वो बनारस में अपना जन्मदिन मना रही थीं और मैं उन्हें टीवी पर देख रहा था, लगभग हर जगह नजर आ रहीं थी. ठीक है बड़े लोगों का बड्डे भी बड्डा-बड्डा होता है, नजर आना ही चाहिए. अगले दिन टीवी से लेकर अखबार तक उनके जन्मदिन की खबरों से अटे पड़े थे.
खबरें ऐसी कि उन्होंने अपना जन्मदिन बड़ी सादगी से मनाया, दस कमरे और तेईस सुइट बुक कराए, सजावट में इतने लाख खर्च किये, गंगा आरती में शामिल हुईं. यहाँ तक तो सब ठीक था पर जब मैंने पढ़ा कि उन्होंने अपने जन्मदिन पर साढ़े बारह किलो का केक काटा तो मुझे इन्वर्टेड कॉमा में ‘Inferiority complex’ हो पड़ा. इसलिए नहीं कि चोटी से एड़ी तक एक बार समेटकर मुझे तौला जाया तो काया का कुल वजन साढ़े बारह किलो से एकाध छटांक ही ज्यादा होगा, बल्कि इसलिए की क्या तबीयत से मलाई केक का जिक्र किया गया था.
स्पेशल मलाई केक पौने तीन फीट लम्बा और इतना ही चौड़ा था, इसमें इलायची, केसर, पिस्ता, बादाम, काजू के साथ मलाई भी डली थी. केक के बॉर्डर पर सजावट में अंजीर का पेस्ट, ऊपर सजावट में चांदी के वर्क पर गुलाब की पंखुड़ियां, मतलब एक-एक चीज बताई गई थी. इंसान खुद को बड़ा तब तक समझता है जब तक उसे खुद से बड़ा कोई न दिख जाए, तब मुझे समझ आया बड़े लोग क्या होते हैं और उनका बर्थडे कैसा होता है.?
सबसे पहले तो समझिये आम लोगों का बर्थडे कैसा होता है? अव्वल तो बर्थडे भी अखर जाता है जब सुबह-सुबह उठकर नहाना पड़ जाए, फिर दौड़कर मंदिर तक जाकर टीका लगवाना होता है. स्कूल में होते थे तो बर्थडे सिर्फ इसलिए ख़ास हो जाता था क्योंकि इस एक दिन बिना यूनिफ़ॉर्म स्कूल जाने का अघोषित लाइसेंस मिल जाता था. ऐसे मौके पर ‘बेस्ट फ्रेण्ड’ का पता भी चल जाता है जिसे आप चुपके से दो टॉफी ज्यादा दे जाते हैं.
केक भले साढ़े बारह किलो का ना हो उस पर अपना नाम देख इंसान दो पल को खुद को अम्बानी समझ ही लेता है. वैसे भी लिखे-छपे में अपना नाम देख हम भारतीयों का हीमोग्लोबिन प्रतिशत और आरबीसी काउंट बढ़ जाता है. अखबार में एकबारगी नाम आ जाए तो दौड़कर मोहल्ले भर में दिखा आते हैं. कुछ लोग इतने खुशनसीब नहीं होते हैं, उनका नाम सिर्फ दो बार छप पाता है एक बार बाप की कमाई से शादी के कार्ड पर दूसरी बार बेटे की कमाई से शोकपत्र पर.
केक का चक्कर भी अजीब होता है, लोगों को केक देख जाने क्यों होली याद आ जाती है?. 'ग्रीन होली-क्लीन होली' का नारा बुलंद करने वाले भी जन्मदिन पर दोस्त के मुंह पर केक रगड़ते नजर आते हैं और वो बेचारा नाक में केक जाने से बचाता हुआ दिल ही दिल में गुहार लगाता है कि “जब खाना नहीं है, तो नाक-कान की बजाय मेरे मुंह में ही डाल दो'.
बड़े लोगों के बर्थडे पर ऐसी बेहूदगी नहीं होती, उनके बर्थडे का केक काटने पर लोग ताली इतने सलीके से बजाते हैं जैसी आपको कॉलेज में ‘विज्ञान-अभिशाप या वरदान’ पर दो पेज पढ़ देने पर भी न मिली होगी. बड़े लोग भी कई स्तर पर बड़े होते हैं, मजे की बात ये कि कुछ लोग बचपन से बड़े होते हैं ऐसे लोगों को आप अखबार में ‘टिंकू को पापा-मम्मी, दादा-दादी, चाचा-चाची और शैन्की की तरफ से दूसरे जन्मदिन की ढेरों बधाईयां’ वाले विज्ञापन देख पहचान सकते हैं. ऐसे में दो चीजें समझ से बाहर होती हैं दो साल का बच्चा अखबार क्या खाक पढ़ता होगा और दूसरा ये जन्मदिन की बधाई के नीचे ‘हमारे प्रतिष्ठान- लल्लू जी बर्तन भण्डार, शहर की सबसे पुरानी दुकान’ जैसी इबारत क्यों नजर आती है?.
जो थोड़ा और बड़े होते हैं उनके जन्मदिन पर ‘छन्नूलाल मिश्रा मित्रमण्डल की तरफ से बड़के भईया को जन्मदिन की शुभकामनाएं’ वाले होर्डिंग नजर आ जाते हैं. इनके बाद जो थोड़ा बड़े होते हैं उनके जन्मदिन पर शहर के खैराती हस्पताल में कुछ लोग मरीजों को आधा दर्जन केला और दो-दो सेब बांटते नजर आ जाते हैं. बड़े लोग के बर्थडे वाला फील भले ही आपको खुद के जन्मदिन पर सैकड़ों फेसबुक पोस्ट्स से भी आ जाए, लेकिन सबसे बड़ा वाला बर्थडे तो उसी का माना जाता है जिसके बर्थडे पर देशभर में ड्राई डे घोषित हो जाए.
(आशीष मिश्रा फेसबुक पर सक्रिय युवा व्यंग्यकार हैं और पेशे से इंजीनियर हैं.)