उत्तर प्रदेश में मनरेगा के घोटालेबाजों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए सीबीआई को निर्देश दिया है कि वह सात जिलों में ही नहीं, पूरे प्रदेश में इस घोटाले की जांच करे.
मनरेगा घोटाले में सात जिलों की जांच रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद अदालत ने यह निर्देश दिया. अदालत ने जांच एजेंसी से कहा कि अन्य जिलों से भी मनरेगा से जुड़े रिकॉर्ड कस्टडी में ले. साथ ही यह भी चेताया कि अगर उसने इसमें देरी की तो अहम रिकॉर्ड नष्ट हो सकते हैं.
यही नहीं अदालत ने आयकर महानिदेशक और मनी लॉन्ड्रिंग कानून से संबंधित अफसरों से भी जांच में मिलने वाले तथ्यों को साझा करने के निर्देश सीबीआई को दिए, जिससे घपलेबाजों पर शिकंजा कसा जा सके. न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार त्रिपाठी (द्वितीय) की खंडपीठ ने यह आदेश मनरेगा घोटाले की जांच की मांग वाली वर्ष 2011 से लंबित पीआईएल पर दिया.
इस साल 31 जनवरी को कोर्ट ने मामला सीबीआई के सुपुर्द किए जाने का निर्देश दिया था. सीबीआई ने गुरुवार को सिर्फ सात जिलों की जांच रिपोर्ट पेश की, जिसे कोर्ट ने संतोषजनक तो माना लेकिन यह भी कहा कि दिए गए निर्देशों के तहत उसने अन्य जिलों में घोटाले की शुरुआती जांच संबंधी प्रभावी कदम नहीं उठाए.
अदालत ने सीबीआई को जांच में मिलने वाली सामग्री (घोटाले संबंधी तथ्यों) को आयकर विभाग के महानिदेशक व मनी लॉन्ड्रिंग कानून संबंधी प्राधिकारी को भेजने को कहा है, जिससे ये अफसर मनरेगा योजना के कोष से लाभ उठाने वालों के खिलाफ कार्रवाई कर सकें. कोर्ट ने अगली सुनवाई पर जांच एजेंसी से इसकी रिपोर्ट तलब की है.