जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने लद्दाख के याचिकाकर्ता वकील नजुमल हुदो को जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को कहा है.
रद्द हो 100 फीसदी आरक्षण का प्रावधान
याचिकाकर्ता ने मांग की है कि जम्मू और कश्मीर सिविल सेवा (विकेंद्रीकरण और भर्ती) अधिनियम की धारा 3A, 5A, 6, 7 और 8 को रद्द किया जाए, क्योंकि ये धाराएं भारत के संविधान की धारा 14, 16, 19, 21 का उल्लंघन करती हैं, क्योंकि जम्मू और कश्मीर सिविल सेवा अधिनियम की ये धाराएं केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की सरकारी नौकरियों में यहां के डोमिसाइल यानी कि यहां के मूल निवासियों को 100 फीसदी आरक्षण देती हैं.
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याचिका पर सुनवाई से कोर्ट का इनकार
याचिका में मांग है कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद से केंद्र शासित प्रदेश समान रूप से सभी कानूनों और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के अधीन हैं जो देश के बाकी हिस्सों पर भी लागू होते हैं. इसलिए, यदि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में कोई भी आरक्षण डोमिसाइल के आधार पर दिया जाना है, तो उसे संविधान के अनुच्छेद 16 (3) के आधार पर ही दिया जा सकता है.
समान अवसर की गारंटी के अधिकार का उल्लंघन
बता दें कि जम्मू और कश्मीर सिविल सेवा अधिनियम की धारा 5A में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी पद पर नियुक्ति के लिए तब तक योग्य नहीं होगा जब तक वह केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का अधिवास नहीं होगा, ये धारा संविधान की अनुच्छेद 16 (3) के समान अवसर की गारंटी के प्रावधान का उल्लंघन करता है.
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बता दें कि 31 मार्च को सरकार ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन आदेश 2020 जारी किया जिसके बाद जम्मू और कश्मीर सिविल सेवा कानून में बदलाव हुआ. इस अधिनियम की धारा 5 ए में कहा गया कि ग्रुप-4 के पद डोमिसाइल के लिए ही आरक्षित होंगे.