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सबरीमाला पर याचिकाकर्ता ने बदला स्टैंड, अब किया महिलाओं के प्रवेश का समर्थन

Sabarimala case in Supreme court सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का मामला एक बार फिर सर्वोच्च अदालत के दर पर पहुंचा है. सुप्रीम कोर्ट में कुल 64 याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है, जिनमें कई पुनर्विचार याचिकाएं भी शामिल हैं.

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Credit: Facebook
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केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर काफी समय से विरोध जारी है. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में इस मसले से जुड़ी कई याचिकाओं पर सुनवाई हुई. पुनर्विचार याचिकाओं समेत कुल 64 याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. याचिकाकर्ताओं ने सुनवाई के दौरान कहा कि एक प्रथा के हिसाब से किन्हीं चिन्हित लोगों को दर्शन से वंचित रखना गलत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में केरल सरकार ने सबरीमाला मुद्दे पर दायर की गई पुनर्विचार की याचिका का विरोध किया है.

सुप्रीम कोर्ट में नायर सर्विस सोसाइटी की तरफ से वकील के. पारासरन ने कहा कि महिलाओं के एक ग्रुप को देवता के चरित्र के आधार पर बाहर रखा गया है. ये प्रैक्टिस एक निश्चित आयु तक की सीमा के लिए तय की गई थी, लेकिन इसे छुआछूत नहीं कहा जा सकता है. अब इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस नरीमन, जस्टिस खानविलकर, जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की बेंच कर रही है.

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बता दें कि बीते साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में सबरीमाला के अयप्पा मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को मंजूरी दी थी. इससे पहले यहां पर 10 से 50 साल उम्र तक की महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगी थी.

रुख से पलटे याचिकाकर्ता

बुधवार को सुनवाई के दौरान त्रावणकोर देवासम बोर्ड ने अपने रुख से पलटते हुए सबरीमाला में महिलाओं की एंट्री का समर्थन किया. जिस पर जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने भी उनसे सवाल पूछा. सबरीमाला में अयप्पा मंदिर के गेट अब 12 फरवरी को खुलेंगे, तबतक सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं की एंट्री पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने सबरीमाला के मुद्दे पर फैसला सुरक्षित रख लिया है.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर विवाद रहा. काफी दिनों तक केरल में प्रदर्शन हुआ. हालांकि, अब तक करीब 2 महिलाओं ने भगवान अयप्पा के दर्शन कर लिए हैं. आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करने वाले दलों में भारतीय जनता पार्टी भी शामिल है. सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश 4:1 के अनुपात से दिया था.

इसके अलावा भी कई संगठनों की ओर से पेश हुए वकीलों ने सबरीमाला मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया. वकीलों की ओर से कहा गया कि अदालत का फैसला वहां की जनता के विश्वास और आस्था के खिलाफ है.

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