दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित अब राजधानी लौट आई हैं. लौटते ही उन्होंने धमाका कर दिया है. दिल्ली की राजनीति में कम और अपनी पार्टी में ज्यादा. उन्होंने बयान दे डाला कि अगर बीजेपी के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त नंबर हैं तो उसे सरकार बना लेना चाहिए. उनका यह बयान आते ही पार्टी में सन्नाटा छा गया. उन्हें पसंद न करने वाले कुछ नेताओं ने उनके खिलाफ जबर्दस्त बयान दे डाले. कांग्रेस के एक पूर्व विधायक ने तो उन्हें पार्टी से निकालने तक की मांग कर डाली. पार्टी ने उनके बयान से किनारा कर लिया.
उधर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल जो दिल्ली को अपनी व्यक्तिगत जायदाद मानते हैं, चीख पड़े. उन्होंने आनन-फानन में बयान दे दिया कि बीजेपी और कांग्रेस अंदरखाने मिले हुए हैं. लेकिन वह अपना वक्त भूल गए जब कांग्रेस की मदद से उन्होंने सरकार बनाई थी और खुद ही छोड़कर चले गए थे. उन्हें यह बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा है कि कांग्रेस उनकी पार्टी के अलावा बीजेपी का साथ दे. वह इस बयान पर भड़क उठे हैं और जबर्दस्त प्रतिक्रिया दे रहे हैं. उनका मानना है कि सरकार बनाने का आमंत्रण बीजेपी को नहीं मिलना चाहिए. लेकिन केजरीवाल की परेशानी गैरवाजिब है.
दिल्ली विधानसभा में बीजेपी अब भी सबसे बड़ी पार्टी है और सरकार बनाने के लिए अगर उसे उप राज्यपाल आमंत्रण देते हैं तो उसमें गलत क्या है? बहरहाल उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है शीला दीक्षित का बयान. जो लोग शीला दीक्षित को जानते हैं या उनकी राजनीति की शैली जानते हैं, उन्हें पता है कि वह वक्त की नब्ज को पहचानती हैं. उन्हें दिल्ली की राजनीति की गहराई का अंदाजा है. उनका यह बयान अनायास दिया गया बयान नहीं है. वह जानती हैं कि उनकी पार्टी की लोकप्रियता इस समय धरातल में है और उसे उठने में वक्त लगेगा. इसलिए अगर अभी तुरंत चुनाव कराए जाते हैं तो उनकी पार्टी को कोई फायदा नहीं होगा. विधायकों की तादाद में शायद ही कोई बढ़ोतरी हो. लेकिन अगर कोई सरकार बनती है तो उसके काम काज पर पार्टी का भविष्य टिका रहेगा. यानी अगर सत्तारूढ़ दल अच्छा नहीं कर पाता या जनता की आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतरता है तो कांग्रेस के लिए कुछ पाने का मौका रहेगा. समय बीतने के साथ लोगों में कांग्रेस के प्रति गुस्सा भी कम हो जाएगा.
इतना ही नहीं, अगर बीजेपी किसी तरह के जोड़-तोड़ से सरकार बनाती है तो जनता में एक खराब संदेश जाएगा. अगर वह सरकार कुछ नहीं कर पाती है तो कांग्रेस के लिए अवसर बेहतर होते जाएंगे. यानी शीला दीक्षित की सोच सही है. वह राजनीति की चतुर खिलाड़ी हैं और वक्त की नब्ज को पकड़ती हैं.
गेंद उपराज्यपाल के पाले में है. केजरीवाल की बेचैनी बढ़ती जा रही है. शीला दीक्षित का यहां पदार्पण हो चुका है. थोड़े समय और इंतजार कीजिए. देखिए किसकी सरकार बनती है और फिर क्या होता है.