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व्यंग्य: गुप्त मतलब रोग और वोट..बस

खबरदार. अगर आज के बाद किसी ने सुश्री कैंडी क्रश, फेसबुक या प्राइवेसी को लेकर अपना शो पीस वाला घाघरा उठाया. सूप बोले तो बोले, छन्नी भी बोले. बड़े बुजुर्ग सही कहते हैं कि कलयुग अपने चरम पर है. प्राइवेसी का झंडा उठाकर आज कल वो लोग राग अलाप रहे हैं, जो खुद दिनभर अपनी निजी बातों का घाघरा उठाए खड़े रहते हैं.

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प्राइवेसी पर हंगामा है क्यों है बरपा ?
प्राइवेसी पर हंगामा है क्यों है बरपा ?

खबरदार. अगर आज के बाद किसी ने सुश्री कैंडी क्रश, फेसबुक या प्राइवेसी को लेकर अपना शो पीस वाला घाघरा उठाया. सूप बोले तो बोले, छन्नी भी बोले. बड़े बुजुर्ग सही कहते हैं कि कलयुग अपने चरम पर है. प्राइवेसी का झंडा उठाकर आज कल वो लोग राग अलाप रहे हैं, जो खुद दिनभर अपनी निजी बातों का घाघरा उठाए खड़े रहते हैं.

यह सारे जीव-जंतु सीसी इंसान टाइप कुछ लोग घर से लेकर बाहर तक कहीं भी जाएं. फेसबुक पर वॉचिंग, इटिंग, वोमेटिंग जरूर लिखेंगे. फेसबुक, ट्विटर पर इनकी हरकतों के छीटें आए दिन देखने को मिल जाते हैं. अब आप लोग खुले आम अपना रिच स्टेट्स बनाने के लिए सोशल प्लेटफॉर्म पर खड़े रहेंगे. ऐसे लोगों की फेसबुकीय उल्टियों के बाद अगर कोई इनके बारे में जान ले तो ऐसे हाय तौबा मचाते हैं जैसे अचानक अनचाहे गर्भ की खबर मिल गई हो.

हिंदी के 'ण' के बाद क्या आता है यह पता करने के लिए गूगल करेंगे, लेकिन खुद की जानकारी अगर सामने आ जाए या लोग उस बारे में बात करने लगें तो समझ लीजिए. बस आफत है. हरमुनिया बजाते हुए आ जाएंगे. दीवारों पर लिखा होता है कि देखो गधा पेशाब कर रहा है. पर गधे को कभी किसी ने पेशाब करते नहीं देखा होगा. ऐसी दीवारों के पास हमेशा इंसानी जल की नमी ही पाई जाती है. ये प्राइवेसी वाले लोग भी इसी तरह होते हैं. खुद सारा ज्ञान खुले आम ठासेंगे. लेकिन जिम्मेदार ठहराएंगे कंपनियों को और उन लोगों को जो समाज की परवाह करते हुए इनके बारे में बात करते हैं.

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आईटी फ्रेंडली भाइयों और बहनों अगर अपनी बातों को इतना ही छुपाकर रखना चाहते हो तो त्याग दो मोह माया. त्याग दो फोन. कुतर डालिए अपनी सिम.  इंटरनेट के तार को काटकर उसका इस्तेमाल अपना कच्छा-बनियान और सार्वजनिक कपड़े फैलाने के लिए करिए. तब आपको पर्सनल लाइफ जीने में मजा आएगा. उसके बाद अगर दिक्कत आए या कभी कोई मैसेज किसी को भेजना हो तो  किसी सस्ते कबूतर मार्केट से खरीद लाओ कबूतर. बांध दो उनके पैरों में चिट्ठियां और बैकग्राउंड में 'कबूतर जा-जा-जा...' का गाना बजाकर ट्राई कर लो. तब हम मानेंगे कि हां आप लोग प्राइवेसी को लेकर सीरियस हो.

अंगुलियां दिनभर चलेंगी फेसबुक पर. न्यूज चैनल भले ही न देखें, लेकिन फेसबुक न्यूज फीड जरूर खिसकाए-खिसकाए पढ़ेंगे. सेटिंग नाम की एक चीज होती है. उसे चेंज करने की बजाय खुद आए दिन उसका फायदा उठाते रहते हैं. फेसबुक में सेटिंग होती है कि कोई कैंडी क्रश की रिक्वेस्ट न भेज सके. लेकिन उस सेटिंग को चेंज करने की बजाय बंटी-बबली टाइप लोगों की दुलारी कैंडी क्रश को गरियाते रहेंगे.

टेक्नोलॉजी वाले छोकरे-छोकरियां पहले तो फोन, टैबलेट बड़ा सा ले लेंगे. लेकिन साथ का कोई अगर उस फोन या टैबलेट से निकली रोशनी से आकर्षित होकर उसे श्रद्धा भाव से निहारने लगता है. तो कहेंगे इट्स माई लाइफ. तो  देवियों और सज्जनों, क्यों थक रहे हो. या तो बाबा रामदेव से संपर्क करके हिमालय चले जाओ और वहां अकेले में बैठकर खुद से कहो. इट्स माई पर्सनल लाइफ और डोंट डिस्टर्ब मी. कसम है रामदेव के दंतक्रांति की. अगर कोई भी बंदा या बंदी दखल दे दे आपकी निजी लाइफ में. तो मेरा नाम बदलकर कौवा बिरयानी रख देना.

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बांगड़ुओं, जिंदगी मिलकर जीने के लिए है क्योंकि किसी महान आदमी ने अपने गुप्तवास के दौरान एक बात कही थी कि गुप्त सिर्फ दो चीजें होती हैं. एक गुप्त मतदान दूसरा गुप्त रोग. बांगड़ुओं, किसी महान आदमी ने अपने गुप्तवास के दौरान एक बात कही थी कि गुप्त सिर्फ दो चीजें होती हैं. एक गुप्त मतदान दूसरा गुप्त रोग. तो अगर आप अपने आपे को या अपने से जुड़ी जानकारी को बचाकर रखना चाहते हैं. तो इसकी शुरूआत खुद से कीजिए. फेसबुक, ट्विटर और गूगल पर अपनी जानकारी और अपने राज शेयर करने से बचिए. इसके बाद आप दूसरों पर अंगुली उठाइएगा. यह ज्ञान तो आपको होगा ही कि जब हम एक अंगुली किसी की तरफ उठाते हैं. तो.. आप खुद समझदार हैं. मुबारक हो आप समझ गए.

भावनगर वाले शेख बदर्स का कायमचूर्ण भी कब्ज में सिर्फ तभी फायदा करता है जब खुद की आदतों में सुधार किया जाए. थाली और मन के कुलबुलाने पर कंट्रोल कीजिए. इज्जत और प्राइवेसी मुफ्त मिलेगी.

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