नई पीढ़ी के इस दौर में आज भी काफी कुछ ऐसा है, जो पुराना अच्छा लगता है. युवा पीढ़ी भले ही नेटफ्लिक्स की सीरीज़, गानों के रिमिक्स और पबजी के गेम में उलझी हो, लेकिन वो भी खुद को सुकून दिलाने के लिए कुछ पुराने तरीकों की ओर ही कदम बढ़ाती है. किसी शायर की शायरी हो, किशोर-मुकेश के गाने हो या फिर नुसरत फतेह अली खान की कव्वाली हों. ये कुछ ऐसी चीज़ें हैं जो हर वक्त सोशल मीडिया की दुनिया में भी छाई रहती हैं और इनकी एक अलग-सी फैन फॉलोइंग है.
16 अगस्त का दिन कव्वाली के शहंशाह कहे जाने वाले नुसरत फतेह अली खान की पुण्यतिथि का होता है. भारत से ताल्लुक रखने वाले नुसरत फतेह अली खान भले ही पाकिस्तानी कव्वाल थे, लेकिन हिंदुस्तान में उन्हें काफी चाहा गया और वो प्यार आजतक जारी है. इस मौके पर नुसरत फतेह अली खान के कव्वाली के शहंशाह बनने की खास कहानी, उनका हिन्दुस्तान और गानों से रिश्ते के बारे में कुछ खास बातें जानिए...
उस्ताद नुसरत फतेह अली खान...
नुसरत का परिवार आज़ादी से पहले पंजाब के जालंधर में रहता था, लेकिन बंटवारे के वक्त पाकिस्तान चला गया और फैसलाबाद में जाकर बसा. उनके परिवार का कव्वाली से काफी पुराना रिश्ता है और ये घराना करीब 600 साल से चलता आ रहा है. बंटवारे के कुछ वक्त बाद ही नुसरत फतेह अली खान का जन्म फैसलाबाद में हुआ, उनके घर में कव्वाली का ही माहौल था.
पिता फतेह अली खान, चाचा मुबारक अली खान और सलामत अली खान. कव्वाली ही गाते थे और यही खानदानी पेशा रहा. बचपन से ही ऐसा माहौल होने के कारण नुसरत और उनके भाई फारुक फतेह अली खान को गाना, हारमोनियम बजाना और संगीत से जुड़ी कुछ दूसरी तालीम दी जाती रही. भले ही बच्चों का मन ना करता हो, लेकिन तालीम जरूर दी जाती थी.
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टॉफी के लालच की वजह से सीखी कव्वाली
एक इंटरव्यू में नुसरत फतेह अली खान के भाई फारुक फतेह अली खान ने बताया था, ‘..दोनों भाइयों को टॉफी का लालच लेकर धोबीघाट के पास ले जाते थे. वहां पर बैठकर ही राग, हारमोनियम और अन्य जानकारी दी गई. ये सिलसिला लंबे वक्त चलता रहा, लेकिन किसी का भी गाने में मन नहीं लगा.’
पिता की मौत ने दे दी जिम्मेदारी
नुसरत फतेह अली खान के पिता फतेह अली खान खुद कव्वाल थे और लिखते थे, उनकी इच्छा रही कि बेटा इंजीनियर या फिर डॉक्टर बने. हालांकि, पारिवारिक परंपरा की वजह से अपने बेटों को संगीत और कव्वाली की जरूरी शिक्षा वो देना चाहते थे. लेकिन 1964 में फतेह अली खान की मौत हो गई, जिसके बाद खानदान के पेशे पर संकट आया. क्योंकि उस वक्त मुबारक अली खान-सलामत अली खान की उम्र भी काफी ज्यादा हो गई थी.
तो नुसरत फतेह अली खान को ही ये जिम्मेदारी दी गई. जिस वक्त दस्तारबंदी यानी कव्वाली ग्रुप के प्रमुख का पद उन्हें देने की बात आई तो वहां मौजूद अन्य लोगों ने कहा कि पहले लीडर (कव्वाली ग्रुप का) को गाकर सुनाना होगा, तभी पगड़ी पहनाई जाए. लेकिन तब नुसरत बिल्कुल नहीं गाते थे, ऐसे में बिना गाए ही दस्तारबंदी की गई.
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इसके बाद मौत के चालीस दिन पूरे होने पर नुसरत फतेह अली खान ने पहली बार कव्वाली गाई, उसके बाद उन्होंने धार्मिक स्थलों में गाना शुरू किया. घर में लगातार अभ्यास किया और छोटे-छोटे कार्यक्रमों में गाने लगे. जब मुबारक अली खान की मौत हुई, तो कव्वाली ग्रुप की पूरी जिम्मेदारी नुसरत फतेह अली खान को दे दी गई.
पाकिस्तान के कव्वाल से दुनिया में शहंशाह तक
जब नुसरत ने ग्रुप की कमान संभाली तो उसके बाद अलग-अलग शहरों में जाकर गाने का सिलसिला शुरू हो गया, जैसा पहले भी होता आया. नुसरत के साथ उनके भाई फारुक फतेह अली खान भी जुड़े जो खुद भी गायक होने के साथ-साथ हारमोनियम भी बजाते थे. इसी बीच नुसरत फतेह अली खान को विदेशों से शो की बुकिंग आनी शुरू हुईं और फिर 1985 में यूनाइटेड किंगडम के एक टूर ने सबकुछ बदल दिया.
उसके बाद ना सिर्फ यूरोप में बसे हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी लोग, बल्कि वहां के लोगों में भी कव्वाली के प्रति प्रेम उमड़ा. यूके से शुरू हुआ सिलसिला कनाडा, यूरोप के दूसरे देश और 1989 में अमेरिका तक पहुंचा. जहां से नुसरत फतेह अली खान को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल गई. उन्होंने कई हॉलीवुड के म्यूजिक कंपोजर के साथ काम किया, इनमें माइकल ब्रूक के साथ बनाई गई एल्बम ‘नाइट सॉन्ग’ ने सारे रिकॉर्ड ही ध्वस्त कर दिए.
नुसरत फतेह अली खान और हिन्दुस्तान
बॉलीवुड की कई फिल्मों में नुसरत फतेह अली खान ने गाना गया, उनके द्वारा गाए गए गानों को बार-बार बॉलीवुड ने इस्तेमाल भी किया. लेकिन बॉलीवुड के साथ जुड़ने और हिन्दुस्तान आने का भी एक अलग किस्सा रहा. नुसरत फतेह अली खान को सबसे पहले राजकपूर ने मुंबई आने को कहा, जिसमें उनके प्रोडक्शन की फिल्मों में गाना गाने की बात हुई. लेकिन नुसरत ने एल्बम कम्पोज़ करने से पहले ही एक शर्त रख दी कि कम से कम एक गाना लता मंगेशकर जरूर गाएंगी.
जिसके बाद नुसरत फतेह अली खान और लता मंगेशकर ने ‘ऊपर खुदा आसमां नीचे’ गाने में साथ काम किया. इसके बाद नुसरत फतेह अली खान कभी भारत तो नहीं आए, लेकिन उन्होंने कई दूसरी फिल्मों के लिए गाने गए और कम्पोज़ जरूर किए.
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नुसरत की मौत और उनकी विरासत
नुसरत फतेह अली खान ज्यादा वजन होने के कारण काफी बीमारियों से जूझ रहे थे, यही कारण रहा कि 1995 के बाद से ही उनकी तबीयत खराब रहने लगी. 1997 में ही वो लंदन इलाज कराने के लिए रवाना हुए और फिर कभी नहीं लौटे. 16 अगस्त, 1997 को लंदन में उनकी मौत हुई. नुसरत भले ही दुनिया को अलविदा कह गए हो, लेकिन उनकी गाई एक-एक कव्वाली और गाना आज भी लोगों के दिलों में गूंजता है.
नुसरत की मौत के कुछ वक्त बाद भाई फारूक की भी मौत हो गई, जिसके बाद राहत फतेह अली खान ने परिवार की जिम्मेदारी संभाली. अब भी राहत ही कव्वाली की उस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. अंत में नाज़ ख्यालवी द्वारा लिखे गए ‘तुम एक गोरख़धंधा हो’ की कुछ पंक्तियां, जो हर वक्त लोगों के दिलों में नुसरत के आवाज में गई हुई गूंजती रहती हैं...
छुपते नहीं हो सामने आते नहीं हो तुम, जलवा दिखा के जलवा दिखाते नहीं हो तुम
दैर-ओ-हरम के झगड़े मिटाते नहीं हो तुम, जो अस्ल बात है वो बताते नहीं तो तुम
हैरान हूं मेरे दिल में समाये हो किस तरह, हांलाकि दो जहां में समाते नहीं तो तुम
ये माबद-ओ-हरम, ये कालीसा-ओ-दैर क्यूं, हरजाई हो तभी तो बताते नहीं तो तुम
तुम एक गोरखधंधा हो...तुम एक गोरखधंधा हो....