इस वक्त मनुष्य जाति मानव सभ्यता के इतिहास के सबसे बड़े सवालों का सामना कर रही है. मन को कुरेदने वाला यह सवाल है कि सलमान की बहन की शादी में कौन-कौन शामिल हुआ. किसे-किसे बुलाया, कौन गया और कौन नहीं. कुल जमा इस राष्ट्रीय महत्व के विवाह को इतनी हाइप दी गई कि जब प्रधानमंत्री अर्पिता की शादी में हैदराबाद न जाकर तीन देशों की यात्रा पर निकल गए तो बड़ा आश्चर्य हुआ. क्या आसियान और जी-20 देशों की बैठक में जाना इतना जरुरी था कि कोई सलमान की बहन की शादी छोड़ जाए?
जाने-न जाने और बुलाने-न बुलाने का सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता जामा मस्जिद के शाही इमाम ने बेटे की दस्तारबंदी (ताजपोशी पढ़ें!) में नवाज शरीफ को बुलाया पर अपने प्रधानमंत्री को नहीं बुलाया. कांग्रेस ने चाचा नेहरु के जन्मदिन पर सम्मलेन आयोजित कर प्रधानमंत्री को नहीं बुलाया. प्रधानमंत्री ने छब्बीस जनवरी की परेड देखने अमेरिका के राष्ट्रपति को बुला डाला. देखा-देखी नवाज शरीफ ने भी ओबामा को रो-गाकर पाकिस्तान आने का बुलावा दे डाला.
ओबामा ने भारत आने का न्योता स्वीकार किया और पाकिस्तान का न्योता ठुकरा दिया. बदले में नवाज शरीफ ने इमाम बुखारी के बेटे की दस्तारबंदी में आने का न्योता ठुकरा दिया. पर नवाज शरीफ चुप बैठने वालों में से नहीं हैं. उन्होंने कूटनीतिक कदम उठाते हुए ओबामा को एक खुफिया चिठ्ठी लिख भेजी, जिसमे पूछा गया था कि गणतंत्र दिवस ही क्यों अगर हिन्दुस्तान वाले सच में आपको मुख्य अतिथि बनाना चाहते हैं तो अर्पिता की शादी में क्यों नहीं बुलाया? इस चिट्ठी में भारत के पैंसठ सांसदों के दस्तखत के साथ मोदी के बुलाने पर भारत न आने की गुजारिश और बिलावल भुट्टो की ‘हमाले पाकिछ्तान जलूल-जलूल आना वल्ना मैं वाइताउछ की इन्चिंच जमीन छीन लूंदा’ वाली बाल मनुहार भी शामिल थी.
चलते-चलते:- अर्पिता की शादी के बीच पूरे समय जितनी बार ‘सलमान की बहन’ शब्द का इस्तेमाल हर किसी ने किया. उसका असर ये हुआ कि अर्पिता के पति आयुष शर्मा अपनी शादी के कार्ड में ‘सलमान की बहन’ के बजाय अर्पिता का नाम पढ़कर एकबारगी भौंचक्के ही रह गए.
(युवा व्यंग्यकार आशीष मिश्र पेशे से इंजीनियर हैं और इंदौर में रहते हैं.)