सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री के खिलाफ दायर रिव्यू पेटिशन पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच फैसला नहीं सुना पाई. अब ये मामला बड़ी बेंच को सौंप दिया है. इस मामले को अब 7 जजों की बेंच सुनेगी. गुरुवार को पांच जजों की बेंच ने इस मामले को 3:2 के फैसले से बड़ी बेंच को सौंप दिया है.
सबरीमाला मसले पर फैसला पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस केस का असर सिर्फ इस मंदिर नहीं बल्कि मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश, अग्यारी में पारसी महिलाओं के प्रवेश पर भी पड़ेगा.
'पितृसत्ता की पद्धति को स्वीकार नहीं करेंगे'
वहीं, इस मामले से जुड़ीं भूमाता ब्रिगेड की प्रमुख तृप्ति देसाई ने कहा, 'अब समय आ गया है कि पुराने रिवाजों को बदला जाए. महिलाओं पर पाबंदी लगाना असंवैधानिक है, गलत परंपरा को जारी नहीं रख सकते हैं. यह महिलाओं के अधिकार की बात है. 21वीं सदी में हम पितृसत्ता की पद्धति को स्वीकार नहीं करेंगे.'
SC के आदेश के बाद भी महिलाओं की एंट्री नहीं
बता दें कि हाईकोर्ट ने महिलाओं की एंट्री की इजाजत दे दी थी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर 2018 के फैसले को कायम रखते हुए सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की एंट्री को जारी रखा और इस पर स्टे देने से साफ इनकार कर दिया. हालांकि, इस फैसले के खिलाफ दायर रिव्यू पेटिशन पर सुप्रीम कोर्ट ने आज यह मामला बड़ी बेंच को सौंप दिया है. वहीं, फिलहाल मंदिर में कोर्ट के पुराने फैसले के मुताबिक महिलाओं की एंट्री जारी रहेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला देकर महिलाओं को एंट्री करने और पूजा करने की इजाजत दे दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी मंदिर में महिलाओं को प्रवेश नहीं करने दिया, जिसके बाद से यह विवाद शुरू हो गया. इस मंदिर में 10 से 50 साल के बीच की महिलाओं की एंट्री पर मनाही था.