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सुप्रीम कोर्ट की संसद से अपील- स्पीकर के अधिकार पर फिर से करे विचार

सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी का कर्नाटक के विधायकों को अयोग्य करार देने के मामले में भी खासा महत्व है. कर्नाटक में विधायकों की अयोग्यता के मामले पर सुनवाई में भी लंबा वक्त लगा था. अदालत ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि संसद इस पर पुनर्विचार करे कि अयोग्य ठहराने वाली याचिकाएं स्पीकर के पास एक अर्द्ध न्यायिक अधिकारी  के रूप में दी जाए या नहीं.

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सुप्रीम कोर्ट (प्रतीकात्मक तस्वीर)
सुप्रीम कोर्ट (प्रतीकात्मक तस्वीर)

  • स्पीकर के अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी
  • स्पीकर के अधिकार पर विचार करे संसद
  • अयोग्यता से जुड़ी याचिकाओं के लिए ट्रिब्यूनल का सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर के अधिकारों को परिभाषित करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला दिया है. अदालत ने संसद से इस बारे में विचार करने का आग्रह किया है कि स्पीकर जो खुद ही किसी पार्टी के सदस्य होते हैं, क्या उन्हें MP/MLA की अयोग्यता पर फैसला लेना चाहिए?

अयोग्यता पर फैसला लेने के लिए हो ट्रिब्यूनल का गठन

मंगलवार को अदालत ने कहा कि संसद इस बारे में विचार कर सकती है कि लोकसभा या विधानसभा के स्पीकर को विधायकों और सांसदों को अयोग्य ठहराए जाने वालों मामलों से अलग रखा जाए और इस बावत संविधान में जरूरी बदलाव किया जाए.

अदालत ने कहा है कि विधायकों और सांसदों की अयोग्यता पर फैसला लेने के लिए एक स्थायी ट्रिब्यूनल का गठन किया जा सकता है और सुप्रीम कोर्ट के सेवा निवृत जज, या हाई कोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस इसकी अध्यक्षता कर सकते हैं, या फिर एक ऐसी व्यवस्था की जाए जो निष्पक्ष हो.

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लंबे समय तक नहीं रख सकते अयोग्यता से जुड़ी याचिका

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि स्पीकर की भूमिका पर एक बार फिर से विचार करने की जरूरत है और स्पीकर अयोग्यता से जुड़ी याचिकाओं को लंबे समय तक अपने पास नहीं रख सकते हैं. बता दें कि झारखंड में विधायकों की अयोग्यता से जुड़े मामलों को सुलझाने में लंबा वक्त लग गया था.

मणिपुर का मामला

जस्टिस आर एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने ये फैसला मणिपुर से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान दिया. मणिपुर में भाजपा के विधायक टीएच श्यामकुमार ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता था, लेकिन बाद में वो बीजेपी में शामिल हो गए और सरकार में मंत्री बन गए. अदालत ने मणिपुर के कांग्रेस विधायक फाजुर रहीम और के मेघचंद्र से कहा कि यदि विधानसभा स्पीकर मंत्री की अयोग्यता से जुड़ी याचिका पर चार हफ्ते के भीतर फैसला नहीं लेते हैं वे सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाल सकते हैं.

इस मामले में कांग्रेस नेताओं ने मांग की थी कि कांग्रेस बीजेपी में गए टीएच घनश्यामकुमार की मंत्री पद पर नियुक्ति को रद्द किया जाए और स्पीकर की बजाय सुप्रीम कोर्ट ही मंत्री की अयोग्यता पर फैसला करे.

स्पीकर खुद भी एक पार्टी का सदस्य

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सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी का कर्नाटक विधायकों को अयोग्य करार देने के मामले में भी खासा महत्व है. कर्नाटक में विधायकों की अयोग्यता के मामले पर सुनवाई में भी लंबा वक्त लगा था. अदालत ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि संसद इस पर पुनर्विचार करे कि अयोग्य ठहराने वाली याचिकाएं स्पीकर के पास एक अर्द्ध न्यायिक अधिकारी  के रूप में दी जाए या नहीं, जबकि वह इसी दौरान एक खास पार्टी से भी जुड़ा रहता है.

अदालत ने कहा कि ऐसे विवादों को निष्पक्ष और बिना गैर जरूरी देरी के सुना जाया जाना चाहिए. अदालत के मुताबिक ऐसा करने से संविधान की दसवीं अनुसूची में वर्णित प्रावधानों को मजबूती मिलेगी जो कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी हैं.  

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