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गर्भपात अपराध के दायरे से बाहर हो, सुप्रीम कोर्ट में याचिका

तीन महिलाओं ने इस संबंध में याचिका दायर की है, जिसमें कहा गया है कि सरकारी तंत्र महिलाओं को गर्भ पूरी अवधि रखने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है.

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याचिका में कहा गया है कि प्रजनन महिलाओं की पसंद का मामला है.
याचिका में कहा गया है कि प्रजनन महिलाओं की पसंद का मामला है.

गर्भपात को अपराध के दायरे से पूरी तरह मुक्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है. याचिका में कहा गया है कि प्रजनन महिलाओं की पसंद का मामला है, इसलिए महिलाओं को प्रजनन और गर्भपात के बारे में फैसला करने का अधिकार होना चाहिए. इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया है और केंद्र को नोटिस भेजा है.

तीन महिलाओं ने इस संबंध में दायर याचिका में कहा है कि गर्भपात केवल मां का जीवन बचाने के लिए नहीं हो सकता है. इस मुद्दे पर महिलाओं की राय भी अहम है. याचिका में कहा गया है कि सरकारी तंत्र महिलाओं को गर्भ पूरी अवधि रखने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है.

बता दें कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के मुताबिक, गर्भपात कराने की समय-सीमा 12 हफ्ते है. 12 हफ्ते के अंदर महिला गर्भपात करवा सकती है. हालांकि, महिला को मानसिक और शारीरिक समस्या होने की स्थिति में और भ्रूण में स्वास्थ्य समस्याएं या जटिलताएं आने पर ही कानून में अलग प्रावधान किए गए हैं. ये कानून कहता है कि 20 हफ्ते के बाद गर्भपात नहीं कराया जा सकता है. लेकिन अगर मां की जान को खतरा है तो यहां भी दूसरे प्रावधान है.

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इस जनहित याचिका में कहा गया है कि इच्छा के विरुद्ध सरकार महिला को गर्भधारण जारी रखने के लिए नहीं कह सकती है. महिलाओं को यह तय करने का अधिकार होना चाहिए कि वह गर्भ रखना चाहती है कि नहीं. याचिका में कहा गया है कि प्रजनन और गर्भधारण, फिर गर्भ को पूरी अवधि तक रखना या फिर इसे खत्म करना, ये एक महिला की निजी पसंद, उसकी गरिमा, निजी आजादी, और आत्म निर्णय का मामला है और इसे संविधान की धारा-21 में चिन्हित किया गया है.

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