सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाईकोर्ट का जज नियुक्त करने की मांग वाली एक याचिका को ख़ारिज कर दिया. कोर्ट ने इस मामले को न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग और "सिस्टम का मज़ाक" बताते हुए याचिका पर सुनवाई करने से साफ इनकार कर दिया. उस अर्जी में याचिकाकर्ता ने स्वयं को हाईकोर्ट का जज नियुक्त करने की सिफारिश करने की गुहार लगाई थी. अदालत ने इस याचिका को “न्याय प्रणाली का मज़ाक” बताया.
मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई ने नाराज़गी व्यक्त करते हुए कहा, "मैं एक काम करता हूं, मैं यहीं पर कॉलेजियम मीटिंग के लिए तीन वरिष्ठतम (सुप्रीम कोर्ट) जजों की एक बेंच बनाता हूं. आपने कहां सुना है कि हाईकोर्ट का जज नियुक्त होने के लिए अभ्यावेदन और आवेदन दिया जाता है? यह सिस्टम का मज़ाक है!"
जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ, जी वी सरवन कुमार नामक व्यक्ति द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें हाईकोर्ट के जज के रूप में पदोन्नत करने की मांग की गई थी.
ऐसी याचिकाओं का कोर्ट में ना लाया जाए
मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि ऐसी याचिका कैसे दायर की जा सकती है. पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील को भी फटकार लगाते हुए कहा कि ऐसी याचिका अदालत के समक्ष कभी नहीं लाई जानी चाहिए थी.
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वकील ने अपनी गलती मानते हुए खेद व्यक्त किया और याचिका वापस लेने की मांग की. इसके बाद याचिका को वापस लिए जाने के आधार पर ख़ारिज कर दिया गया.
याचिकाकर्ता ने इस अजीबोगरीब याचिका में हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के अलावा, प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO), गृह मंत्रालय, लोकसभा में विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल समेत कई अन्य को भी पार्टी बनाया था.
न्यायाधीशों की नियुक्ति कॉलेजियम प्रणाली द्वारा शासित होती है, जिसमें न्यायिक और पेशेवर साख के आधार पर जजों के नामों की सिफारिश की जाती है.