चारधाम की यात्रा पर उत्तराखंड गए मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले के बुजुर्ग पूरन सिंह उन चंद सौभाग्यशाली लोगों में से हैं, जो जीवित घर वापस लौट आए हैं. लेकिन पूरन सिंह की आंखें नम हैं. वह उस खौफनाक मंजर को भूला नहीं पा रहे हैं, जब उनके बचपन के दोस्त दरियाव सिंह उनसे हमेशा के लिए जुदा हो गए.
पूरन सिंह ने फिर भी अपने दोस्त का साथ और हाथ नहीं छोड़ा. उन्होंने दरियाव सिंह के शव के साथ पहाड़ों पर सात दिन गुजारे. पूरन सिंह जैसे कई और लोग भी हैं, जिन्होंने उत्तराखंड की इस आपदा में अपनों को खो दिया है.
राजगढ़ के सारंगपुर के पूरन और दरियाव (65 वर्ष) बचपन से दोस्त थे और दोनों ने एकसाथ केदारनाथ के दर्शन करने की योजना बनाई थी. जिस समय प्रकृति का यह कहर इलाके पर बरसा, दोनों गौरीकुंड क्षेत्र में थे. तेज हवाओं के साथ बारिश हुई. पहाड़ ढहने लगे.
पूरन बताते हैं कि उन्होंने किसी तरह पहाड़ पर शरण ली. वे तो किसी तरह बच गए, मगर उनका बचपन का दोस्त ठंड, भूख और प्यास के चलते साथ छोड़ गया. वे विषम हालात में पहाड़ पर अपने दोस्त दरियाव सिंह के शव के साथ पड़े रहे. उसके बाद सेना की मदद से उन्हें और दरियाव के शव को हरिद्वार लाया गया.
पूरन सिंह को इस बात का अफसोस है कि वह पुण्य कमाने केदारनाथ गए थे, मगर घर लौटे दोस्त का शव लेकर.
यह अकेले पूरन की कहानी नहीं है, बाल्कि मध्य प्रदेश के कई परिवार ऐसे हैं, जिन्होंने अपनों को खोया है. जबलपुर के जे. पी. जाट और उनकी पत्नी की आंखों से आंसू थम नहीं रहे हैं. दोनों ने अपनी बेटी को जो खो दिया है. वे बताते हैं कि बेटी, दामाद और नाती के साथ वे उत्तराखंड गए थे. बाढ़ में उनकी बेटी बह गई तो दामाद उसकी खोज में लगा है. वे तो अपने साथ नाती को लेकर लौट आए हैं.
राज्य सरकार ने आपदा में फंसे लोगों को घर तक लौटाने के लिए बोइंग विमान का इंतजाम किया है. सोमवार को इस विमान से 331 यात्री भोपाल और इंदौर पहुंचे हैं. इन सभी को सड़क मार्ग से उनके घरों तक भेजा गया है.
उत्तराखंड से यात्रा कर सकुशल लौटे यात्री बाढ़ और पहाड़ ढहने की घटना को याद कर सिहर जाते हैं, वे सवाल भी कर रहे हैं कि आखिर भगवान के दरबार में ऐसा क्यों हुआ.