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राम मंदिर आंदोलन के साथ-साथ कई बार बदली रामलला की पूजा व्यवस्था, जानें पूरा इतिहास

पांच अगस्त को अयोध्या में रामलला के मंदिर का भूमि पूजन होना है. इस कार्यक्रम में पीएम मोदी भी शामिल हो रहे हैं. भूमि पूजन के बाद मंदिर निर्माण के कार्यों में तेजी आएगी. मंदिर निर्माण के बाद रामलला अपने गर्भ गृह में चले जाएंगे जहां अलग ही शान-शौकत के साथ उनकी पूजा-अर्चना की जाएगी. लेकिन क्या आपको पता है कि इससे पहले रामलला की पूजा किस प्रकार की जाती थी?

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अस्थायी मंदिर में रामलला को स्थापित करते समय योगी आदित्यनाथ भी थे मौजूद (फोटो: PTI)
अस्थायी मंदिर में रामलला को स्थापित करते समय योगी आदित्यनाथ भी थे मौजूद (फोटो: PTI)

  • 23 दिसंबर 1949 से पहले राम चबूतरे पर हुआ करती थी रामलला की पूजा
  • 6 दिसंबर 1992 के बाद गर्भ गृह पर लगाए गए एक टेंट में होती रही थी पूजा
  • 25 मार्च 2020 की सुबह एक अस्थायी मंदिर में शिफ्ट कर दिए गए रामलला

आखिरकार वह घड़ी नजदीक आ चुकी है जिसका इंतजार दशकों से देश-दुनिया के करोड़ों लोग कर रहे थे. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की आधिकारिक शुरुआत होने जा रही है. इसी क्रम में पांच अगस्त को अयोध्या में रामलला के मंदिर का भूमि पूजन होना है. इस कार्यक्रम में पीएम मोदी भी शामिल हो रहे हैं. भूमि पूजन के बाद मंदिर निर्माण के कार्यों में तेजी आएगी. राम मंदिर अब और भव्य और विशाल बनने वाला है. मंदिर निर्माण के बाद रामलला अपने गर्भ गृह में चले जाएंगे जहां अलग ही शान-शौकत के साथ उनकी पूजा-अर्चना की जाएगी. लेकिन क्या आपको पता है कि इससे पहले रामलला की पूजा किस प्रकार की जाती थी?

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यह जानने के लिए आपको राम मंदिर से जुड़े पुराने इतिहास की तह में जाना होगा. ये भी जानना होगा कि इस विवाद की शुरुआत कैसे हुई थी, जिसने धीरे-धीरे विकराल रूप अख्तियार कर लिया और बहुत कुछ बदल गया. यहां आपको बता दें कि यूं तो राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद काफी पुराना है लेकिन जिस भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया था.

उस विवाद की शुरुआत 1949 में हुई थी जब 22/23 दिसंबर 1949 की रात मस्जिद के भीतरी हिस्से में रामलला की मूर्तियां रखी गई थीं. इस घटना के बाद अयोध्या का पूरा परिदृश्य ही बदल गया था और वहां पूजा की पुरानी व्यवस्था भी समाप्त हो गई थी. बता दें कि मर्यादा पुरुषोत्तम के बाल रूप यानी रामलला की मूर्ति बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के ठीक नीचे वाले कमरे में रखी गयी थी.

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बाबरी मस्जिद में कम ही जाया करते थे मुसलमान

बाबरी मस्जिद को लेकर यह आम धारणा थी कि इसे मुगल काल में भगवान राम के प्राचीन मंदिर को तोड़कर बनाया गया था. रख-रखाव के अभाव में खंडहर में तब्दील होती जा रही वह मस्जिद उन दिनों सिर्फ शुक्रवार को जुमे की नमाज के लिए खुलती थी. बाकी दिन उस ओर कम ही लोगों का आना-जाना होता था. इसकी वजह 1934 के दंगे थे, जिसके बाद मुसलमानों ने डर के मारे उधर जाना लगभग छोड़ दिया था.

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पहले इस तरह हुआ करती थी रामलला की पूजा

उस वक्त बाबरी मस्जिद की दीवार के बाहरी हिस्से में 21 फुट गुना 17 फुट का एक चबूतरा था, जिसे राम चबूतरा के नाम से जाना जाता था. वहां राम के बाल स्वरूप (रामलला) की एक मूर्ति विराजमान थी. रामलला के दर्शन के लिए तब उतने ही लोग जुटते थे जितने अयोध्या के किसी भी दूसरे मंदिर, मठ या आश्रम में जुटते थे. लेकिन रामलला के प्राकट्य उत्सव ने सब कुछ बदल दिया.

23 दिसंबर 1949 की सुबह बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के ठीक नीचे वाले कमरे में वही मूर्ति मिली थी, जो कई दशकों से राम चबूतरे पर विराजमान थी और जिनके लिए वहीं की सीता रसोई या कौशल्या रसोई में भोग बनता था. राम चबूतरा और सीता रसोई निर्मोही अखाड़ा के नियंत्रण में थे और उसी अखाड़े के साधु-संन्यासी वहां पूजा-पाठ आदि विधान करते थे.

विवाद बढ़ा तो ताले के भीतर होने लगी भगवान राम की पूजा

23 दिसंबर को पुलिस ने मस्जिद में मूर्तियां रखने का मुकदमा दर्ज किया था, जिसके आधार पर 29 दिसंबर 1949 को मस्जिद कुर्क कर उस पर ताला लगा दिया गया था. कोर्ट ने उस मामले में तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष प्रिय दत्त राम को इमारत का रिसीवर नियुक्त किया था और उन्हें ही मूर्तियों की पूजा आदि की जिम्मेदारी दे दी थी. उस वक्त रामलला का भोग राम चबूतरे की रसोई में बनाया जाता था. इसके बाद भोग लगाने के लिए संतरी विवादित इमारत का ताला खोल देता था.

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लेकिन 1971 में रिसीवर प्रिय दत्त राम की मृत्यु हो गई. इसके बाद नए रिसीवर और निर्मोही अखाड़े के बीच विवाद खड़ा हो गया. मामला अदालत में था और इस दौरान इस पर पुलिस ने दखल दिया और ताला लगाकर चाबी अपने पास रख ली. मौके पर तैनात संतरी बदल गया और चाबी नए संतरी को सौंप दी गई. वहां दो दरवाजे थे. एक दरवाजा भोग लगाने और प्रार्थनाओं के लिए हमेशा खुला रहता था. लंबे समय तक यही व्यवस्था चलती रही.

6 दिसंबर 1992 को पूरी तरह बदल गयी व्यवस्था

6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में हुई घटना के बाद भगवान रामलला की उसी वक्त स्थापना कर दी गयी थी. हालांकि वह एक अस्थायी मंदिर था. एक ऊंचे टीले का निर्माण कर विधि-विधान के साथ वहां रामलला की स्थापना कर दी गयी थी. इसके साथ ही उनके पूजा-पाठ की जिम्मेदारी रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास को सौंप दी गयी थी. हालांकि रामलला का वह अस्थायी मंदिर एक टेंट से बनाया गया था और कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था में था. कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था की वजह से एक बार फिर भक्तों का रामलला तक पहुंच पाना दूभर हो गया था. यही व्यवस्था कई सालों तक चलती रही.

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25 मार्च 2020 को एक बार फिर बदली रामलला की पूजा व्यवस्था

चैत्र नवरात्रि के पहले दिन यानी 25 मार्च को आखिरकार वह मौका आया जब 27 साल 3 माह 20 दिन बाद रामलला टेंट से निकल कर एक अस्थायी और मेकशिफ्ट मंदिर में स्थापित किए गए. कुछ लोगों ने इस बात का भी दावा किया कि करीब 500 सालों (1528-2020) बाद रामलला चांदी के सिंहासन पर विराजमान हुए जिसे अयोध्या के राजघराने की तरफ से भेंट किया गया था. यहां आपको बता दें कि 25 मार्च को ब्रह्म मूहूर्त में करीब 4 बजे श्रीरामजन्मभूमि परिसर में स्थित गर्भगृह में रामलला को स्नान और पूजा-अर्चना के बाद अस्थायी मंदिर में शिफ्ट किया गया था. इस मौके पर सीएम योगी आदित्यनाथ भी मौजूद थे.

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गर्भ गृह से कुछ मीटर की दूरी पर मानस भवन के नजदीक बनवाए गए रामलला के अस्थायी मंदिर में विराजमान होने के साथ ही अब श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए ज्यादा दूरी नहीं तय करनी पड़ेगी. इसके साथ ही अब श्रद्धालु काफी करीब से रामलला के दर्शन कर सकते हैं. अस्थायी मंदिर में 5 फीट की गैलरी श्रद्धालुओं के लिए बनायी गयी है. इसके अलावा सामने से रामलला के दर्शन के लिए रंग मंडप भी बनाया गया है.

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