रामपुर के नवाब परिवार की तीसरी पीढ़ी चुनावी मैदान में किस्मत आजमाने जा रही है. सपा सांसद आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम की विधानसभा सदस्यता खत्म होने के चलते खाली हुई रामपुर जिले की स्वार सीट पर उपचुनाव है, जहां से कांग्रेस ने नवाब परिवार के हैदर अली खां उर्फ हमजा मियां को प्रत्याशी बनाया है. आजम खान से राजनीतिक हिसाब-किताब चुकता करने के लिए हमजा मियां ने पूरी तरह कमर कस ली है. ऐसे में देखना होगा कि वो अपने पिता की हार का बदला ले पाते हैं या फिर नहीं?
2017 के विधानसभा चुनाव में आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम खान ने सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था और नवाब परिवार के नावेद मियां को करारी मात दी थी. यह सीट नवाब परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है, यहां से नावेद मियां चार बार विधायक रहे हैं. अब उपचुनाव के जरिए हमजा मियां स्वार सीट पर किस्मत आजमाने के लिए मैदान में उतरे हैं. हालांकि, सपा, बसपा और बीजेपी ने अभी अपने प्रत्याशी के नाम का ऐलान नहीं किया है, लेकिन एक बात जरूर है कि बीजेपी यहां से कमल खिलाने को लेकर हरसंभव कोशिश में जुटी है.
कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव धीरज गुर्जर ने कहा कि स्वार सीट से कांग्रेस ने एक नौजवान साथी हैदर अली खान उर्फ हमजा मियां को प्रत्याशी बनाया है. कांग्रेस ने इस चुनाव में भय, भूख, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लड़ने का फैसला किया है. यहां के कांग्रेसियों ने एक सुर में एक साथ होकर आलाकमान के लिए एक संदेश भेजा है कि नवाब साहब की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए हमजा मियां को प्रत्याशी बनाया जाए, जिसे पार्टी ने स्वीकार किया.
कांग्रेस को खड़ा करना है मकसद
कांग्रेस के प्रत्याशी हैदर अली खान उर्फ हमजा मियां ने कहा कि यह उपचुनाव हमारे लिए बहुत जरूरी है. नूर महल के जरिए कांग्रेस को जिले में खड़ा करना मेरा मकसद है. हमजा मियां अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नजर आ रहे हैं. वो कहते हैं कि तीन महीने से क्षेत्र में घूम रहा हूं, यहां किसान की सबसे बड़ी समस्या है. स्वार टांडा के लालपुर के पुल निर्माण के लिए हमने आवाज उठाई थी और धरना भी देने का काम किया था.
गौरतलब है कि रामपुर के नवाब परिवार से सबसे पहले जुल्फिकार अली खान उर्फ मिकी मियां ने सियासत में कदम रखा और कांग्रेस से राजनीतिक पारी की शुरूआत की. वो 1967 में रामपुर से संसद में पहुंचे. रामपुर में मिकी मियां की लोकप्रियता ऐसी थी कि कोई अगर उनके खिलाफ कुछ बोलता तो अवाम उसके खिलाफ खड़ी हो जाती थी. मिकी मियां रामपुर से पांच बार सांसद रहे और 1977 में हार मिली थी. हालांकि, इसके बाद फिर वो जीते और 1991 में निधन हो गया, जिसके बाद उनकी राजनीतिक विरासत को उनकी पत्नी नूर बानो ने आगे बढ़ाया और रामपुर से दो बार सांसद चुनी गईं.
नूर बाने सियासत में राष्ट्रीय राजनीति करती रही हैं तो उनके बेटे नावेद मियां स्वार टांडा सीट को अपनी कर्मभूमि बनाया. यहां से वो कांग्रेस से लेकर बसपा तक के सांसद रहे, लेकिन 2017 में आजम खान के बेटे के आगे मात खा गए. ऐसे में अब उनकी राजनीतिक पारी को लेकर नवाब काजिम अली खान उर्फ नावेद मियां के बेटे हमजा की सियासी एंट्री हुई है. ऐसे में रामपुर की सियासत में अब सिर्फ नवाब परिवार ही नहीं बल्कि आजम खान की अपनी सियासत है.
हालांकि, किसी दौर में मिक्की मियां ने ही आजम खान को सियासत में आगे बढ़ने का मौका दिया था. बाद में आजम उनके सबसे प्रबल विरोधी के तौर पर उभरे और महज एक ही दशक में रामपुर का सियासी माहौल बदलकर रख दिया. आजम खान ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति के जरिए सियास में कदम रखा और आपातकाल में जेल जाकर राजनीतिक पहचान हासिल की. इसके बाद पहला चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. हालांकि, यहीं से आजम खान ने सियासत के हुनर सीखे और जमीन से जुड़े होने के नाते वो लोगों के बीच घुल मिल गए. यह रामपुर के लिए नई बात थी जबकि मिकी मियां नवाब थे और जनता में लोकप्रिय होने के बावजूद वो जनता से इस तरह घुल-मिल नहीं पाते. ऐसे आजम खान लोगों के बीच जगह बनाने में कामयाब रहे.
मिकी मियां ने किया था आजम खान का समर्थन
1977 में मिकी मियां के चुनाव हारने के बाद शन्नू मियां का कद जिले कांग्रेस में बढ़ने लगा. मिकी मियां को खतरा महसूस होने लगा. ऐसे में उन्होंने अंदरूनी तौर पर आजम का समर्थन कर दिया. मिकी मियां अपने चुनाव प्रचार में कहा करते थे कि बड़ी पंचायत का वोट मुझे देना और छोटी का दीवाने को. दीवाना माने आजम खान. 1980 के मुरादाबाद दंगा, 1987 में मेरठ के हाशिमपुरा दंगा और मलियाना मामले के बाद आजम खान की राजनीति पूरी तरह से बदल गई.
आजम खान ने 90 के दशक में खुद को मुसलमानों के नेता के तौर पर स्थापित किया. नवाब परिवार के विरोधी के तौर पर खुद को आजम खान ने स्थापित किया. 90 के दशक में मंडल बनाम कमंडल की राजनीति उफान पर थी. देश राम मंदिर का आंदोलन से ध्रुवीकरण की राजनीति की तरफ बढ़ रहा था, जिसे आजम ने सियासी तौर पर कैश कराया. 1991 में राजेंद्र शर्मा के खिलाफ चुनाव हारने के बाद 1992 में मिकी मियां का इंतकाल हो गया. इसके बाद आजम खान रामपुर में अपनी जबरदस्त पकड़ बनाने में कामयाब रहे तो दूसरी तरफ मिकी मियां की विरासत नूर बानों ने संभाली. वो सांसद चुनी गईं और उनके बेटे नवाब काजिम अली विधायक चुने गए.
आजम खान की राजनीतिक ताकत में साल 2000 के बाद जबरदस्त इजाफा हुआ. सपा में वो दूसरे नंबर के नेता बन गए और मुस्लिम चेहरे के तौर पर सूबे में जगह बनाई. मुलायम सिंह से लेकर अखिलेश सरकार में नंबर दो की हैसियत पर रहे. ऐसे में उन्होंने ऐसी पकड़ मजबूत की कि रामपुर से नवाब खानदान की सियासत को पूरी तरह से खत्म कर दिया. 2017 में आजम खान ने अपने बेटे अब्दुल्ला आजम खान को स्वार सीट से उतारकर नवाब परिवार के आखिरी सियासी किले को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया, लेकिन सत्ता पर योगी सरकार के आने के बाद उनकी उलटी गिनती भी शूरू हो गई. मौके की नजाकत को समझते हुए काजिम अली ने आजम खान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. इतना ही नहीं उनके बेटे अब्दुल्ला के खिलाफ जन्मप्रमाण के साथ छेड़छाड़ करने के मामले में केस कर दिया, जिसके तहत उनकी विधायकी निरस्त हो गई. ऐसे में अब चुनाव हो रहे हैं, जहां से हमजा मियां अपने पिता और परिवार की विरासत को बचाने के लिए मैदान में उतरे हैं.
ये भी पढ़ें: