स्कूल से निकलते ही ‘टू बी.टेक, ऑर नॉट टू बी.टेक’ में बी.टेक चुनने वालों के सामने इंजीनियरिंग कॉलेज से निकलते तक एक और यक्ष प्रश्न, सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ा होता है कि अब क्या? अब तक तो सेमेस्टर एक्जाम्स में पछाड़े और कैम्पस सलेक्शन में नकारे गए बच्चे इंजीनियरिंग खत्म होते ही या तो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट जाते या एमबीए में एडमीशन लेकर बेरोजगारी को कुछ छमासों के लिए टाल जाते थे.
इनमे से कुछ ऐसे भी होते जो केजरीवाल-भगत को रोल मॉडल बना राजनीति या लेखन में हाथ-पैर मारने लगते, लेकिन संत(?) रामपाल की गिरफ्तारी को लेकर उठे विवाद के बाद जैसे ही लोगों ने उनके बारे में ये जाना कि इसके पहले वो सिंचाई विभाग में इंजीनियर थे, इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स में खुशी की लहर दौड़ गई. उन्हें पता चल चुका है कि हर ओर से ठुकराए जाने के बाद वो इस ‘धंधे’ में अच्छा-खासा नाम और दाम कमा सकते हैं.
ये और बात है कि उनकी नौकरी भगवत्प्राप्ति के प्रयास में थोड़ा सा भ्रष्टाचार करते ही जाती रही, लेकिन अंदर से तो वो हैं इंजीनियर ही न? उनके कुछ अनुयायी तो यहां तक कह रहें हैं कि ओसामा के बाद वो दूसरे इंजीनियर हैं, जिन्होंने इतना नाम कमाया. संत बनने के बाद भी उनके अंदर इंजीनियर वाला कीड़ा मरा नहीं है क्योंकि अपनी बातों से उन्होंने इतने चेले-चपाटी ठीक उसी तरह से बना लिए जैसे इंजीनियरिंग स्टूडेंट Viva में एक्सटर्नल को बना लेते हैं. कुछ चेले तो यहां तक कह रहे हैं कि रामपाल तो पुलिस को गिरफ्तारी देने को भी तैयार थे, लेकिन ऐन मौके पर किसी ने उनसे कह दिया कि ‘ये आपको पकड़कर मिड सेमेस्टर एक्जाम दिलाने ले जा रहे हैं!’
जब पुलिस रामपाल के अड्डे पर उन्हें लेने पहुंची तो उनके समर्थकों ने तेजाब, पेट्रोल बम और हथियारों से पलटवार कर दिया. समझने वाली बात ये है कि ‘आश्रम’ में असलहे और पेट्रोल बम के लिए बोतलें दीपावली पर रॉकेट छोड़ने के लिए लाई गई थी या ईडी के बैक हुए पेपर का गम हैंगओवर के साथ उतारने को?
रामपाल को कोर्ट कि अवमानना के कारण शुरू हुए विवाद के पहले उतने ही लोग जानते थे, जितने अर्जुन रामपाल ने आजतक सारी फिल्मों में कुल मिलाकर एक्स्प्रेशन्स दिए होंगे. अब जब हरियाणा पुलिस रामपाल को नही पकड़ पा रही तो नाम के लिए चाहे तो अर्जुन रामपाल को ही 'हाउसफुल' और 'रास्कल्स' जैसी बे-सिर पैर की फिल्में करने के लिए गिरफ्तार कर दिखा सकती है.