उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगले खाली करवाने का जो आदेश सुप्रीम कोर्ट ने इसी हफ्ते दिया, उसकी गाज अब 500 से ज्यादा लोगों पर गिरने वाली है. राज्य संपत्ति विभाग ने 500 से ज्यादा लोगों को अपने घर और बंगले का बकाया किराया चुकाने और दो महीने के भीतर उसे खाली करने की नोटिस जारी करने की तैयारी शुरू कर दी है.
जिन लोगों को नोटिस भेजा जाएगा उसमें तमाम एनजीओ, गैर सरकारी लोग, संगठन, संस्था, ट्रस्ट और पत्रकार शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट से आदेश आने के बाद राज्य संपत्ति विभाग दिन-रात काम में जुटकर उन लोगों की लिस्ट अपडेट करने में जुट गया है, जिन्हें सरकार की तरफ से घर मुहैया करवाया गया है. फिलहाल इस लिस्ट में 109 संस्थाएं, 21 संगठन, 3 ट्रस्ट, 125 गैर सरकारी लोग और 300 से ज्यादा पत्रकार हैं.
नोटिस में होगा SC के फैसले का हवाला
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि जिन नियमों के तहत इन लोगों को सरकारी घर दिए गए हैं, उन नियमों का कोई कानूनी आधार नहीं है. ऐसे में इन नियमों को निरस्त माना जाए. सर्वोच्च न्यायालय के कड़े रुख को देखते हुए राज्य संपत्ति विभाग ने फौरन अपना काम शुरू कर दिया है. घर खाली करवाने के लिए जो नोटिस भेजा जाएगा, उसमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला भी दिया जाएगा.
नियम बने और फिर बदले गए
लखनऊ में सरकारी घर आवंटित करने का अधिकार राज्य संपत्ति विभाग के पास है, जिसके अधिकार में करीब साढ़े हजार छोटे बड़े घर फ्लाइट और बंगले आते हैं. यूपी में अलग-अलग सरकारों ने अलग-अलग समय विभिन्न लोगों को सरकारी घर आवंटित करने के लिए नए नियम बनाए और नियमों में बदलाव किए गए. जैसे पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगला देने का नियम 1997 में, राष्ट्रीय महत्व के व्यक्तियों के लिए ट्रस्ट बनाने के नियम को 2003 में और पत्रकारों को घर देने के लिए 2005 में नियमों में बदलाव किए गए.
विधानसभा में पास नहीं करवाया नियम
साल 1996 जनहित संगठन नाम की एक संस्था ने हाई कोर्ट में मुकदमा दायर किया. इसमें कहा गया कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगला देने का कोई नियम नहीं है और यह गैरकानूनी है. मुकदमे की सुनवाई हाई कोर्ट में चल रही थी, तभी सरकार ने 1997 में पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगला देने के लिए एक नियम बनाया और इस पर राज्यपाल से मंजूरी भी ले ली. लेकिन इस नियम को विधानसभा से पास नहीं करवाया गया.
एक अगस्त को आया SC का फैसला
हाई कोर्ट में नियम बनाने की सरकार की दलील मान ली गई, लेकिन लोक प्रहरी नाम के लखनऊ के एक एनजीओ ने इस नियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. इसी याचिका के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त को फैसला सुनाते हुए कहा कि जिन नियमों के तहत घर दिए गए हैं, उनका कोई आधार ही नहीं है. ऐसे में घरों को खाली करावाया जाए.
बंगला बचाने की कवायद भी शुरू
बहरहाल, कोर्ट के फैसले के बाद जहां एक ओर सरकार घर खाली कराने के लिए नोटिस तैयार करवा रही है, वहीं पूर्व मुख्यमंत्रियों में बंगला बचाने के लिए भी माथापच्ची शुरू हो गई है. सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन दाखिल करने से लेकर और क्या उपाय हो सकते हैं इस पर कानूनी सलाह ली जा रही है.
सुप्रीम कोर्ट ने इन नियमों को इसलिए रद्द कर दिया, क्योंकि इसे विधानसभा में पास करवा कर कानूनी रूप नहीं दिया गया था. इस बात पर राय मश्विरा किया जा रहा है कि अगर इन नियमों को बिल की शक्ल में कैबिनेट से पास करवाकर विधानसभा में मंजूरी ली जाए तो क्या सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल सकती है. सरकार को सबसे ज्यादा चिंता इस बात की है कि जिन घरों को 2 महीने के भीतर खाली कराया जाना है, उनमें मुख्यमंत्री के पिता मुलायम सिंह यादव का बांगला भी शामिल है.