सवा सत्तर साल बाद रामलला अपने मंदिर से बाहर निकलेंगे. याद दिला दें कि 22-23 दिसंबर 1949 की आधी रात में सर्दी और कोहरे के बीच रामलला उस ऐतिहासिक इमारत में दाखिल हुए थे. 6 दिसंबर 1992 को ढांचा टूटा तो रामलला को किसी तरह सुरक्षित निकाल लिया गया. उसी शाम गर्भगृह के मलबे पर रामलला को तिरपाल के नीचे स्थापित कर दिया गया था. तब से सुप्रीम कोर्ट के आदेश से तिरपाल तो कई बदले लेकिन रामलला की जगह नहीं बदली. रामलला वहीं विराजमान रहे.
अब 70 साल और लगभग तीन महीने बाद रामलला पास में ही बने छोटे से फाइबर मंदिर में 'शिफ्ट' होंगे. चिर स्थायी भव्य मंदिर बनने में तो अभी बरसों लगेंगे. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महासचिव चंपत राय के मुताबिक वासंतिक नवरात्रों में रामलला को नए 'मेकशिफ्ट मंदिर' में पहुंचा दिया जाएगा. संभवतः 25 मार्च से रामलला वहीं दर्शन देंगे. 70 सालों में ये पहली रामनवमी होगी जब रामलला मूल जन्मस्थान से थोड़े अलग हटकर रहेंगे.
नए मंदिर से रामभक्तों को होगी आसानी
जानकारी के मुताबिक रामलला का नया मंदिर सुरक्षा घेरे से थोड़ा नजदीक होगा. जिससे अब भक्तों के चक्कर कम होंगे और दर्शन जल्दी हो जाया करेगा. इस तरह अब दर्शनार्थियों को भी आसानी होगी. अब श्रद्धालुओं और भक्तों को एक किलोमीटर की जगह सिर्फ आधा किलोमीटर ही पैदल चलना पड़ेगा. श्रद्धालु करीब 25 फीट की दूरी से रामलला के दर्शन कर सकेंगे.
यह भी पढ़ें: राम मंदिर निर्माण में शामिल रहेगी लार्सन एंड टुब्रो, जिम्मेदारी तय करेगा ट्रस्ट
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा कि आगमी 25 मार्च यानी चैत्र नवरात्र के पहले दिन से अयोध्या स्थित 'नए स्थान' पर रामलला के दर्शन किए जा सकेंगे. रामलला को अस्थाई मंदिर में शिफ्ट करने से पहले सेवा पूजा के सभी इंतजाम करने के लिए प्रशासन को 15 दिनों का वक्त दिया गया है.
भक्तों के लिए इन सुविधाओं पर फोकस
दिल्ली में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में आयोजित अयोध्या पर्व के समापन समारोह में चंपत राय ने कहा कि मौजूदा समय में रामलला के दर्शन 52 फीट की दूरी से एक या दो सेंकड के लिए लोग कर पाते हैं. लेकिन अब नई व्यवस्था में यह दूरी घट कर 25-26 फीट रह जाएगी.
भक्तों को मिलने वाली सुविधाओं के बारे में बात करते हुए चंपत राय ने कहा कि भक्त एक से दो मिनट तक रामलला के दर्शन का लाभ ले सकें इसका भी ध्यान रखा जा रहा है. बड़ी तादाद में एकसाथ लोग रामलला की मंगला, राजभोग, संध्या और शयन आरतियों में भी शामिल हो सकें इसका भी समुचित इंतजाम होगा.
इन लोगों ने किया मंदिर परिसर का दौरा
चंपत राय ने बताया कि 29 फरवरी को अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की निर्माण समिति की बैठक हुई. इसकी अध्यक्षता समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा ने की. बैठक के बाद उन्होंने गर्भगृह व मंदिर परिसर का दौरा भी किया. उनके साथ भारत सरकार की कंपनी नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन यानी एनबीसीसी के पूर्व चेयरमैन व सीएमडी अरुण कुमार मित्तल और निजी क्षेत्र की निर्माण कंपनी लारसन एंड टूब्रो के प्रमुख इंजीनियर दिवाकर त्रिपाठी भी मौजूद थे.
यह भी पढ़ें: राम मंदिर के लिए भूमिपूजन की तारीख का ऐलान होने से पहले साफ-सफाई शुरू
चंपत राय ने कहा कि राम मंदिर के निर्माण के लिए 30 साल पहले ही शिलान्यास किया जा चुका है. लिहाजा अब सिर्फ भूमिपूजन किया जाएगा. क्योंकि अब निर्माण के लिए तय भूमि का रकबा बढ़ गया है. इसलिए यह कार्य वृहद रूप से कैसे संपन्न होगा इसका खाका तैयार किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि मंदिर निर्माण की तिथि व भूमिपूजन का मुहूर्त तकनीकी टीम की रिपोर्ट आने के बाद ही तय हो पाएगा.
श्रद्धालुओं की सुरक्षा होगी पहली प्राथमिकता
राय ने जोर देते हुए कहा कि भूमिपूजन के मौके पर या फिर आए दिन होने वाले अन्य उत्सवों पर देश-विदेश से चलकर रामलला के दर्शन करने अयोध्या आने वाले श्रद्धालुओं की पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था करना हमारी प्राथमिकता रहेगी. यहां रामनवमी, हनुमान जयंती, अक्षय तृतीया, एकादशी और पूर्णिमा जैसे कई अवसर आते हैं जब 15-20 लाख लोग अयोध्या आते हैं. वे भगवान के दर्शन और पूजन आसानी से कर सकें, यह हमारा पहला दायित्व है.
इस वजह से मंदिर में कंक्रीट का नहीं होगा इस्तेमाल
मंदिर के स्वरूप और निर्माण की तकनीक के बारे में चंपत राय ने कहा कि चूंकि भव्य मंदिर का निर्माण किया जाना है जिसकी उम्र कम से कम 500 साल हो, इसलिए मिट्टी की गुणवत्ता की हर नजरिए से परख और जांच होनी जरूरी है. ये काम तकनीकी विशेषज्ञों की टीम कर रही है.
उन्होंने आगे कहा कि टीम ने कह दिया है कि रामलला का मंदिर कंक्रीट का नहीं बनेगा. क्योंकि कंक्रीट की उम्र अधिकतम सौ साल मानी जाती है. जहां तक लोहे की बात है उसमें जंग लगने की आशंका सदा बनी रहती है. लिहाजा मंदिर का निर्माण राजस्थान के गुलाबी बलुआ पत्थरों से किया जाएगा. जिसे सैंड स्टोन कहा जाता है. इंटरलॉकिंग तकनीक की मदद से ये भूकंपरोधी भी होगा. शिखर स्वर्णमंडित होगा. इसके साथ ही गर्भगृह और इसके पट यानी किवाड़ स्वर्ण-रजत जड़ित होंगे.