केंद्र सरकार ने खेलों के सर्वोच्च पुरस्कार राजीव गांधी खेल पुरस्कार का नाम भारत की शान और हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के नाम पर कर दिया है. सरकार के इस ऐलान के बाद बदायूं में रहने वालीं ध्यानचंद की भतीजी चंद्रकला भावुक हो गईं. उन्होंने बताया कि कैसे ध्यानचंद ने जर्मनी के तानाशाह हिटलर के ऑफर को ठुकरा दिया था और कहा था कि वे मरते दम तक हिंदुस्तान के लिए खेलेंगे. इस वाकये को ध्यानचंद ने खुद अपनी भतीजी चंद्रकला को बताया था.
ध्यानचंद का बदायूं से खास रिश्ता है. यहां के दातागंज के नौनी टिकन्ना में मेजर ध्यान चंद की भतीजी चंद्रकला रहती हैं. चंद्रकला की उम्र 75 साल है. चंद्रकला कैप्टन रूप सिंह की बेटी हैं. कैप्टन रूप सिंह भी ध्यानचंद के साथ हॉकी खेलते थे. उन्होंने भी ओलंपिक और इंटरनेशनल मैचों में हिस्सा लिया.
10 साल की उम्र में पहली बार ध्यानचंद को टीवी पर देखा
चंद्रकला बताती हैं कि वे जब 10 साल की थीं, तो उन्होंने टीवी पर पहली बार ध्यानचंद को खेलते हुए देखा. उस वक्त उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. चंद्रकला ने बताया कि मेजर ध्यानचंद जब भी घर आते थे तो बच्चों को बहुत सारा प्यार करते थे. वे बच्चों के लिए काफी सारा सामान लेकर आते थे. कभी-कभी तो मेजर ध्यानचंद बच्चों को अपने हाथ से खाना बनाकर भी खिलाते थे.
जब ध्यानचंद ने ठुकराया हिटलर का ऑफर
चंद्रकला ने मेजर ध्यानचंद की हिटलर के साथ हुई घटना का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा, ध्यानचंद ने उन्हें बताया था कि किस तरह से उन्होंने हॉकी मैच में हिटलर की टीम को हराया था. इस दौरान मेजर ध्यानचन्द ने फटे हुए जूते पहने थे. हिटलर ने उन्हें ऑफर देते हुए कहा था कि अगर वे उनके देश में चलते हैं, तो अच्छी नौकरी और खेलने की सभी सुविधाएं मिलेंगी. लेकिन ध्यानचंद ने अपने देश का गौरव बढ़ाते हुए कहा कि वह मरते दम तक हिंदुस्तान के लिए ही खेलेंगे. देश से किसी भी हाल में गद्दारी नहीं करेंगे.
चंद्रकला एक साधारण से परिवार में रहती हैं. जब उनकी शादी हुई थी तब उनके पति यशवीर सिंह के पिता जंमीदार हुआ करते थे. चंद्रकला के दो बेटे ठाकुर मुकेश सिंह व साधु सिंह हैं. पुत्र वधू एवं नाती पोतों से भरे पूरे अपने परिवार में चंद्रकला सिंह सादा जीवन व्यतीत कर रही हैं और अधिकांश समय पूजा पाठ में व्यतीत करती हैं.