आज 66 साल की हो गई हमारी आजादी. इन 66 सालों में हमने तरक्की के हजारों फ़साने लिखे हैं लेकिन ये फसाने कभी न लिखे जाते अगर इसकी बुनियाद में कुछ फांसियों की टीस न दबी होती लेकिन ऐसा लगता है कि हमारी सियासत ने हमें शहादत की इबादत नहीं सिखाई. जिन कुर्बानियों को हमें गणतंत्र के गुमान की तरह अपनी सांसों का हिस्सा बनाना चाहिए था उसे यादों से भी अलग कर दिया.