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UP MLC Election Result: आधी सीटों पर ठाकुरों का कब्जा, खाली हाथ रहे दलित-मुस्लिम

उत्तर प्रदेश विधान परिषद की 36 में से 33 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली है. सूबे की आधी से ज्यादा सीटों पर ठाकुर समुदाय के एमएलसी बने हैं तो उसके बाद दूसरे नंबर पर ब्राह्मण हैं, जबकि दलित और मुस्लिम एक भी सीट पर नहीं जीत सका. इस बार 18 ठाकुर एमएलसी बने हैं तो 9 ओबीसी समुदाय से हैं जबकि 5 ब्राह्मण, तीन वैश्य और दो जाट व एक-एक गुर्जर-सैनी हैं.

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एमएलसी बने दिनेश प्रताप सिंह
एमएलसी बने दिनेश प्रताप सिंह
स्टोरी हाइलाइट्स
  • यूपी में 36 में से 18 ठाकुर समुदाय से एमएलसी बने
  • बीजेपी से 5 ब्राह्मण, 3 वैश्य और 1 कायस्थ जीते
  • बीजेपी के टिकट पर तीन में से 2 यादव एमएलसी बने

उत्तर प्रदेश में विधानसभा के बाद विधान परिषद चुनाव में भी बीजेपी ने दमदार प्रदर्शन कर इतिहास रच दिया है. स्थानीय निकाय क्षेत्र की 36 विधान परिषद सीटों में से 33 सीटों पर बीजेपी ने कब्जा जमाया तो दो सीट पर निर्दलीय और एक पर रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की जनसत्ता पार्टी ने जीत दर्ज की. सपा का खाता ही नहीं खुला तो दलित-मुस्लिम समदाय से भी कोई नहीं जीत सका. सूबे की 50 फीसदी एमएलसी सीटों पर ठाकुर समुदाय ने कब्जा जमाया है. 

विधान परिषद में ठाकुरों का दबदबा
यूपी विधान परिषद चुनाव में सबसे ज्यादा ठाकुर समुदाय से एमएलसी चुनकर आए हैं. बीजेपी ने जिन 33 एमएलसी सीटों पर जीत दर्ज की है, उसमें 15 ठाकुर समुदाय से हैं. इसके अलावा जिन तीनों पर उसे हार हुई है और वहां पर निर्दलीय या फिर अन्य ने जीत दर्ज की है. वो तीनों सदस्य भी ठाकुर समुदाय से हैं. इस तरह 36 सीटों में से 18 ठाकुर एमएलसी बनने में कामयाब रहे. बीजेपी ने 16 ठाकुर समुदाय को प्रत्याशी बनाया था, जिनमें से प्रतापगढ़ सीट पर बीजेपी के हरिप्रताप सिंह को जनसत्ता के अक्षय प्रताप सिंह ने मात दी है. 

पांच ब्राह्मण, तीन वैश्य, एक कायस्थ एमएलसी
बीजेपी ने पांच ब्राह्मणों को एमएलसी चुनाव में टिकट दिया था और सभी पांचों जीतने में कामयाब रहे. बहराइच-श्रावस्ती से BJP की प्रज्ञा त्रिपाठी, मेरठ से धर्मेंद्र भारद्वाज, फर्रुखाबाद से प्रांशु दत्त द्विवेदी, बदायूं से वागीश पाठक और अयोध्या से हरिओम पांडे एमएलसी बने हैं. कायस्थ समुदाय से बीजेपी के टिकट पर एकलौते एमएलसी डॉ. केपी श्रीवास्तव बने हैं. तीन वैश्य समुदाय से एमएलसी बने हैं, जिनमें हरदोई से अशोक अग्रवाल, लखीमपुर खीरी से अनूप गुप्ता और पीलीभीत से सुधीर गुप्ता चुने गए हैं. 

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बीजेपी के 9 ओबीसी एमएलसी
एमएलसी चुनाव में बीजेपी ने 11 ओबीसी समुदाय के प्रत्याशी बनाया था, जिनमें से 9 सदस्य जीतने में कामयाब रहे. बीजेपी ने तीन 3 यादव एमएलसी प्रत्याशी बनाए थे, जिनमें से दो जीते हैं. बस्ती से सुभाष यदुवंश और एटा-मैनपुरी से आशीष यादव चुने गए जबकि आजमगढ़ सीट पर बीजेपी के प्रत्याशी रहे अरुण कांत यादव हार गए. बीजेपी ने दो कुर्मी समुदाय से प्रत्याशी बनाया था, जिनमें झांसी से रमा निरंजन जीतने में कामयाब रहीं तो वाराणसी सीट पर सुदामा पटेल को हार मिली. बीजेपी ने गुर्जर समुदाय से एक नरेंद्र भाटी को एमएलसी कैंडिडेट बनाया था, जो जीतने में सफल रहे. 

बीजेपी से दो जाट-एक सैनी एमएलसी 
एमएलसी चुनाव में जाट समुदाय से बीजेपी ने दो प्रत्याशी उतारे थे और दोनों ही जीतने में कामयाब रहे. मुजफ्फरनगर सीट से वंदना मुदित वर्मा और अलीगढ़ सीट से चौधरी शिवपाल सिंह जीते हैं. बीजेपी ने सैनी समुदाय एक सीट पर मुरादाबाद से सतपाल सैनी को प्रत्याशी बनाया था, जो जीतने में सफल रहे. बीजेपी एक नाई जाति से रामचंद्र प्रधान एमएलसी बने हैं तो आगरा-फिरोजाबाद से विजय शिवहरे जीते हैं, जो कलवार जाति से आते हैं. 

18 ठाकुर जाति से एमएलसी बने 
बीजेपी ने 16 ठाकुर समुदाय के नेताओं को एमएलसी का टिकट दिया था, जिनमें से 15 जीतने में सफल रहे और जिन तीन सीटों पर उसे हार मिली है. वहां पर भी ठाकुर समुदाय के ही एमएलसी बने हैं. बीजेपी से दिनेश प्रताप सिंह, बृजेश सिंह प्रिंशू रतनपाल सिंह, अंगद कुमार सिंह, रविशंकर सिंह पप्पू, पवन सिंह चौहान, विशाल सिंह चंचल, सीपी चंद, शैलेन्द्र प्रताप सिंह, अवधेश कुमार सिंह, अविनाश सिंह चौहान, महाराज सिंह, जितेंद्र सिंह, ओम प्रकाश सिंह और रमेश सिंह जीते हैं. वहीं, निर्दलीय तौर पर ठाकुर समुदाय से जीतने वालों में अन्नपूर्णा सिंह और विक्रांत सिंह रिशु हैं तो जनसत्ता पार्टी से अक्षय प्रताप सिंह एमएलसी बने हैं. 

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बता दें कि सपा ने एमएलसी चुनाव में 36 सीटों में से 34 सीटों पर खुद प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारा तो 2 सीटें सहयोगी आरएलडी के लिए छोड़ी थी. सपा ने सबसे ज्यादा 21 यादव समुदाय के प्रत्याशी उतारे थे तो चार अन्य ओबीसी को उम्मीदवार बनाया. इसके अलावा तीन मुस्लिम, तीन ठाकुर और तीन ब्राह्मण नेता को विधान परिषद का टिकट दिया था, लेकिन कोई भी जीत नहीं सका.

 

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