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बिजली का पता नहीं, अखिलेश बांट रहे हैं लैपटॉप

यूपी में सरकारी लैपटॉप का लट्टू घूम रहा है. लेकिन क्या उससे छात्रों का भला हो रहा है? वो इलेक्ट्रॉनिक खिलौना, मुलायम और अखिलेश का प्रचार तो ख़ूब कर रहा है लेकिन क्या वो पढ़ाई-लिखाई के काम आ रहा है.

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यूपी में सरकारी लैपटॉप का लट्टू घूम रहा है. लेकिन क्या उससे छात्रों का भला हो रहा है? वो इलेक्ट्रॉनिक खिलौना, मुलायम और अखिलेश का प्रचार तो ख़ूब कर रहा है लेकिन क्या वो पढ़ाई-लिखाई के काम आ रहा है. दरअसल, ये सवाल बहुत ज़ोर से उठने लगे हैं कि बिजली, पानी, सड़क की दुर्दशा झेल रहे राज्य में आख़िर लैपटॉप बांटने से क्या हासिल होगा.

उत्तर प्रदेश में इन दिनों जहां देखिए लैपटॉप के चर्चे हैं. जिसे मिला वो ख़ुश, जिसे नहीं मिला वो कर रहा है इंतज़ार. मग़र हर तरफ़ से उठ रहा है एक ही सवाल.

इंटर पास छात्र-छात्राओं को 15 लाख लैपटॉप बांटे जाने हैं जिनमें से लखनऊ, वाराणसी, फ़र्रूख़ाबाद और ग़ाज़ियाबाद में कुल मिलाकर क़रीब 50 हज़ार छात्रों को खुद सीएम अपने हाथों से लैपटॉप का तोहफ़ा दे चुके हैं.

मग़र समाजवादी पार्टी का ये चुनावी लैपटॉप किसी के लिए खिलौना तो किसी के लिए बुद्धूबक्सा बन चुका है. लैपटॉप पाने वाले कई छात्रों को इसे ऑपरेट करना ही नहीं आता. लैपटॉप का प्रसाद बांटने में सरकारी खज़ाने से हज़ारों करोड़ खर्च हो गए लेकिन पाने वालों से पूछिए तो कहते हैं बिना इंटरनेट के लैपटॉप भला किस काम का. इंटरनेट की सुविधा नहीं है इसमें जो सॉफ्टवेयर अपलोड है और जिनसे हम नॉलेज लेते हैं वो प्राइमरी है. बिजली नहीं रहती तो चार्ज नहीं हो पाता है.

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लैपटॉप पाने वाली एक छात्रा पंखुड़ी जैन ने बताया, 'मेरे लिए ये एक खिलौने की तरह है क्योंकि मेरे घर नेट नहीं है और बिना इंटरनेट के 60 प्रतिशत प्रोग्राम यूज़ नहीं कर सकते. लिहाजा खिलौने की तरह पड़ा है.'

इंटरनेट तो बाद की बात है, बड़ी समस्या ये है कि लैपटॉप चले तो कैसे. यूपी के कई इलाकों में बिजली सिर्फ़ झलक दिखाने भर को आती है. ऐसे में भला कैसे चार्ज होगी लैपटॉप की बैटरी.

लैपटॉप खुलते ही सबसे पहले मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव की तस्वीर चुनावी वायदे के साथ उभरती है. कहा तो ये भी जा रहा है कि लैपटॉप बांटने के लिए उन इलाकों को ख़ास तौर पर चुना जा रहा है जहां समाजवादी पार्टी की पकड़ कमज़ोर है. तो क्या, हज़ारों करोड़ का ये दांव, सिर्फ़ चुनावी झुनझुना बनकर रह जाएगा.

साथ में फ़र्रूख़ाबाद से फ़िरोज़ ख़ान, वाराणसी से नीतीश पांडेय और गाज़ियाबाद से अहमद अज़ीम.

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