अपने भाई को जिंदगी उपहार में देकर दुनिया छोड़ गई मानवती. भाई-बहन के रिश्तों में बलिदान की बात चलेगी तो अलीगढ़ जिले के गजरौला की इस बेटी को हमेशा याद किया जाएगा. चार भाइयों की इस इकलौती बहन ने अपना लिवर देकर भाई की जिंदगी तो बचा ली लेकिन खुद इतनी बीमार हो गई कि उसे बचाया नहीं जा सका. रक्षाबंधन से ठीक पहले आई इस बुरी खबर से पूरे कस्बे की आंखें नम हैं. दर्द में डूबा हर शख्स बहन की इस अनोखी कुर्बानी को याद कर रहा है.
अल्लीपुर मुहल्ले में रहने वाले धनवीर सिंह बुलंदशहर में जेई के पद पर तैनात हैं. कुछ माह पहले उन्हें पीलिया ने जकड़ लिया. धीरे-धीरे वह और बीमार होते गए. नौबत लिवर प्रत्यारोपण की आ गई. घर में हर तरफ दुख की परछाई फैल गई तो भाई को बचाने के लिए उसकी इकलौती बहन मानवती आगे आ गई. अमरोहा के एचजीपीजी कालेज में बीए दूसरे वर्ष की यह छात्रा लिवर प्रत्यारोपण के रिस्क को भलीभांति जानती थी. उसे मालूम था कि उसकी जान भी जा सकती है लेकिन अपनी परवाह न कर घरवालों से खुद लिवर देने के लिए जिद करने लगी. घर का कोई सदस्य यह नहीं चाहता था लेकिन उसकी जिद के आगे सभी को झुकना पड़ा.
डाक्टरों ने जांच की तो वह लिवर देने के लिए फिट थी. सारी कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद 20 जुलाई की शाम वह भाई के साथ सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती हो गई. कई घंटे आपरेशन के बाद चिकित्सकों ने लीवर का 40 फीसदी से अधिक हिस्सा धनवीर के शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया. दोनों को ठीक तो घोषित किया गया लेकिन चार दिन बाद ही मानवती के पैंक्रियाज में सूजन आ गई और वह बीमार होती गई. अपनी जिंदगी को फिसलते हुए वह हर पल देखती रही लेकिन उफ न किया.
घरवालों को यह कहकर ढांढस बंधाती रही कि मैं ठीक हो जाउंगी और अगर नहीं भी रहुंगी तो क्या हुआ मेरा भाई तो जी सकेगा.
उसकी बात पर घरवाले अस्पताल में चुपके-चुपके आंसू बहाते रहे. छह अगस्त को आखिर मानवती ने भाई धनवीर सिंह के हाथों में अंतिम सांस ली. उसका बुधवार को ही अंतिम संस्कार कर दिया गया.