कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने शुक्रवार को कहा कि राफेल विमान सौदे की जांच करने में उच्चतम न्यायालय के अपने अधिकार क्षेत्र को लेकर अपनी सीमाएं बताने के बाद यह (सौदा) बगैर चुनौती या बगैर छानबीन के नहीं रह जाना चाहिए. चिदंबरम ने सिर्फ 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के सरकार के फैसले पर भी सवाल उठाया, जबकि (वायुसेना को) कम से कम 126 विमानों की जरूरत है. पूर्व केंद्रीय मंत्री ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने जानबूझ कर न्यायालय को गुमराह किया और बाद में उस पर नोट का गलत मतलब निकालने का आरोप लगाया.
उन्होंने कहा, 'सरकार न्यायालय को अंग्रेजी व्याकरण भी सिखा रही है.' चिदंबरम ने कहा कि संप्रग सरकार के तहत 126 लड़ाकू (राफेल) विमानों के लिए हुए अनुबंध के बजाय सिर्फ 36 विमान दिलाने वाला, 60,000 करोड़ रूपए का यह रक्षा सौदा बगैर चुनौती के या बगैर जांच के नहीं रह जाना चाहिए. खास तौर पर उच्चतम न्यायालय द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र के चलते अपनी सीमाएं बताने के बाद.
उन्होंने कहा कि इसलिए पार्टी (कांग्रेस) यह मुद्दा जनता के समक्ष उठा रही है और उनसे इस सौदे की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) जांच कराने की अपनी मांग का समर्थन करने को कह रही है. पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री ने पहले के एक सहमति पत्र (एमओयू) को रद्द करने और एक नया समझौता करने के फैसले पर भी सवाल उठाया.
उन्होंने कहा कि भारत सरकार और फ्रांस ने एक एमओयू पर हस्ताक्षर किया था, जिसके तहत भारत 126 राफेल लड़ाकू विमान खरीदता. चिदंबरम ने कहा कि 12 दिसंबर 2012 को जारी एक अंतरराष्ट्रीय निविदा के जरिए प्रति विमान मूल्य 526. 10 करोड़ रूपये का खोजा गया था.
उन्होंने कहा कि दसॉल्ट उड़ान भरने के लिए तैयार 18 विमान सौंपता, जबकि शेष 108 का विनिर्माण प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौता के तहत बेंगलुरू स्थित हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) में किया जाता. उन्होंने कहा, 'यह एमओयू रद्द कर दिया गया और प्रधानमंत्री ने 10 अप्रैल 2015 को नए सौदे की घोषणा कर दी.'
चिदंबरम ने कहा, '...क्या यह सच है कि नए समझौते के तहत प्रति विमान मूल्य 1,670 करोड़ रूपये (जैसा कि दसॉल्ट ने खुलासा किया) है और यदि यह सच है तो मूल्य में तीन गुना वृद्धि होने का क्या औचित्य है ?' उन्होंने एचएएल को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण किए जाने के समझौते को रद्द करने का कारण भी सरकार से पूछा है.
चिदंबरम ने कहा कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद ने इस बात का खुलासा किया था कि भारत सरकार ने ऑफसेट साझेदार के रूप में एक निजी कंपनी का नाम सुझाया था और इसलिए फ्रांस तथा दसॉल्ट के पास इस विषय में कोई विकल्प नहीं बच गया था. हालांकि, केंद्र ने इस बात से इनकार किया है कि उसने यह नाम सुझाया था.
कांग्रेस नेता ने कहा, 'सवाल यह उठता है कि क्या सरकार ने कोई नाम सुझाया था और यदि नहीं, तो इसने एचएएल का नाम क्यों नहीं सुझाया?