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बुलंदशहर: यूपी की इकलौती जिला पंचायत अध्यक्ष सीट, जिस पर पांच साल में तीन बार हुए चुनाव

बुलंदशहर जिला पंचायत का पिछला कार्यकाल उठापटक के दौर से गुजरा. राजनीति की बिसात पर चली गई चालों ने प्रदेश की राजनीति में भी भूचाल ला दिया. धमक के बावजूद सत्ताधारी जिला पंचायत अध्यक्ष को कुर्सी गंवानी पड़ी. सपा के दिग्गज हरेंद्र यादव व प्रदीप चौधरी कुर्सी नहीं बचा पाए और ओमवीर सिंह बादशाह बनकर उभरे.

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बुलंदशहर के जिला पंचायत अध्यक्ष ओमवीर सिंह
बुलंदशहर के जिला पंचायत अध्यक्ष ओमवीर सिंह
स्टोरी हाइलाइट्स
  • यूपी मेें दो चरण के पंचायत चुनाव अभी बाकी
  • बुलंदशहर में जिला पंचायत की कुर्सी पर निगाहें
  • जिला पंचायत में पांच साल जारी रही उठापटक

कोरोना संकट के बीच उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हो रहे हैं. ऐसे में कई निगाहें इस बार बुलंदशहर की जिला पंचायत के चुनाव पर भी हैं, क्योंकि यह सूबे की ऐसी इकलौती जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी रही, जहां पांच साल में तीन बार अध्यक्ष बदले गए थे. ऐसे में इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष का पद अनारक्षित है, जिसके चलते तमाम बड़े दिग्गज जिले के प्रथम नागरिक बनने के लिए जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं. इस बार देखना होगा कि जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए किस तरह की उठापटक होती है? 

दरअसल, जिला पंचायत का पिछला कार्यकाल उठापटक के दौर से गुजरा. राजनीति की बिसात पर चली गई चालों ने प्रदेश की राजनीति में भी भूचाल ला दिया. धमक के बावजूद सत्ताधारी जिला पंचायत अध्यक्ष को कुर्सी गंवानी पड़ी. सपा के दिग्गज हरेंद्र यादव व प्रदीप चौधरी कुर्सी नहीं बचा पाए और ओमवीर सिंह के कंधे पर बंदूक रखकर जिला पंचायत दिग्गजों ने ऐसा खेल खेला कि सब चारों खाने चित रहे. 

सपा प्रमुख अखिलेश यादव के करीबी होने के चलते साल 2016 में हरेंद्र यादव ने निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर कब्जा जमाया था. सूबे में सरकार बदलते ही बीजेपी की निगाह जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर जम गई. ऐसे में 2017 में कुछ सदस्यों की ओर से अविश्वास प्रस्ताव आया, जिसमें हरेंद्र यादव को विश्वास मत लायक वोट नहीं मिलने पर इस्तीफा देना पड़ा. 

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योगी सरकार में बुलंदशहर जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए में बीजेपी के प्रदीप चौधरी और महेंद्र भैया आमने-सामने मैदान में आ गए. जिले के 53 वोट के रोमांचक मुकाबले में दो वोट निरस्त हो गए थे. प्रदीप व महेंद्र भैया को 25-25 वोट मिले. ऐसे में सुनील चरौरा ने संकट मोचक बनकर प्रदीप चौधरी को वोट देकर जिला पंचायत की बादशाहत तक पहुंचाया. हालांकि, एक साल के बाद ही प्रदीप चौधरी के सामने संकट खड़ा हो गया. सत्ता में होने के बावजूद सदस्य प्रदीप चौधरी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ले आए. 

अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए महेंद्र भैया के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई. एडीएम के सामने 25 सदस्य अविश्वास प्रस्ताव के साथ पेश हुए जबकि बाकी तीन सदस्यों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. एडीएम ने प्रदीप चौधरी के साथ समर्थन बताकर अविश्वास प्रस्ताव खारिज कर दिया. महेन्द्र भैया इसके खिलाफ हाई कोर्ट गए. मार्च 2019 में उच्च न्यायालय की देखरेख में पेश हुए अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 48 सदस्य आए. प्रदीप चौधरी की गैर मौजूदगी में अविश्वास प्रस्ताव पारित हुआ और उन्हें अपना इस्तीफा देना पड़ा. 

अगस्त 2019 में फिर जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव हुआ. इस बार ओमबीर सिंह और महेंद्र भैया आमने-सामने मैदान में थे. वोटिंग से पहले महेंद्र भैया ने चुनाव से हटने का एलान कर ओमवीर को निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष बना दिया. इस तरह से पांच साल में जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर तीन चेहरे आए. सियासी उठापठक में सदस्यों को साधने का खेल पूरे पांच साल तक चलता रहा. ऐसे में देखना है इस बार सियासी घमासान किस अंजाम पर पहुंचता है. 

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