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लखनऊ: लॉकडाउन में नहीं लगी नौकरी तो सिविल इंजीनियर ने खोल ली ऑनलाइन कबाड़ी की दुकान

लॉकडाउन में पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी के लिए जब कोई भी ऑप्शन नहीं दिखा तो वह लखनऊ लौटकर घर में ऑनलाइन kabadi.com खोल लिया. ओमप्रकाश का मकसद था कि कबाड़ के सामान को ऑनलाइन लेकर लोगों तक उचित रुपये और सही सामान लिया जा सके.

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कबाड़ी की ऑनलाइन दुकान खोली (फोटो- आजतक)
कबाड़ी की ऑनलाइन दुकान खोली (फोटो- आजतक)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • लॉकडाउन की वजह से नहीं लग रही थी नौकरी
  • इंजीनियर ने खोल ली ऑनलाइन कबाड़ी की दुकान

लॉकडाउन में नौकरी ना मिल पाने की वजह से सिविल इंजीनियर युवक ने अपने घर पहुंचकर कबाड़ी की दुकान खोल ली. यही नहीं उसने कबाड़ को ऑनलाइन मंगवाकर अपने लिए रोजगार की व्यवस्था की. हालांकि शुरुआत में समाज के लोगों ने काफी बुराई की, लेकिन कुछ समय बाद युवक खुद की गोदाम और कर्मचारी रखकर काम करने लगा. आज सभी लोग उसके काम से खुश हैं.

मड़ियाओं थाना क्षेत्र में रहने वाले ओमप्रकाश, जिन्होंने गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है.

लॉकडाउन में पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी के लिए कोई भी ऑप्शन नहीं दिखा तो ओमप्रकाश लखनऊ लौट कर घर में ऑनलाइन kabadi.com खोल लिया. ओमप्रकाश का मकसद था कि कबाड़ के सामान को ऑनलाइन लेकर लोगों तक उचित रुपये और सही सामान लिया जा सके.

घर वालों को पसंद नहीं आया

हालांकि शुरुआती दौर में जब ओमप्रकाश ने इस काम को शुरू किया तो लोगों ने और खुद उनके घर वालों ने काफी बुराई की. लोग ताना मारते थे कि इतनी पढ़ाई करने के बाद इस तरीके का कार्य करने जा रहे हो. लेकिन ओमप्रकाश के हौसले बुलंद थे. उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बावजूद भी कबाड़ी की दुकान खोली और उसको ऑनलाइन चलाने के बाद लोगों के घर तक कबाड़ का सामान लेकर अपने गोदाम में जमा करने लगे.

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ओमप्रकाश के मुताबिक वह ऑनलाइन लोगों की रिक्वेस्ट रिसीव करते हैं. जिसके बाद उनके दो लोग अपॉइंटमेंट लेकर लोगों के घर पहुंचते हैं और कबाड़ जमा करते हैं. वेबसाइट पर दिए रेट के मुताबिक वो पैसा देते हैं और कबाड़ लेकर गोदाम पहुंच जाते हैं. कबाड़ देने वाले और लेने वाले दोनों के बीच में बड़ी पारदर्शिता रहती है. जिससे दोनों के बीच कोई भी परेशानी नहीं आती है.

आज ओमप्रकाश ने अपने काम से गोदाम ले लिया जिसमें सामान रखते हैं और तकरीबन 5 लड़कों की टीम है जो सुबह से शाम तक काम करते हैं. ओमप्रकाश की मानें तो काम कोई छोटा बड़ा नहीं होता है, बस करने की हिम्मत और मकसद होना चाहिए.

 

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