ये वो दौर है जब हर चीज बंटी हुई है. मुख्यत: धर्म के नाम पर या दलों के नाम पर. धर्म और दल इसलिए क्योंकि धर्म और राजनीति पर जा अटकना हमारे देश का फेवरेट टाइमपास है. कई तो धर्म भी दलों के पेटी कांट्रेक्टर चलाते हैं. उनका लिखा वेद है. कहा सूक्ति है. किया धर्म है. जो हर बात पर फतवे दे दें उनका बोला आयतें, ऐसा हम नहीं कहते वो समझते हैं.
इतने करीने से मेडिकल स्टोर वाले अलग-अलग डिब्बों में दवाइयां छांट कर नहीं रखते, जितनी तबियत से पेटी कांट्रेक्टर हर चीज को बांट कर रखते हैं. आप चाहे ध्यान न दें लेकिन आप जान कर चौंक जाएंगे कि बकरे और बैल भी बंटे हैं. बकरे मुसलमान हैं. बैल हिन्दू, मुर्गा मुसलमान और मछली हिन्दू. ये तो जानवर हैं. रंग भी बांट रखे हैं. लाल संघी-हरा वहाबी, टमाटर हिन्दू-मटर मुसलमान, खजूर मुसलमान हैं और नारियल हिन्दू. जो कश्मीर में डूबे वो मुसलमान और जो उत्तराखंड में दबे वो हिन्दू. गजब तो ये कि मरकर भी लाशें तक धर्म नहीं छोड़ पातीं?
किसी रोज पता चलेगा गालियां भी बंट चुकी मुएं मुसलमान हैं और कलमुंहे हिन्दू. ऐसा ही कुछ महापुरुषों के साथ है. उन्हें धर्मों ने नहीं दलों ने बांट रखा है. वैसे बात एक ही है. मजा तो तब आता है जब दो महापुरुषों कि ‘तिथि’ एक साथ पड़ती है. उन दिनों टुच्चई अचानक एनर्जी ड्रिंक पीकर क्लाउड नाइन पर जा पहुंचती है. एक महापुरुष को फ्रन्ट पेज पर चौड़े में बधाई दी जाती है और दूसरे अंदर के किसी पेज पर कोना पकड़ लेते हैं. ज्यादा हुआ तो एक के नाम योजना शुरू करा दी जाती हैं या मूर्तियां गड़वा दी जाती हैं.
कभी-कभी तो लगता है महापुरुष जीते-जी इतने महान काम सिर्फ इसलिए करते हैं ताकि उनके जाने के बाद योजनाओं के लिए नाम तलाशने दूर न जाना पड़े. बापू या शास्त्रीजी कि तिथियाँ साथ पड़ें या सरदार पटेल और इंदिरा गांधी की ओछापन चहुंओर नजर आता है. अब तक बापू कांग्रेसी होते थे और बाकी शास्त्री जी की ओर. सरदार पटेल जयंती पर भी एक जने मूर्तियों की बात करते हैं तो दूसरे बलिदान की. हाल ही में चाचा नेहरु की जयंती पर भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला. हालांकि उनकी जयंती अकेले ही पड़ती है पर मोदी सरकार के चाचा नेहरू के 125वें जन्मदिवस पर बाल स्वच्छता वर्ष मनाने की घोषणा करते ही कांग्रेस ने आनन-फानन उनके जन्मदिन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन कर प्रधानमंत्री को न बुलाने का ऐलान कर दिया.
डर इस बात का कि कहीं ‘बापू’ की तरह ‘चाचा जी’ भी हाइजैक न कर लिए जाएं. महापुरुषों की जयंती पर मचने वाली ऐसी छीन-छपट के बीच कल को कोई महापुरुष एक दिन को अपनी जयंती पर खुद धरती पर आए तो लोग उन्ही से पूछ डालेंगे, “अच्छा आप महापुरुष हैं? कौन सी पार्टी से ?”
(युवा व्यंग्यकार आशीष मिश्र पेशे से इंजीनियर हैं और इंदौर में रहते हैं.)