महाराष्ट्र सरकार द्वारा सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मराठा समुदाय को 16 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा करने के दो दिन बाद बॉम्बे हाईकोर्ट में शुक्रवार को एक जनहित याचिका दाखिल की गई. याचिका में इस फैसले को संविधान के साथ ‘धोखा’ करार देते हुए इसे चुनौती दी गई है.
पूर्व पत्रकार केतन तिरोडकर द्वारा दाखिल जनहित याचिका में कहा गया है, ‘मराठा समुदाय को सामाजिक एवं शैक्षणिक तौर पर पिछड़ा घोषित करने का राज्य सरकार का फैसला देश और संविधान के साथ धोखा है. इस फैसले ने संविधान के बुनियादी तानेबाने से दगा किया है.’ महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से चार महीने पहले कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने बुधवार को मराठा समुदाय के लिए 16 फीसदी आरक्षण और मुस्लिमों के लिए पांच फीसदी आरक्षण की घोषणा की थी.
बहरहाल, जनहित याचिका ने सिर्फ मराठा समुदाय को दिए गए आरक्षण को चुनौती दी है. याचिका में अदालत से राज्य सरकार को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि वह अपने फैसले को ‘वापस’ ले.
जनहित याचिका में कहा गया है कि राज्य में 75 फीसदी या इससे ज्यादा जमीन का मालिकाना हक मराठा समुदाय के पास है. साल 1962 से 2004 के बीच 2000 से ज्यादा विधायकों में से 1200 से ज्यादा विधायक यानी कुल विधायकों के 55 फीसदी मराठा समुदाय से संबंध रखते थे. राज्य में 72 फीसदी से ज्यादा सहकारी संस्थाओं पर मराठा समुदाय के लोगों का नियंत्रण है.
याचिका के मुताबिक, ‘मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण एवं उप-मुख्यमंत्री अजित पवार इस ‘सामाजिक एवं शैक्षणिक तौर पर पिछड़े’ समुदाय से आते हैं. राज्य के 99 फीसदी पूर्व मुख्यमंत्री मराठा समुदाय से संबंध रखते हैं.’