झारखंड में सोमवार को तेजी से बदले राजनीतिक घटनाक्रम के तहत भाजपा और राजग के घटक जदयू द्वारा समर्थन वापसी के कारण अल्पमत में आयी पांच माह पुरानी शिबू सोरेन सरकार को राज्यपाल एम ओ एच फारूक ने विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया.
झामुमो विधायक दल के नेता और मुख्यमंत्री शिबु सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन ने राज्यपाल से शिबु सोरेन की सोमवार शाम हुई मुलाकात के बाद संवाददाताओं को बताया कि सोरेन ने राज्यपाल से बहुमत साबित करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा और राज्यपाल ने उन्हें यह समय देते हुए बहुमत सिद्ध करने के लिए 31 मई का दिन निर्धारित किया.
भाजपा और जदयू के दो विधायकों द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद सोरेन सरकार के पास 82 सदस्यीय विधानसभा में अब महज 25 विधायकों का समर्थन रह गया है. झारखंड विधानसभा में झामुमो के 18, कांग्रेस के 14, झारखंड विकास मोर्चा के 11 और राजद के पांच विधायक हैं. एक सदस्य मनोनीत हैं जबकि अन्य विधायकों की संख्या 8 है.
यह पूछे जाने पर कि भाजपा और जद यू के समर्थन के बिना झामुमो 82 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने के लिए जरूरी 42 का जादुई आंकड़ा कैसे हासिल करेगी, हेमंत ने कहा, ‘हमारे पास यह जादुई आंकड़ा है और समय आने पर आप देख लीजिएगा’. उन्होंने कहा कि कांग्रेस से उनकी पार्टी की बातचीत हुई है, लेकिन अभी इस बारे में कोई खुलासा नहीं किया जाएगा. {mospagebreak}
इससे पूर्व सोमवार को भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और वर्तमान सरकार में उपमुख्यमंत्री रघुवर दास दोपहर 12 बजे पार्टी के सभी विधायकों, सांसदों और मुख्यमंत्री पद के लिये पार्टी के उम्मीदवार अर्जुन मुंडा को साथ लेकर राजभवन पहुंचे. उन्होंने गठबंधन सरकार से समर्थन वापसी का पत्र राज्यपाल एम ओ एच फारूक को सौंप दिया. राज्यपाल ने कहा कि वह समर्थन वापसी के भाजपा के पत्र पर विचार करेंगे और राज्य की राजनीतिक स्थिति की समीक्षा करने के बाद ही कोई निर्णय करेंगे.
यह पूछे जाने पर कि क्या वह मुख्यमंत्री सोरेन को मिलने के लिये बुलायेंगे, राज्यपाल ने कहा कि अभी इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता, विधि विशेषज्ञों से विचार विमर्श करने के बाद ही वह इस बारे में फैसला करेंगे. समर्थन वापसी के बाद भाजपा विधायक दल के नेता दास ने संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने राज्य सरकार से पार्टी के सभी 18 विधायकों के समर्थन वापस लेने संबंधी पत्र राज्यपाल को सौंप दिया. अब राज्यपाल को राज्य के भविष्य के बारे में फैसला करना है.
दास ने कहा कि भाजपा ने राज्य में पिछले 26 दिन से कायम राजनीतिक अस्थिरता और झारखंड मुक्ति मोर्चा के पल पल बदलते बयानों को देखते हुए ही गठबंधन सरकार से समर्थन वापसी का फैसला किया है. उन्होंने राज्य की राजनीतिक अस्थिरता के लिये पूरी तरह कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि कांग्रेस ने झारखंड में 2005 में भी इस तरह की स्थिति निर्मित कर भाजपा के अर्जुन मुंडा के नेतृत्व वाली सरकार को गिराया था और मधु कोड़ा के नेतृत्व वाली कठपुतली सरकार बनायी थी. {mospagebreak}
भाजपा के समर्थन वापस लेने के तुरंत बाद जदयू ने भी राज्य सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी. जदयू प्रवक्ता प्रमोद मिश्र ने बताया कि जदयू सिद्धांत वाली पार्टी है और राष्ट्रीय स्तर पर उसका भाजपा के साथ गठबंधन है. भाजपा द्वारा झामुमो के नेतृत्व वाली राज्य सरकार से समर्थन वापसी के फैसले के बाद जदयू ने भी इस सरकार से समर्थन वापस लेने का निर्णय लिया है.
उन्होंने बताया कि पार्टी के दोनों विधायक सुधा चौधरी और गोपाल कृष्ण पातर समर्थन वापसी का पत्र एक या दो दिन के भीतर राज्यपाल को सौंप देंगे. बीती 18 मई को मुख्यमंत्री सोरेन और सरकार में शीर्ष पद के लिये भाजपा के दावेदार मुंडा ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन कर घोषणा की थी कि दोनों दलों के बीच इस बात पर सहमति बनी है कि दोनों 28-28 महीने के लिये बारी-बारी से सत्ता संभालेंगे.
यह भी तय हुआ था कि पहले 28 महीने में मुंडा के नेतृत्व में सरकार बनेगी और बाद के 28 महीनों में झामुमो सत्ता संभालेगी. लेकिन इस आपसी सहमति के दूसरे ही दिन सोरेन ने अलग तरह के बयान दिये, जिसके बाद भाजपा समर्थन वापस लेने के बारे में विचार करने लगी. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सोरेन ने काफी सोच समझकर ये बयान दिये हैं. लोकसभा में अनुदान मांगों पर लाये गये कटौती प्रस्ताव के दौरान संप्रग सरकार के पक्ष में मतदान करना उनकी इसी रणनीति का हिस्सा था.