सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में निर्माणाधीन काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लिए शहर की पहली सार्वजनिक लाइब्रेरी कारमाइकल लाइब्रेरी भवन गिराए जाने के मामले में बुधवार को फैसला सुनाया. कोर्ट ने इसी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट को आदेश दिया कि भवन की दुकानों के लिए 16 लाख रुपये मुआवजे का भुगतान करे.
देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट का रास्ता साफ हो गया है, वहीं भवन के दुकानदारों की मांग भी पूरी हो गई. गौरतलब है कि धीरज गुप्ता और अन्य किराएदारों ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की थी. याची ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को असंवैधानिक बताया था, जिसमें कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज करते हुए हस्तक्षेप से इनकार कर दिया. भवन गिराए जाने का आदेश दिया था. याची ने सर्वोच्च अदालत से मांग की थी कि यदि भवन गिराया जाए तो उन्हें मुआवजा प्रदान किया जाए. मुआवजा न दिए जाने की स्थिति में उन्हें कहीं अन्य दुकान ही दे दी जाए.
विश्वनाथ मंदिर न्यास के वकील ने अदालत में इसका विरोध करते हुए लाइब्रेरी भवन (भवन संख्या सीके 36/8) उत्तर प्रदेश के राज्यपाल द्वारा 15 फरवरी को खरीद लिए जाने की दलील दी थी. वकील ने कहा था कि याची के पास सिविल सूट में जाने का विकल्प मौजूद है. हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद याची के पास अन्य विकल्प की मौजूदगी के आधार पर याचिका खारिज कर दिया था. जिसके बाद याची ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
भवन खाली कराने के लिए फरवरी में जारी हुई थी नोटिस
कारमाइल लाइब्रेरी का भवन 15 फरवरी को खरीदे जाने के 2 दिन बाद 17 फरवरी को ही श्रीकाशी विश्वनाथ विशिष्ट क्षेत्र विकास परिषद ने इसे खाली करने के लिए नोटिस भेज दी थी. मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने इसके लिए मंदिर की सुरक्षा में तैनात सीआरपीएफ के कमांडेंट को भी पत्र लिखा था. बता दें कि सन 1872 में स्थापित कारमाइकल लाइब्रेरी में कई दुर्लभ पुस्तकों समेत विभिन्न विषयों की एक लाख से अधिक पुस्तकें हैं.