राज्य स्थापना दिवस के मौके पर उतराखंड के देहरादून में रैबार नामक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसका मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शुभारंभ किया. रैबार गढ़वाली भाषा का शब्द है जिसका मतलब होता है पुकारना या कॉलिंग. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के सचिव भाष्कर खुल्बे, रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष अश्वनी लोहानी मौजूद रहे.
कोस्टगार्ड के महानिदेशक राजेंद्र सिंह, राज्य पलायन आयोग के उपाध्यक्ष एसएस नेगी के साथ ही नामचीन हस्तियों ने कार्यक्रम में हाजिरी लगाई. रैबार कार्यक्रम का मकसद उत्तराखंड मूल के लोगों के साथ बैठकर राज्य की प्रगति और भविष्य पर चिंतन करना है.
कई बड़ी हस्ती नहीं पहुंची 'रैबार' में
कार्यक्रम के शुरू होने से पहले बड़े कयास लगाए जा रहे थे कि कई बड़ी हस्तियां इसमें शामिल होंगी, जिनमें विशेष तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल और रॉ प्रमुख अनिल धस्माना को भी शामिल होना था. मगर किन्हीं अपरिहार्य कारणों की वजह से वो इस समारोह में शामिल नहीं हो सके, कारण कोई भी रहा हो पर उनका न आना निराशाजनक जरूर रहा, हालांकि सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत के आने से थोड़ा बहुत जरूर सुकून मिला.
नाराज भी रहे जनता के प्रतिनिधि
उत्तराखंड सरकार के इस कार्यक्रम में चिंतन तो मुख्य रूप से इस बात पर हुआ कि प्रदेश की सबसे गंभीर समस्या 'पलायन' पर कैसे रोक लगे. मगर आश्चर्यजनक रूप से जिन क्षेत्रों में पलायन की समस्या सबसे गंभीर रूप ले चुकी है, उन्हीं क्षेत्रों से चुने हुए विधायकों को ही इस गोष्ठी में आमंत्रित नहीं किया गया, जो कहीं न कहीं गोष्ठी की गंभीरता पर सवालिया निशान है.
'जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों से भद्दा मजाक'
रुद्रप्रयाग जिले के केदारनाथ विधानसभा सीट से विधायक मनोज रावत ने फोन के माध्यम से जानकारी दी कि न ही इस कार्यक्रम की उनको और उनके जैसे कई विधायकों को सूचना मिली और न ही कार्यक्रम में पहुंचने का कोई निमंत्रण ही मिला. विधायक की माने तो ये एक भद्दा मजाक ही है कि जनता जिनको चुन कर अपना प्रतिनिधत्व करने के लिए विधानसभा भेजती है, उनको ही सरकार ने एक ऐसे कार्यक्रम से दूर रखा जो सीधे तौर पर जनता से जुड़ा है.
'पहाड़ छोड़कर चला गया है महानुभावों का परिवार'
केदारनाथ विधायक मनोज रावत ने साफतौर पर कहा कि बंद कमरों में बैठकर पलायन रोकने की बात करने वाले एक भी महानुभाव बताएं कि वो और उनके परिवार कहाँ रहते हैं? पहाड़ को छोड़कर चले गए ये महानुभाव पहाड़ के बारे में शायद अब ठीक से जानते भी नही हैं.
बहरहाल उन्होंने 18वें वर्ष में प्रवेश पर उत्तराखंडवासियों को शुभकामनाएं दीं और जो बिना जाने ही पलायन के मुद्दे पर चर्चा करना चाहते हैं उन्हें भगवान से सद्बुद्धि देने की प्रार्थना की.