अक्सर लोग उधार के बदले चेक लेकर अपने किसी करीबी, जानने वाले या दोस्तों पर पूरा यकीन कर लेते हैं. लेकिन अगर वो चेक बाउंस हो जाए, वो पैसा वापस लौटाने से मुकर जाए तो हम कोर्ट का रुख करते हैं. दिल्ली की एक कोर्ट में चेक बाउंस के एक केस में मुलजिम को कोर्ट ने बरी कर दिया. वजह सिर्फ इतनी कि उसने इस केस को दर्ज करने के लिए जरूरी शर्तें पूरी नहीं की थीं. आइए एक्सपर्ट से जानते हैं- क्या है वो पूरा केस और क्या होती हैं शर्ते.
भजनपुरा थाने में दर्ज चेक बाउंस के इस मामले में वादी और प्रतिवादी के बीच 2.5 लाख रुपये की उधारी को लेकर विवाद हुआ था. वादी ने कहा कि हम दोनों में अच्छी दोस्ती थी. हमने इन्हें जरूरत पड़ने पर पैसा दिया और वादी ने दावा किया कि मुलजिम ने उधार के बदले चेक जारी किया, जो बाउंस हो गया और इसके बाद कानूनी नोटिस भेजा गया. उनके हिसाब से ये पूरी प्रकिया कानूनी थी. हालांकि, मुलजिम के अधिवक्ता मनीष भदौरिया ने अदालत में दलील दी कि वादी ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत आवश्यक कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया है. इसी के चलते इस केस में वादी को कोई राहत नहीं मिल सकी.
मुलजिम के अधिवक्ता मनीष भदौरिया ने तर्क दिया कि वादी ने नोटिस भेजने में 31 दिनों का समय लिया, जो कि 30 दिनों के भीतर ही भेजा जा सकता है. इसके अलावा, नोटिस में प्राप्तकर्ता का पता अधूरा था, जिससे यह साबित नहीं होता कि नोटिस मुलजिम को प्राप्त हुआ. वादी ने नोटिस की जो जानकारी कोर्ट को दी थी, उसमें अंकित था कि नोटिस मुलजिम को मिला ही नहीं.
इस प्रकार, अदालत में यह मामला इस बात पर केंद्रित हो गया कि वादी ने चेक बाउंस के मामले में आवश्यक कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया. इसमें हाईकोर्ट में हुए फैसलों की नजीरें भी गई हैं. अधिवक्ता मनीष भदौरिया ने कहा कि चेक बाउंस के केस में लोग अक्सर यही गलती करते हैं. यह एक्ट इतना आसान नहीं है. आइए जानते हैं क्या हैं वो 6 प्वाइंट्स जो आपको चेक बाउंस केसेज में जरूर ध्यान रखने चाहिए.
क्या है नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 एक ऐसा कानून है जो चेक, प्रॉमिसरी नोट और बिल ऑफ एक्सचेंज जैसे दस्तावेजों से जुड़े लेन-देन को सुरक्षित और भरोसेमंद बनाता है. इस कानून के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी को भुगतान करने के लिए चेक देता है और वह चेक बाउंस हो जाता है तो उसे दंडित किया जा सकता है.
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 की जरूरी शर्तें भी रखें याद
चेक का प्रस्तुतीकरण: चेक को उसकी वैधता अवधि (अधिकतम 3 महीने) के भीतर बैंक में प्रस्तुत किया जाना चाहिए.
चेक का उद्देश्य: चेक किसी वैध ऋण या देनदारी के भुगतान के लिए जारी किया गया हो.
बाउंस होने की सूचना: बैंक से चेक बाउंस की सूचना प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर वादी को मुलजिम को लिखित नोटिस भेजना चाहिए.
भुगतान की अवधि: नोटिस प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर मुलजिम को भुगतान करना चाहिए.
मुकदमा दायर करना: यदि मुलजिम भुगतान नहीं करता है, तो वादी को 30 दिनों के भीतर अदालत में शिकायत दर्ज करनी चाहिए.