जम्मू-कश्मीर के हालात से निपटने के तरीके पर केन्द्र सरकार का समर्थन हासिल करने के बाद मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को कहा कि कश्मीर घाटी के हालात से निपटने के लिए राजनीतिक पहल की जरूरत है, लेकिन साथ ही स्पष्ट किया कि सबसे पहले वहां हालात सामान्य होने चाहिएं.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी चिदंबरम के साथ बैठक के बाद उमर ने हिंसा पर उतारू प्रदर्शनकारियों को भी सख्त संदेश देते हुए कहा कि अगर कर्फ्यू बंदिशों का उल्लंघन किया गया तो इसके परिणाम ‘दुखद और गंभीर’ होंगे. राज्य में शुक्रवार को शुरू हुई हिंसक घटनाएं पिछले चार दिन में 18 लोगों की जान ले चुकी हैं.
हालात पर काबू पाने का प्रयास कर रहे मुख्यमंत्री उमर सोमवार दोपहर राजधानी पहुंचे और सीधे प्रधानमंत्री से मुलाकात करने गए. धरती की जन्नत कहे जाने वाले इस राज्य के ताजा हालात से दुखी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी हिंसा की ताजा घटनाओं पर दुख व्यक्त किया और कहा कि राज्य में कुछ ऐसे तत्व मौजूद हैं जो किन्हीं ‘छिपे उद्देश्यों’ से हिंसा फैला रहे हैं. वह चाहती हैं कि ऐसे तत्वों की पहचान की जाए और उन्हें कानून के घेरे में लाया जाए. {mospagebreak}
उमर ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक हालात हैं, जिन्हें राजनीतिक ढंग से ही हल किया जा सकता है. उन्होंने बैठकों का सिलसिला समाप्त करने के बाद श्रीनगर रवाना होने से पहले संवाददाताओं से कहा, ‘इसे आर्थिक पैकेज की बजाय एक राजनीतिक पैकेज की जरूरत है.’ उमर ने कहा कि कर्फ्यू को सख्ती से लागू किया जाएगा और प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए अतिरिक्त अर्धसैनिक बलों और खास तौर से रैपिड एक्शन फोर्स की मांग की.
उन्होंने कहा, ‘जम्मू और कश्मीर एक राजनीतिक स्थिति है. इसे राजनीतिक निपटारे की जरूरत है. इसे एक आर्थिक पैकेज से ज्यादा राजनीतिक पैकेज की जरूरत है. राजनीतिक पैकेज से मेरा मतलब सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून, सुरक्षा बलों की गतिविधियां, नियंत्रण रेखा पार करके आए युवकों के लिए पुनर्वास पैकेज और मौजूदा हिंसा के शिकार लोगों के लिए मुआवजे जैसे मामले निपटने से है.
उमर ने कहा, ‘हमने घाटी के हालात पर विस्तार से चर्चा की और इस बात पर आम सहमति थी कि इस तरह की पहल शुरू करने से पहले यह जरूरी है कि घाटी में हालात सामान्य हों.’ आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि केन्द्र सरकार राज्य में राजनीतिक पहल शुरू करने के लिए तैयार है. इसमें पृथकतावादियों से बातचीत की पहल भी शामिल है, लेकिन इसके लिए सरकार चाहती है कि वह पहले हिंसा का रास्ता छोड़ दें. {mospagebreak}
सूत्रों ने कहा कि केन्द्र ने राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की संभावना से इनकार किया और मुख्यमंत्री को हर तरह का सहयोग देने का आश्वासन दिया. उमर ने बताया कि चिदंबरम ने उन्हें अतिरिक्त बल देने के मामले में पूर्ण सहयोग देने का आश्वासन दिया है, लेकिन साथ ही स्पष्ट किया है कि वह चाहते हैं कि राज्य में कम से कम लोग हताहत हों. उन्होंने स्वीकार किया कि राज्य में सुरक्षा बलों पर दबाव है.
उन्होंने कहा कि संयम तो दोनो पक्षों को ही रखना होगा और यह एकतरफा नहीं हो सकता. उमर ने कहा, ‘विरोध प्रदर्शनों की उग्रता देखें तो सुरक्षा बलों ने संयम बरतने की हरसंभव कोशिश की. 2008 में इससे कहीं कम उग्रता वाले और कम अवधि के विरोध प्रदर्शनों में इससे ज्यादा लोग मारे गए थे. उमर ने कहा कि जम्मू-कश्मीर समस्या एक राजनीतिक समस्या है और इस बात को ध्यान में रखते हुए केन्द्र और राज्य सरकार दोनो का यह मानना है कि राज्य में कुछ बहु प्रतीक्षित उपायों की घोषणा की जा सकती है, लेकिन उसके लिए जरूरी है कि सबसे पहले हालात सामान्य हों.
ताजा हिंसा के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में उमर ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि कोई एक खास दल या कोई एक व्यक्ति घाटी के पूरे हालात को संचालित कर रहा है.’ उमर ने कहा, ‘मुझे लगता है कि इस सबके पीछे बहुत से तत्व काम कर रहे हैं. कई इलाकों में व्यापक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. ऐसे में यह नहीं माना जा सकता कि कोई एक दल या व्यक्ति इतने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन का आयोजन, प्रबंधन और संचालन कर रहा है.’ {mospagebreak}
अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में मुख्यमंत्री ने कहा, ‘आप कश्मीर घाटी के बड़े इलाके में पिछले एक महीने से भी अधिक समय के हालात से अच्छी तरह वाकिफ हैं.’ ‘दुख की बात है कि हम हिंसा के एक ऐसे चक्र में फंस गए हैं, जहां लोगों की मौत होती है तो हिंसक प्रदर्शन बढ़ते हैं. प्रदर्शनकारियों को दबाने की कोशिश की जाती है तो और लोग मरते हैं और उसके विरोध में फिर हिंसक प्रदर्शन होते हैं.’ उमर ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि लोग कानून को अपने हाथ में लेना छोड़े. हम चाहते हैं कि लोग सरकारी संपत्ति, पुलिस थाने और अन्य इमारतों को नुकसान नहीं पहुंचाएं. लोग जब कानून को अपने हाथ में लेते हैं, तो बल प्रयोग का फैसला लेना पड़ता है और दुर्भाग्य से ऐसे फैसलों के नतीजे अकसर गंभीर और दुखद होते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘मैंने वक्त वक्त पर लोगों से अपील की है कि वह हिंसा और अराजकता के इस चक्र को तोड़ें और सरकार को हालात सामान्य बनाने का मौका दें.’ प्रधानमंत्री के साथ बैठक में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी, गृह मंत्री पी चिदंबरम, रक्षा मंत्री ए के एंटोनी और विदेश मंत्री एसएम कृष्णा सहित केबिनेट की सुरक्षा संबंधी मामलों की कमेटी (सीसीएस) के सभी सदस्य मौजूद थे.
इससे एक दिन पहले ही सीसीएस की बैठक हुई, जिसमें घाटी के बिगड़े हालात पर काबू पाने के लिए उठाए जाने वाले राजनीतिक और प्रशासनिक कदमों पर विचार किया गया. कश्मीर घाटी में अस्थिरता की गूंज लोकसभा में भी सुनाई दी, जब विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने क्षेत्र के हालात का जायजा लेने के लिए संसदीय दल प्रतिनिधिमंडल भेजने की मांग की.