उत्तराखंड की वादियों में हर किसी को सुकून मिलता है. लेकिन प्रदेश के अस्तित्व में आने के बाद से ही किसी भी मुख्यमंत्री को सीएम आवास में सुकून नसीब नहीं हुआ. यहां के हर सीएम ने मुख्यमंत्री आवास से परहेज रखा, जबकि मुख्यमंत्री आवास करोड़ों रुपये की लागत से तैयार किया गया है. वर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी सीएम आवास छोड़ देहरादून में गेस्ट हाउस को अपना आशियाना बनाया है. ऐसा नहीं है कि नेता सादगी पसंद हो गए हैं बल्कि इसके पीछे जो कारण है वह असल में एक खौफ की दास्तान है.
जानकारी के लिए बता दें कि मुख्यमंत्री आवास पर न तो भूत-प्रेत का साया है और न ही किसी से खतरा. सूबे के मुखिया हरीश रावत सत्ता संभालने के बाद से ही देहरादून के एकमात्र अतिथि गृह में डेरा जमाए हुए हैं. यानी ‘राजा’ बेघर है और ‘राजमहल’ में सन्नाटा है. ऐसे में यह सवाल हवाओं में तैर रहा है कि ‘राजमहल’ में वास करने से ‘राजा’ क्यों कतरा रहे हैं? कहीं राजमहल पर वास्तुदोष का साया तो नहीं!
इतिहास के पन्नों से...
आलीशान मुख्यमंत्री आवास का इतिहास वैसे तो बहुत पुराना नहीं हैं, लेकिन अजब संयोग है कि इसमें वास करने के लिए जो भी ‘राजा’ बनकर आया, उसे रंक बनकर विदा होना पड़ा. दरअसल, आज जहां मुख्यमंत्री आवास है, राज्य गठन से पहले वहां रेस्ट हाउस हुआ करता था. राज्य बना तो अंतरिम सरकार में उसे मुख्यमंत्री आवास बना दिया गया. लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी ने इसे अपने कार्यालय के तौर पर इस्तेमाल किया. मुख्यमंत्री एनडी तिवारी इसके बगल में सर्किट हाउस में रहा करते थे. तिवारी ने वहां पांच साल पूरे किए. लेकिन पांच साल के दौरान उनकी कुर्सी न जाने कितनी बार हिलती-डुलती रही.
एनडी तिवारी के बाद मेजर जनरल बीसी खंडूड़ी मुख्यमंत्री बने. उनके कार्यकाल में नए मुख्यमंत्री आवास का काम शुरू हुआ. आवास बनकर तैयार तो हो गया, लेकिन उसमें प्रवेश करने से पहले ही खंडूड़ी सत्ता से विदा हो गए. नए आवास में दाखिल होने का चांस मिला सीएम डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को. लेकिन संयोग देखिए कुछ दिनों बाद ही उनकी भी कुर्सी छिन गई. खंडूड़ी ने वापसी की और वह भी नए आवास में तीन महीने ही समय गुजार सके.
जाहिर है कोई भी नेता अपनी राजनीति में इस 'दोष' को जगह नहीं देना चाहता. फिर चाहे खुद अपनी 'जगह' से क्यों न दूर रहना पड़े.