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बलरामपुर: ब्लॉक प्रमुख चुनाव में बड़ा उलटफेर, बागी प्रत्याशी के समर्थन में BJP प्रत्याशी ने छोड़ी अपनी उम्मीदवारी

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बलरामपुर (Balrampur) के तुलसीपुर ब्लॉक प्रमुख (Block Pramukh) चुनाव में बड़ा उलटफेर देखने को मिला है. यहां मतदान से कुछ घंटे पूर्व बीजेपी (BJP) प्रत्याशी ने अपनी उम्मीदवारी छोड़ सभी को चौंका दिया है.

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नामांकन के लिए जाती प्रत्याशी.
नामांकन के लिए जाती प्रत्याशी.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बीजेपी के हाथ से खिसक रही थी तुलसीपुर विकासखण्ड की सीट
  • सपा प्रत्याशी को हो रहा था फायदा
  • BJP प्रत्याशी ने छोड़ी अपनी उम्मीदवारी

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बलरामपुर (Balrampur) के तुलसीपुर ब्लॉक प्रमुख (Block Pramukh) चुनाव में बड़ा उलटफेर देखने को मिला है. यहां मतदान से कुछ घंटे पूर्व बीजेपी (BJP) प्रत्याशी ने अपनी उम्मीदवारी छोड़ सभी को चौंका दिया है.

बागी प्रत्याशी के समर्थन में अनीता सिंह (Anita Singh) ने पर्चा वापस ले लिया है. उन्होंने बीजेपी की बागी प्रत्याशी स्वामिता सिंह (Swatima Singh) के समर्थन में उम्मीदवारी वापस ले ली है.

स्वामिता सिंह प्रवीण सिंह विक्की की पत्नी हैं और प्रवीण सिंह विक्की देवीपाटन शक्तिपीठ से जुड़े हैं और शक्तिपीठ महंत के बेहद करीबी हैं. प्रवीण सिंह ने भाजपा से टिकट ना मिलने पर पत्नी को बागी प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतारा था.

लेकिन सियासी समीकरणों को साधते हुए बीजेपी के आलाकमानों ने बीजेपी प्रत्याशी का अपना नामांकन वापस लेने और निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहीं प्रवीण सिंह विक्की की पत्नी स्वामिता सिंह को समर्थन देने के लिए राजी कर लिया है.

बता दें कि तुलसीपुर विकासखंड के ब्लाक प्रमुख पद के लिए आज यानी 10 जुलाई को मतदान होना है.तुलसीपुर विकासखण्ड के ब्लॉक प्रमुख की कुर्सी के लिए तीन उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे.

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9 जुलाई को पर्चा वापसी न होने से त्रिकोणीय मुकाबला होना तय माना जा रहा था जिससे चुनाव काफी रोमांचक हो गया है. इस सीट से राणा प्रताप सिंह की पत्नी पूर्व ब्लॉक प्रमुख अनीता सिंह एक बार फिर भाजपा के समर्थन से मैदान में थी.

वहीं निवर्तमान ब्लॉक प्रमुख सफीक अहमद की छोटे भाई की पत्नी फिरदौस बानो उन्हें टक्कर दे रही थीं. दोनों के बीच भाजपा से टिकट न मिलने पर बागी प्रत्याशी के तौर पर प्रवीण सिंह विक्की की पत्नी स्वामिता सिंह ने मैदान में ताल ठोकी दी थी.ऐसे में बागी प्रत्याशी की चुनाव लड़ने की जिद समीकरण बिगाड़ सकती थी.

बीजेपी और निर्दलीय के बीच सपा प्रत्याशी के तौर पर अपना नामांकन दाखिल करने वाली फिरदौस बानो को फायदा होता दिख रहा था और बीजेपी के हाथ से तुलसीपुर विकासखण्ड की सीट जाती दिख रही थी.जिससे बीजेपी खेमे में खलबली मची हुई थी.लिहाजा दो दिनों से चल रही मैराथन बैठकों में बागी प्रत्याशी से अपना नामांकन वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा था लेकिन हर बार बैठक बेनतीजा रही. बागी प्रत्याशी के चुनाव लड़ने की जिद के आगे पार्टी पदाधिकारियों को झुकना पड़ा.

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9 जुलाई की रात शक्तिपीठ देवीपाटन महंत योगी मिथिलेशनाथ की अध्यक्षता में जिले के चारों बीजेपी विधायक पलटूराम,राम प्रताप वर्मा,शैलेश कुमार सिंह शैलू,कैलाश नाथ शुक्ल,बीजेपी जिला प्रभारी सुधीर हलवासिया,पूर्व जिलाध्यक्ष चंद्र प्रकाश सिंह गुड्डू,पूर्व जिलाध्यक्ष राकेश सिंह के साथ बैठक की.

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बैठक में दोनों प्रत्याशियों को बुलाकर गहनता से चर्चा की.आखिरकार पार्टी नेताओं ने बीजेपी प्रत्याशी से अपना वापस लेने व बागी निर्दलीय प्रत्याशी को समर्थन देने के लिए राजी कर लिया गया. इसी के साथ इस सीट पर भी प्रवीण सिंह विक्की की पत्नी स्वामिता सिंह के निर्विरोध चुने जाने की जोर आजमाइश शुरू हो गयी है.

वहीं जिले की राजनीति में पकड़ रखने वालों की मानें तो इस पूरे घटनाक्रम को दो तरीके से देखा जा रहा है.पहला जिले की 9 विकासखण्डों में 7 विकासखण्डों में बीजेपी प्रत्याशी निर्विरोध ब्लॉक प्रमुख पद के लिए निर्वाचित हुए हैं.तुलसीपुर विधानसभा के बचे दो ब्लॉकों पर चुनाव होने थे, जिससे पार्टी उम्मीदवार को जिताना तुलसीपुर विधायक कैलाश नाथ शुक्ल की प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका था.

दूसरी बात पर गौर करें तो तुलसीपुर विकासखण्ड के प्रमुख के तौर पर एक बीजेपी का कार्यकर्ता बागी के रूप में और दलबदल कर आये नेता पार्टी अधिकृत प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में थे. दोनों की लड़ाई में तीसरे को फायदा होता दिख रहा था.

बागी प्रत्याशी की संगठन में पकड़ मजबूत होने के साथ साथ शक्तिपीठ से जुड़ाव व सिद्ध पीठ के महंत के करीबी होना अहम माना जा रहा था, जबकि पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी का न तो संगठन में पकड़ और न मंदिर से खास लगाव न होना अहम था.

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जिला प्रशासन का पार्टी प्रत्याशी की कोई खासा मदद न कर पाना उन्हें बैकफुट पर लाने को मजबूर कर रहा था.बागी प्रत्याशी के पास बीडीसी सदस्यों की संख्या ज्यादा होने से पार्टी प्रत्याशी को हार का सामना करा सकता था.पार्टी पदाधिकारियों ने हार का ठीकरा खुद के सर न फूटे इसलिए पार्टी प्रत्याशी से अपना पर्चा वापस लेने व बागी प्रत्याशी को अपना समर्थन देने के लिए राजी किया गया है.

 

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