उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि औद्योगिक घरानों के लिये संपर्क का काम करने वाली नीरा राडिया की रिकार्ड की गयी टेलीफोन वार्ता के लिप्यांतरण की स्वतंत्र जांच एजेन्सी द्वारा बारीकी से जांच की आवश्यकता है.
न्यायालय ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो से उन अधिकारियों के बारे में जानना चाहा है जो यह काम कर सकते हैं. न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने कहा कि टेलीफोन रिकार्डिंग के लिप्यांतरण पर उन्होंने गौर किया है जो निजी और हानिरहित नहीं है और इसमें आपराधिक तत्वों का पता लगाने के लिये इसकी बारीकी से जांच की आवश्यकता है.
न्यायाधीशों ने कहा, ‘हमने कुछ वार्तालाप पर गौर किया है. कुछ तो हानि रहित हैं लेकिन शेष नहीं है. इसकी बारीकी से जांच की आवश्यकता है. हम ऐसा नहीं कर सकते हैं. हम अगर सरसरी निगाह डालें तो भी घंटों लग जायेंगे.’ न्यायालय ने जांच एजेन्सी से पूछा है कि इन दस्तावेजों की छानबीन के लिये कौन से अधिकारी उपलब्ध हैं. लेकिन इस सवाल का जवाब देने के लिये जांच एजेन्सी की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल हरेन रावल न्यायालय में मौजूद नहीं थे.
न्यायालय ने इस स्थिति को देखते हुये सुनवाई 13 फरवरी के लिये स्थगित कर दी. न्यायालय ने रावल के उपस्थित नहीं रहने पर अप्रसन्नता भी व्यक्त की. रावल उच्च न्यायालय में एक अन्य मामले में पेश होने के लिये लखनऊ गये हुये हैं. न्यायाधीशों ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि यह जांच बातचीत के आपराधिक तत्व और न्याय के हित से जुड़े बिन्दुओं तक ही सीमित रहेगी.
रतन टाटा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे का कहना था कि व्यक्तिगत स्वरूप की बातचीत को जांच के दायरे से अलग रखा जाना चाहिए. इस पर न्यायाधीशों ने कहा, ‘यह सिर्फ आपराधिक तत्व और न्याय के हित से जुड़े बिन्दुओं तक ही सीमित रहनी चाहिए.’ साल्वे ने रतन टाटा और नीरा राडिया के बीच विभिन्न वार्तालापों के संदर्भ में कहा, ‘इस बातचीत की बारीकी से जांच के दौरान अत्यधिक गोपनीयता बरती जानी चाहिए.’ उनका दावा है कि कथित वार्ता व्यक्तिगत स्वरूप की है.
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि इस वार्तालाप के आपराधिक तत्व को अदालत के समक्ष लाया जाना चाहिए. गैर सरकारी संगठन सेन्टर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशंस के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि न्यायालय को लिपिबद्ध किए गए वार्तालाप की जांच के लिये विशेष जांच दल गठित करना चाहिए. उनका कहना था, ‘बातचीत के कुछ अंश सार्वजनिक हैं और वे मुश्किल से निजी स्वरूप के हैं. ये अवैधता से संबंधित हैं जिनसे पता चलता है कि किस तरह सरकार के फैसलों को प्रभावित किया जा रहा है और देश में संस्थायें कैसे चल रही हैं.’
इस पर न्यायाधीशों ने कहा कि विशेष जांच दल गठित करने का अनुरोध अभी जल्दबाजी होगी और इस पर बाद में विचार किया जा सकता है. नीरा राडिया के टेलीफोन टैपिंग के कुछ अंश मीडिया में लीक होने के बाद देश की राजनीति में तूफान आया गया था क्योंकि इसमें से कुछ वार्तालाप कापरेरेट लाबींग से सबंधित था जबकि कुछ का राजनीति पर प्रभाव था. आय कर विभाग ने 50 सीलबंद लिफाफों में 5,800 टेलीफोन वार्ताओं का लिप्यातंरण न्यायालय में पेश किया था.
वित्त मंत्री को 16 नवंबर, 2007 को मिली एक शिकायत के बाद नीरा राडिया के टेलीफोन की निगरानी शुरू की गयी थी. इस शिकायत में आरोप लगाया गया था कि नीरा राडिया ने नौ साल के भीतर ही तीन सौ करोड़ रुपए का कारोबार खड़ा कर लिया है.
सरकार ने कुल 180 दिन नीरा राडिया के टेलीफोन की टैपिंग की. इस दौरान 10 अगस्त 2008 से 60 दिन और फिर 19 अक्टूबर से साठ दिन के लिये टैपिंग की गयी थी. इसके बाद 11 मई, 2009 से 60 दिन के लिये और टैपिंग की गयी थी.