलग फैसला दिया था. जस्टिस राजीव शकधर ने वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को रद्द करने का समर्थन किया था. वहीं, जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि आईपीसी के तहत अपवाद असंवैधानिक नहीं है और एक समझदार अंतर पर आधारित है.
इसके बाद इस मामले की सुनवाई बड़ी पीठ के समक्ष कराए जाने की सिफारिश की गई थी. इस पर साल भर से ज्यादा बीत जाने के बावजूद हाईकोर्ट ने अब तक कोई निर्णय नहीं लिया है. दिल्ली हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता रही खुशबू सैफी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है.
इसी बीच याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट आ गए. अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि मैरिटल रेप अपराध है या नहीं. भारतीय कानून में मैरिटल रेप कानूनी अपराध नहीं है. इसे अपराध घोषित करने की मांग को लेकर कई संगठनों की मांग लंबे अरसे से जारी है. दिल्ली हाईकोर्ट में आईपीसी की धारा 375(दुष्कर्म) के तहत वैवाहिक दुष्कर्म को अपवाद माने जाने को लेकर संवैधानिक तौर पर चुनौती दी गई.
2021 में केरल कोर्ट ने की थी ये टिप्पणी
बता दें कि पिछले साल 2021 अगस्त में केरल हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा था, 'भारत में मैरिटल रेप के लिए सजा का प्रावधान नहीं है, लेकिन इसके बावजूद ये तलाक का आधार हो सकता है.' हालांकि, केरल हाईकोर्ट ने भी मैरिटल रेप को अपराध मानने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा था कि मैरिटल रेप या वैवाहिक बलात्कार भारत में अपराध नहीं है. अगर कोई पति अपनी पत्नी से उसकी सहमति के बगैर सेक्सुअल रिलेशन बनाता है तो ये मैरिटल रेप कहा जाता है लेकिन इसके लिए कोई सजा का प्रावधान नहीं है.
2017 में केंद्र ने कहा था मैरिटल रेप अपराध नहीं
2017 में मेरिटल रेप को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था, 'मैरिटल रेप को अपराध करार नहीं दिया जा सकता है और अगर ऐसा होता है तो इससे शादी जैसी पवित्र संस्था अस्थिर हो जाएगी.' ये तर्क भी दिया गया कि ये पतियों को सताने के लिए आसान हथियार हो सकता है.