
यहां घरों की दीवारों पर गहरी-गहरी दरारें हैं, सड़कें धंसती जा रही हैं, जमीन पर जगह-जगह से जमीन फाड़ कर पानी निकल रहा है. यह हाल है उत्तराखंड के जोशीमठ का. यहां पहले चरण में 678 मकानों और 2 होटलों को असुरक्षित घोषित किया जा चुका है. लोगों से जगह खाली करने के लिए कहा जा रहा है. घरों पर लाल खतरे वाले निशानों ने स्थानीय लोगों के चेहरे का रंग उड़ा दिया है. उजड़ते आशियाने देख हर तरफ सिर्फ चिंता और मायूसी छाई हुई है. आज से होटलों और घरों को गिराने का काम किया जाने वाला है.
जोशीमठ से औली जाते हुए आइटीबीपी का कैंप पार करने के बाद खुली जगह पर एक मकान सा दिखता है. पास में सड़क पर उतरते ही एक दुकान दिखती है, जिसका शटर बंद है. सड़क से नीचे उतरने के लिए सीढ़ी वाला रास्ता बना है. सीढ़ियों पर दरार दिख रही है. सड़क और मकान के बीच में जमीन फट गई है. 10-15 सीढ़ियां नीचे उतरते ही दोनों ओर मकान हैं. मकान की दीवारों पर दरारें आ चुकी हैं. खाली पड़े मकान जोशीमठ में तबाही की आशंका का एक उदाहरण मात्र हैं. जब हम इन दरारों को देख रहे थे, तो वहां एक महिला शॉल लपेटे हुए सीढ़ियों से आती हुई दिखाई दी. सिर में कंछुपा (पहाड़ी महिलाओं की टोपी) पहने हुए महिला हमें देख झिझक गई. शाम का वक्त था. उसके हाथ में बाल्टी थी. वह दूध दूहने एक बार फिर उस घर मे आई है, जहां जीवन भर की उसकी यादें छिपी हैं और अचानक से उससे यह घर खाली कराकर उसे दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया गया.

कुछ देर में अंधेरा होने को है, महिला जैसे ही आंगन में पहुंची अपने पूरे घर को देखती है. आशियाना उजड़ने का दुख उसके चेहरे पर साफ झलक रहा है. घर पर प्रसाशन ने लाल क्रॉस निशान बना दिया है. यानी यहां कोई नहीं रह सकता. सिर्फ मवेशी हैं. महिला आंगन को निहार, नीचे की ओर नजर घुमाती है. फिर कुछ बुदबुदाती है और गोशाला की तरफ चली जाती है.
महिला गोशाला में दूध निकालने और तीनों गायों को चारा देती है. चारा अक्टूबर-नवंबर में गायों के लिए इकट्ठा कर दिया था जो अभी तक चल रहा है. बाहर निकलकर बताती है हमें तो शिफ्ट कर दिया लेकिन हमारे मवेशी अभी यहीं हैं. प्रसाशन ने घर पर लाल निशान लगा दिया है और हम लोगों को 3 दिन पहले बोला कि अब इस घर में नहीं रह सकते हैं. महिला कहती है कि 2003 में मेरी शादी होकर मैं इस घर में आई थी. प्रमोद सकलानी मेरे पति का नाम है, 3 दिन पहले तक हम लोग इसी घर में रह रहे थे लेकिन अब यहां एसडीएम ओर उनकी टीम आई उन्होंने बताया यहां नहीं रह सकते हैं, पहले हमें जोशीमठ बाजार में पर्यटन विभाग के होटल या गेस्ट हाउस में शिफ्ट किया जा रहा था लेकिन हमने अपने मवेशियों के बारे में बताया तब हमें यही पास के पहाड़ी कैफे में रुकवाया गया है, फिलहाल वहीं रह रहे हैं. मुख्यमंत्री तो दो दिन पहले खुद भी हमारे यहां देखने आये थे और वो बता रहे थे कि बात प्रधानमंत्री जी तक पहुंच गई है तो जरा उम्मीद है कुछ होगा. वरना तो जब से दरार आई, तब से कुछ नहीं हुआ. किसके पास नहीं गए हम, जहां तक हो सकता था वहां गए लेकिन कुछ मदद नहीं मिली.

घर की ओर इशारा करते हुए गीता देवी भावुक हो जाती हैं. वे बताती हैं कि घर टूटने की कगार पर है. ये दरारें आज की नहीं हैं. आज पास परिवार के और लोग रहते हैं, उनके घर में भी दरारें हैं. घरों में रहना मुश्किल था. हम पिछले साल से कह रहे थे, लेकिन कोई नहीं सुन रहा था. गीता देवी बताती हैं कि पिछले साल जब अक्टूबर में बारिश आई थी, उसके बाद से पूरे जोशीमठ के घरों में दरारे आ गईं. बहुत समाचार वाले आए, फोटो खींची, सब आए लेकिन कुछ नहीं हुआ. हम डर के साए में रातें बिताते रहे, हमें तो उम्मीद भी नहीं बची थी. लेकिन इस बार जब जोशीमठ में सुना कि हर तरफ दरार आ गई, तो अभी पिछले कुछ दिनों से रोजाना हमारे पास हर कोई आ रहा है. प्रशासन, मंत्री, मुख्यमंत्री जी भी यहां आए, हर कोई दिलासा दे रहा है फिलहाल प्रशासन ने हमारे सुरक्षित स्थान पर रहने के लिए व्यवस्था की है. उन्होंने बताया कि प्रशासन बोल रहा है, नई गोशाला बनाई जाएगी, वहीं गाय को भी ले जाना.
गीता की आंखों में बेबसी, चेहरे पर निराशा और शब्दों में भावुकता है. आंखों में हल्के हल्के आंसू हैं. वे बताती हैं कि इस घर में 2003 से 2021 तक हंसी खुशी से रहे लेकिन 2021 में जो बारिश हुई उसके बाद से यह घर हर रोज डराता रहा. बरसात में रात रात नींद नहीं आती, डर लगा रहता था, बोल नही पाते थे पर मन ही मन सोचते थे, टूटेगा तो क्या होगा? कहां जाएंगे.

महिला कहती है कि बारिश और बर्फबारी वैसे औली के नीचे है और हम यहां पर अकेले हैं तो हवाएं भी बहुत तेज चलती हैं. इन दरारों से हमारे घरों के अंदर तक ठंडी हवाएं आती थीं, जहां बच्चे पढ़ाई करते थे वहां बड़ी बड़ी दरारें पड़ गईं. 14 महीने हमने इन घरों में ऐसे ही गुजारे हैं. गीता यहां से चलते हुए कहती हैं कि अंधेरा होने को है समय पर पहुंचना है, जहां प्रशासन ने रखा है.

12 से 15 सीढ़ी चढ़कर सड़क पर पहुंचते ही इसी मकान की छत पर एक दुकान दिखाई देती है. यह गीता देवी सकलानी के पति प्रमोद की है. प्रमोद की उम्र 45 से 50 के बीच है. प्रमोद अपनी दुकान को देख रहे हैं, शटर बंद है. मकान की तरह दुकान पर भी लाल निशान है. वे बताते हैं कि इसी दुकान में चाय बेचते हैं. दुकान औली मार्ग पर है, ऐसे में कुछ परचून का सामान भी रखा है. औली में सर्दियों में बड़ी संख्या में सैलानी पहुंचते हैं, इससे दुकानदारी हो जाती है.
प्रमोद बताते हैं कि इस बार दुकान बंद है. जोशीमठ पूरी तरह से बर्बाद हो रहा है. क्या होगा पता नहीं? प्रमोद के चेहरे पर चिंता की लकीर साफ तौर पर देखी जा सकती है. पूछते हैं कि क्या मकान बन पाएगा, या ऐसे ही गुजारा करना पड़ेगा.

बरसात में उड़ जाती थी नींद
प्रमोद कहते हैं बरसात के दिन में हम लोगों की नींद उड़ जाती थी. आज भी हम लोग सो नहीं पा रहे हैं हमें चिंता इस बात की नहीं कि मकान टूटेगा, हमें चिंता इस बात की है कि मकान टूटेगा तो हम कैसे दूसरा मकान बना पाएंगे? क्योंकि हमारे पास इतना बड़ा रोजगार नहीं है और अगर सरकार अब मकान टूटने के बाद हमें मुआवजा भी देती तो लोग बताते हैं कि तुम्हें ₹4 लाख मिलेगा उसमें क्या बन पाएगा? इतना बड़ा मकान था, लेकिन 4 लाख में तो दो कमरे भी नहीं बन पाएंगे. यह कहते कहते प्रमोद भावुक हो जाते हैं.
वे बताते हैं कि सोचा था औली रोड पर मकान है, थोड़ा थोड़ा पैसा जोड़कर होम स्टे बनाएंगे. ताकि कुछ पैसे कमाए जा सकें और बच्चों के लिए कुछ अच्छा कर सकें लेकिन हम पर ऐसी मार पड़ी कि ऐसी मार किसी पर ना पड़े. खेती-बाड़ी में भी ऐसा नहीं हो पाता है इसलिए दुकान चलाता हूं अब वह भी बंद हो गई है. क्या होगा? कुछ समझ नहीं आ रहा है.

दूसरी बार छोड़ना पड़ रहा आशियाना
प्रमोद बताते हैं कि वे 1970 में आए भूस्खलन में अपना गांव सेमा छोड़कर सुनील गांव आए थे. प्रमोद कहते हैं, ''हमारी किस्मत ऐसी ही है, पहले हम जोशीमठ के सबसे निचले छोर पर सेमा गांव में रहते थे, वहां हमें 1970 में घर छोड़ना पड़ा तब हमारे पिताजी हमें यहां लेकर आए थे. यहां हमारा पुराना मकान था. लेकिन अब ऐसा ही हाल जोशीमठ में हो गया.''
प्रमोद कहते हैं कि उनके पिता बताते थे कि कैसे उन्हें भूस्खलन के बाद तबाही की कगार पर खड़े सेमा गांव को छोड़ना पड़ा था. लेकिन अब हमारा ये घर भी टूटने की कगार पर है. अब हमें यह घर भी छोड़ना पड़ रहा, इन घरों में रहना अब संभव नहीं है.
प्रमोद कहते हैं कि हम तीन भाई हैं. 14 सदस्यों का परिवार है. तीनों भाई अलग-अलग रहते हैं. वे बताते हैं कि बड़े भाई की 6 बेटियों में तीन की शादी इसी घर से हुई. लेकिन अब घर उन्हीं यादों के साथ पीछे छूट गया है. बच्चों की पढ़ाई पर भी खतरा मंडराने लगा है. हम लोगों के पास सरकारी नौकरी नहीं है, हम लोग दूध बेचकर और दुकान से खर्चा चलाते हैं, लेकिन अब दुकान बंद है. ऐसे में बस सरकार से ही उम्मीद है.